नई दिल्ली: दिल्ली स्थित थिंक टैंक लोकनीति-सीएसडीएस और जर्मनी के कोनराड एडेनॉयर स्टिफ्टंग की एक रिपोर्ट बताती है कि चाहे हिंदू हों या मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोगों को लगता है कि न्यूज कवरेज में पीएम मोदी का कुछ ज्यादा ही फेवर किया जाता है और विपक्षी राजनीतिक दलों के समर्थकों में मीडिया घरानों को लेकर भरोसे का जबर्दस्त अभाव है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘विभिन्न मीडिया स्रोतों से न्यूज का उपभोग करने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों ही लगभग समान रूप से यह मानते हैं कि न्यूज मीडिया (46%) मोदी सरकार के पक्ष में समाचार दिखाता है. पांच में से केवल एक न्यूज कंज्यूमर ने ही कहा कि पॉलिटिकल न्यूज कवरेज के मामले में देश का मीडिया संतुलित है—यानी उसका रुख न तो बहुत ज्यादा सरकार/विपक्ष के पक्ष में होता है और न ही बहुत ज्यादा इनमें से किसी के खिलाफ होता है.
‘मीडिया इन इंडिया—एक्सेस, प्रैक्टिसेस, कंसर्न एंड इफेक्ट’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बाकायदा डेटा के जरिये यह दिखाने की कोशिश की गई है कि विभिन्न समुदायों तक खबर किस तरह पहुंच रही है और मीडिया से जुड़ा पूरा परिदृश्य कैसे बदल रहा है.
रिपोर्ट में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, ‘मुस्लिम न्यूज कंज्यूमर को न्यूज मीडिया (हर तरह का) पर हिंदू कंज्यूमर की तुलना में कम ही भरोसा है, हालांकि दोनों समुदायों के बीच भरोसे का क्रम समान है. ऑनलाइन न्यूज वेबसाइटों पर हिंदू और मुसलमान दोनों सबसे कम भरोसा करते हैं. निजी न्यूज चैनलों और आकाशवाणी न्यूज को लेकर भी उनके विश्वास का स्तर काफी कम है.’
और जब पीएम मोदी के मीडिया कवरेज की बात आती है, तो दोनों ही समुदायों को समान रूप से लगता है कि कथित तौर पर बड़े पैमाने पर मीडिया उनके पक्ष में पूर्वाग्रह के साथ काम करता है.
गुरुवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वास का स्तर कितना कम है, यह इस पर भी निर्भर करता है कि राजनीतिक झुकाव किस तरफ है.
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रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की ओर झुकाव रखने वालों को भाजपा समर्थकों की तुलना में हर तरह के मीडिया पर कम भरोसा है. औसतन, कांग्रेस समर्थक मीडिया पर सबसे कम भरोसा करते हैं.’
दूरदर्शन के सभी न्यूज चैनल और मीडिया अभी भी लोगों के बीच सबसे भरोसेमंद हैं.
रिपोर्ट के निष्कर्ष इस साल जनवरी में पूर्वोत्तर और कश्मीर के कुछ हिस्सों को छोड़कर 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए नमूना सर्वेक्षण पर आधारित हैं, जिसमें 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के 7,463 भारतीय नागरिकों की राय जानी गई.
सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के समर्थकों के बीच न्यूज कंजप्शन के पैटर्न भी भिन्न थे. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अंग्रेजी अखबारों के अधिकांश पाठकों ने कांग्रेस का समर्थन किया, जबकि हिंदी समाचारों के उपभोक्ताओं का झुकाव भाजपा की ओर अधिक दिखा.
अध्ययन बताता है, ‘ज्यादातर अंग्रेजी अखबार ही पढ़ने वाले लोगों का अनुपात केवल 3% के आसपास है. और इस छोटे से समूह के बीच सबसे ज्यादा समर्थन कांग्रेस को मिलता है. अंग्रेजी अखबार के पाठकों द्वारा भाजपा की तुलना में कांग्रेस का समर्थन किए जाने की संभावना अधिक होती है. हालांकि, अन्य भाषाओं के न्यूज पेपर पढ़ने वाले पाठकों के बीच ऐसा नहीं दिखता.’
रिपोर्ट एक रोचक पहलू भी दर्शाती है कि सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले उत्तरदाता सोशल मीडिया पर कंटेंट की सरकारी निगरानी के नैतिक पहलू को लेकर काफी विभाजित हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘45 फीसदी सोशल मीडिया यूजर्स मानते हैं कि इसमें (निगरानी में) कुछ गलत नहीं है और 40% का मानना है कि यह गलत है. फेसबुक और व्हाट्सएप के एक्टिव यूजर्स के इन दोनों प्लेटफार्म के इस्तेमाल के दौरान गोपनीयता खतरे में होने को लेकर चिंतित होने की संभावना सबसे अधिक है. सिग्नल के सक्रिय यूजर्स ऐप का उपयोग करते समय गोपनीयता से समझौते को लेकर सबसे कम चिंतित दिखे.’
लोगों को सूचना के लिए सरकारी सेवाओं और वेबसाइटों पर भी भरोसा है, जबकि गोपनीयता को लेकर गूगल और याहू पर भी लोगों को काफी ज्यादा भरोसा है. दूसरी ओर, गोपनीयता से समझौते के मामले में सोशल मीडिया कंपनियां ‘सबसे कम भरोसेमंद’ हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सोशल मीडिया कंपनियां सबसे कम भरोसेमंद हैं. आंकड़े बताते हैं कि भरोसा करने वालों (37%) की तुलना में भरोसा न करने वालों (38%) की संख्या अधिक होने की संभावना है. उत्तर पश्चिम और उत्तर भारत के सक्रिय इंटरनेट यूजर्स के बीच यह धारणा काफी मजबूत है कि सरकार लोगों की ऑनलाइन और फोन गतिविधियों पर नजर रखती है. इस बारे में दक्षिण भारत में तमाम लोगों की स्पष्ट राय रही कि सरकार केवल कुछ लोगों की निगरानी करती है, सबकी नहीं.’
फेक न्यूज फैलाई जा रही
हालांकि, सूचना तक पहुंच के कारण मीडिया के पूरे परिदृश्य में सोशल मीडिया एक गेम चेंजर है, जो खुद ही न्यूज का एक बड़ा स्रोत है और यह आमतौर पर लोगों के पास स्मार्टफोन उपलब्ध होने पर निर्भर करता है.
रिपोर्ट में पाया गया कि देशभर में न्यूज तक पहुंच के लिए टेलीविजन सबसे लोकप्रिय माध्यम बना हुआ है.
रिपोर्ट में जाने-अनजाने फेक न्यूज फैलने वाले पहलू के बारे में भी जानने की कोशिश की गई. सर्वे में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों ने माना कि उन्होंने न्यूज आइटम और मैसेज हासिल किए और उन्हें फॉरवर्ड भी किया जो कि हो सकता है कि फेक रहे हों.
रिपोर्ट में बताया गया है, ‘लगभग आधे एक्टिव इंटरनेट यूजर्स और सोशल मीडिया और मैसेंजर प्लेटफॉर्म यूजर्स ने माना कि कभी न कभी वे भी फेक न्यूज या ऑनलाइन सूचनाओं से गुमराह हुए. करीब हर पांच में से दो एक्टिव इंटरनेट यूजर और सोशल मीडिया यूजर ने स्वीकार किया कि उन्होंने खुद को मिली फेक न्यूज शेयर/फॉरवर्ड की है; यानी उन्होंने अनजाने में और ऐसे किसी इरादे के बिना फेक न्यूज को शेयर/फॉरवर्ड किया और बाद में उन्हें लगा कि यह जानकारी झूठी थी.’
हालांकि, यह स्वीकारोक्ति काफी हद तक इस पर भी निर्भर करती है कि यूजर को फेक न्यूज के खतरे के बारे में पता था या नहीं. ज्यादा पढ़े-लिखे उत्तरदाताओं के फेक न्यूज से गुमराह होने की बात स्वीकारने की ‘संभावना अधिक’ थी, जबकि कम पढ़े-लिखे लोगों के मामले में इसकी संभावना कम ही थी क्योंकि उनके लिए यह समझना आसान भी नहीं है कि उन्होंने जिसे शेयर किया, वो फेक न्यूज थी.
शहर-गांव के बीच बंटी राय
रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया कि कैसे शहरों में लोग स्थानीय समाचारों की तुलना में राष्ट्रीय समाचारों में अधिक रुचि रखते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘शहरों में न्यूज कंज्यूमर लोकल न्यूज को ज्यादा प्राथमिकता नहीं देते हैं. कस्बों और गांवों के न्यूज कंज्यूमर की तुलना में वे नेशनल न्यूज पर ज्यादा ध्यान देते हैं. गांवों में रहने वालों के लिए राष्ट्रीय स्तर की खबरों में रुचि लेने की संभावना सबसे कम होती है; जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता जा रहा है, नेशनल न्यूज के प्रति रुचि भी बढ़ती है.’
सर्वेक्षण में पाया गया कि उत्तर-पश्चिम भारत में लोग आमतौर पर स्थानीय समाचारों की तुलना में राष्ट्रीय स्तर के समाचारों के बारे में जानना अधिक पसंद करते हैं.
रिपोर्ट कहती है, ‘दिल्ली और हरियाणा के कंज्यूमर नेशनल न्यूज को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. राजस्थान में भी लोगो का झुकाव नेशनल न्यूज की तरफ अधिक होता है. अगर बात राज्य स्तर की खबरों का करें तो असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में इस पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है.’
वहीं, दक्षिण भारत में उपभोक्ताओं का झुकाव एकदम स्थानीय समाचारों पर होता है और फिर अंतरराष्ट्रीय खबरें उनकी पसंद होती हैं.
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