scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेशसरकार अड़ियल रवैया छोड़े सशर्त बातचीत का मतलब नहीं, कानून वापस नहीं तो घर वापसी नहीं : राकेश टिकैत

सरकार अड़ियल रवैया छोड़े सशर्त बातचीत का मतलब नहीं, कानून वापस नहीं तो घर वापसी नहीं : राकेश टिकैत

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है. अगर कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो किसान भी घर वापस नहीं जाएंगे. टिकैत ने समाचार एजेंसी भाषा को दिए पांच सवालों के जवाब.

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली की सीमा पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक महीना हो गया है. सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है. 29 दिसंबर को एक बार फिर सरकार और किसान यूनियन के बीच बैठक प्रस्ताव है.

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है. उनका कहना है कि अगर कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो आंदोलनकारी किसान भी घर वापस नहीं जाएंगे. इस मुद्दे पर पेश हैं उनसे ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब…

सवाल : कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकला है. आगे की राह क्या होगी ?

जवाब : सरकार हमसे बातचीत करना चाहती है और हमसे तारीख तथा मुद्दों के बारे में पूछ रही है. हमने 29 दिसंबर को बातचीत का प्रस्ताव दिया है. अब सरकार को तय करना है कि वह हमें कब बातचीत के लिए बुलाती है. हमारा कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए तौर-तरीके और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए गारंटी का मुद्दा सरकार के साथ बातचीत के एजेंडे में शामिल होना चाहिए. हमने साफ कहा है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है. कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं.

सवाल : आपने हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर गुरुद्वारा ‘लंगर’ की तरह से मंदिरों व एवं धार्मिक ट्रस्टों से भी योगदान देने की बात कही थी. इस बयान से पैदा विवाद पर क्या कहेंगे ?

जवाब : यह आंदोलन में फूट डालने वालों की चाल है. मेरे बयान का आशय मंदिर में पुजारी व धार्मिक ट्रस्ट की तरफ से गुरुद्वारा ‘लंगर’ की तर्ज पर आंदोलन में अपने बैनर के साथ लंगर सेवा प्रदान करने से था. मेरे बयान को अन्यथा न लिया जाए और उसे गलत तरीके से पेश नहीं किया जाए .

आंदोलन सभी का है. हमारा बयान मंदिरों या ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं है. ‘ऋषि और कृषि’ की दो पद्धतियों पर हिन्दुस्तान की संस्कृति आधारित है. हम इन दोनों पद्धतियों को मानते हैं. इस सबके बाद भी अगर किसी को मेरी किसी बात से ठेस पहुंची हो तो मैं सौ दफा माफी मांगने को तैयार हूं.

सवाल : किसानों और सरकार के बीच बातचीत में अड़चन कहां आ रही है. सरकार से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं ?

जवाब : सरकार एक तरफ वार्ता का न्योता भेजती है, दूसरी तरफ किसानों की मांग को खारिज करती है. यह सरकार के दोहरे चरित्र को दर्शाता है. क्या सरकार द्वारा घोषित फसलों का मूल्य मांगना गलत है. सरकार से हमारी कोई लड़ाई नहीं है. वार्ता के सारे रास्ते खुले हैं. ऐसे में बीच का रास्ता यह है कि पहले तीनों कृषि कानूनों को खत्म कर एमएसपी पर कानून बनाया जाए.


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार ने किसानों को अनचाही सौगात दी, अब वो इसकी नामंजूरी संभाल नहीं पा रही


सवाल : सरकार का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. इसपर क्या कहेंगे ?

जवाब : विपक्ष में इतनी ताकत होती तो वह सत्ता से हटते ही क्यों. इस आंदोलन में तो भाजपा वाले भी आ रहे हैं. लोग यहां आकर हमसे कह रहे हैं कि यहां से हटना नहीं. हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन करने का संविधान में अधिकार दिया गया है. मेरा निवेदन है कि कोई भी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश न करे. यह आंदोलन पूरे देश के अन्नदाताओं का आंदोलन है. सरकार भी तो इस मुद्दे पर सार्वजनिक बैठकें कर रही है. क्या भाजपा के लोगों ने कभी आंदोलन नहीं किया.

सवाल : प्रधानमंत्री और सरकार के मंत्री इन कानूनों को किसानों के हित में बता रहे हैं. कई किसान संगठनों ने इनका समर्थन किया है.

जवाब : देखिये, इन कानूनों के बनने से पहले ही देश में गोदाम बनने लगे थे. पहले कह रहे थे कि वे गौशालाएं बना रहे हैं, लेकिन बने गोदाम. गौशाला तो एक भी नहीं बन पाई. दूसरी ओर, खेती की लागत बढ़ गई है और किसान अपनी पैदावार आधे दामों पर बेचने को मजबूर है. लेकिन, अब कोई किसानों की आय दोगुनी होने की बात कर रहा है. ये किसान उस मास्टर से भी मिलना चाहते हैं.


यह भी पढ़ें: MSP की लड़ाई में न फंसे- भारत को WTO कानूनों में मौजूद असमानता को दूर करने का प्रयास करना होगा


 

share & View comments