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Tuesday, 7 May, 2024
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राशन और स्कूल नहीं, LPG सिलेंडर 2,500 रुपये पर- मैतेई नाकाबंदी के बीच कैसे जी रहा कुकी समुदाय

चुराचांदपुर में 105 राहत शिविरों को कथित तौर पर पीडीएस से राशन प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इसी तरह की कहानी एक अन्य पहाड़ी जिले टेंगनौपाल के शिविरों में भी चल रही है.

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चुराचांदपुर: कुकी-बहुल चुराचांदपुर में एक राहत केंद्र में, थेथीम, जो सात महीने की गर्भवती है, एक हॉल के अंदर बिखरे हुए पुराने, घिसे-पिटे कपड़ों के ढेर को खंगाल रही है. वह तब से यहीं है जब काकचिंग जिले के सुगनू में उसका घर 27 मई को कथित तौर पर जलकर राख हो गया था.

आवश्यक दवाओं की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करते हुए थेथीम, नए आपूर्ति की उम्मीद में हर दूसरे दिन नागरिक समाज समूह यंग वैफेई एसोसिएशन (वाईवीए) द्वारा संचालित सहायता केंद्र का दौरा करती है. लेकिन वह निराश होकर लौट आती है.

राहत शिविर में भोजन दिन में दो बार चावल और दाल तक ही सीमित है. इस अल्प पोषण और दवाओं की कमी के कारण, वह अपने बच्चे की भलाई के लिए चिंतित है और प्रार्थना करती है कि उसका जन्म सुरक्षित रूप में हो.

Thethiem rummages through a pile of old, worn-out clothes | Praveen Jain | ThePrint
थेथीम पुराने, घिसे-पिटे कपड़ों के ढेर को खंगालती हुई | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

थेथीम अकेली नहीं है.

चुराचांदपुर में 105 राहत शिविर है, जिनमें कई विस्थापित लोग रहते हैं, कथित तौर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से राशन और राज्य से राहत प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इसी तरह की कहानी एक अन्य पहाड़ी जिले टेंगनौपाल के शिविरों में भी चल रही है.

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शिविर दिन में केवल दो बार ही भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे भोजन उनके निवासियों के लिए एक विलासिता बन जाता है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इम्फाल घाटी में मैतेई लोग “कुकी क्षेत्रों के लिए मिलने वाले राशन को रोक रहे हैं” और स्थिति को खराब कर रहे हैं. इस रिपोर्टर को नाकाबंदी की पुष्टि इम्फाल में मैतेई ने की, जिन्होंने आरोप लगाया कि सुरक्षा बल कुकियों के प्रति पक्षपाती थे.

सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, तेंगनौपाल, चंदेल, साजिक तम्पाक और चुराचांदपुर की संचार लाइनें 3 मई से अवरुद्ध हैं, जिससे पहाड़ी इलाकों में आबादी के लिए आवश्यक वस्तुओं सहित सभी सामानों का इम्फाल से या होकर प्रवाह बाधित हो गया है. ऐसा पता चला है कि पहाड़ी क्षेत्र भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के भंडार और वैकल्पिक मार्गों से आने वाले थोड़े से हिस्से से काम चला रहे हैं.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में मैतेई को शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए निकाले गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद 3 मई को आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मैतेई के बीच चल रही जातीय झड़पें शुरू हो गईं. पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, हिंसा में अब तक 157 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “वे (मैतेई) इंफाल से कोई भी राशन नहीं ले जाने दे रहे हैं. अगर उन्हें पता चलता है कि कोई ट्रक पहाड़ी की ओर जा रहा है, तो वे राशन लूट लेते हैं और वाहन को आग लगा देते हैं.”

कुकी समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार के भी आरोप हैं – जिनसे प्रशासन इनकार करता है.

सूत्र ने दावा किया, “जो राशन भेजा जा रहा है उसमें भेदभाव हो रहा है, जो सांप्रदायिक वैमनस्य को और बढ़ा रहा है. टेंगनौपाल जिला 2,100 क्विंटल राशन का हकदार है, जिसमें से 1,400 क्विंटल राशन अन्य समुदायों (नागा और मार्रिंग्स के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों) को देने की अनुमति थी. लेकिन कुकी के लिए 700 क्विंटल की अनुमति नहीं दी गई.”

सूत्र ने कहा, “शिशु आहार, दवाएं और स्वच्छता संबंधी आवश्यक वस्तुएं हर जगह ख़त्म हो गई हैं. इंफाल से लक्षित क्षेत्रों में किसी भी ईंधन या एलपीजी आपूर्ति की अनुमति नहीं दी गई है.”

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा, इसके ठीक विपरीत, इंफाल घाटी में मैतेई समुदाय के लिए स्थापित राहत शिविरों को एनएच 37 के माध्यम से खाद्यान्न और दवाओं की नियमित आपूर्ति मिलती है, जो असम में सिलचर से होकर आती है और राज्य की दो परिवहन जीवन रेखाओं में से एक है (दूसरी एनएच 2 है, जो दीमापुर से होकर आती है). 10 जुलाई को दिप्रिंट द्वारा अकम्पट में एक मैतेई शिविर और चुराचांदपुर में एक कुकी शिविर की यात्रा के दौरान, असमानता साफ़ नजर आ रही थी.

जबकि मैतेई शिविर में पर्याप्त भोजन, चिकित्सा सुविधाएं और उनके बच्चों के लिए शिक्षा और अन्य सुविधाएं थीं, कुकी शिविर बुनियादी आवश्यकताओं से जूझ रहा था.

घाटी क्षेत्र में स्कूल फिर से खुल गए हैं, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र के सभी स्कूल भवनों को राहत शिविरों में बदल दिया गया है, और कक्षाएं निलंबित हैं.

चुराचांदपुर और टेंगनौपाल में कमी के कारण भी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है. एक गैस सिलेंडर, जिसकी कीमत झड़पों से पहले 1,800 रुपये थी, अब 2,500 रुपये हो गई है. स्थानीय निवासियों ने दिप्रिंट को बताया कि चावल की कीमतें बढ़ गई हैं, जबकि पेट्रोल ब्लैक में बेचा जा रहा है.

इस स्थिति के कारण एटीएम के बाहर लंबी कतारें लग गई हैं क्योंकि लोगों को नकदी तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

दिप्रिंट से बात करते हुए चुराचांदपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कार्तिक मल्लादी ने भोजन की कमी को स्वीकार किया. हालांकि, उन्होंने कहा कि आपूर्ति क्षेत्र के जिला कलेक्टर द्वारा बनाए रखी जा रही है, जो आपूर्ति खरीद रहे हैं.

जब दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए चुराचांदपुर के जिला कलेक्टर तारुल कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि एफसीआई गोदाम में पर्याप्त चावल का भंडार है, जहां से पीडीएस राशन की आपूर्ति की जा रही है, और इसका राज्य से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने कहा, “हमारे पास एफसीआई गोदाम में पर्याप्त स्टॉक है और हम लोगों को पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर रहे हैं. बेशक, अन्य आवश्यक वस्तुओं के परिवहन के मुद्दे हैं, और कानून और व्यवस्था की स्थिति के कारण मुद्रास्फीति है, लेकिन हम प्रयास कर रहे हैं.”


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पड़ोसियों से मदद

निवासियों को भोजन और आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, वाईवीए जैसे संगठन कुछ सहायता प्रदान करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. फिर भी, पहाड़ों में शासन और सुविधाओं की कमी ने विस्थापित आबादी, शिविरों में रहने वाले लोगों और सुरक्षा बलों के लिए चुनौतियों को बढ़ा दिया है.

पलेल में कुकी कल्याण समूहों के प्रतिनिधि रोमियो (एक ही नाम से जाने जाते है) ने आरोप लगाया कि 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद से चावल का एक भी दाना उन तक नहीं पहुंचा है.

उन्होंने कहा, “पहाड़ियों पर प्रशासन नहीं है, कोई शासन नहीं है, कोई सुविधाएं नहीं हैं. हमारे पास ऐसी कोई सरकार नहीं है जिस पर हम भरोसा कर सकें कि वह हमारी देखभाल करेगी या निष्पक्ष रहेगी. संघर्ष शुरू होने के बाद से चावल का एक भी दाना हम तक नहीं पहुंचा है. राज्य और अपराधी बस हमें मरते हुए देखना चाहते हैं.”

रोमियो ने कहा, “दैनिक वेतन कमाने वाले लोग मर रहे हैं और अपने आसपास के लोगों की दया पर निर्भर हैं, जो उनकी मदद कर रहे हैं.”

वाईवीए राहत समिति के सह-संयोजक डेविड वैफेई ने कहा कि वे लगभग आठ शिविरों में सेवा दे रहे हैं जिनमें 5,000 लोग हैं.

उन्होंने कहा, “चावल की लगभग 200 बोरियां हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन 45 किलोग्राम है, जिसे वे प्रबंधित करने में सक्षम हैं, जो एक महीने के लिए होती है लेकिन एक महीने तक नहीं चलती है. लेकिन हम किसी तरह प्रबंधन कर रहे हैं.”

एसपी मल्लादी के अनुसार, यह सिर्फ अनाज नहीं है, “बल्कि पुलिस दस्तावेजों को भी मैतेई द्वारा मोइरान (घाटी क्षेत्र) से अवरुद्ध किया जा रहा है.”

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “यहां तक कि अगर हमें इंफाल स्थित मुख्यालय से किसी फाइल की जरूरत होती है, तो हम मुसलमानों को मानव वाहक के रूप में इस्तेमाल करते हैं और फाइलों को छिपाकर लाते हैं. अगर कोई मैतेई उन फाइलों को देख लेगा जिन पर चुराचांदपुर लिखा हुआ है, तो वे उन्हें जला देंगे.”

सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक अन्य सूत्र के अनुसार, जबकि चुराचांदपुर अभी भी मिजोरम के माध्यम से राशन का प्रबंधन करने में सक्षम है, टेंग्नौपाल नहीं है. इसकी एकमात्र जीवन रेखा उखरुल की ओर से है, जो एक पहाड़ी और धुली हुई संकरी सड़क है, जिससे आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी में काफी देरी होती है.

ऊपर उद्धृत सूत्र ने कहा, “मैतेई द्वारा भेदभाव और अवैध आर्थिक नाकेबंदी और प्रशासन की हस्तक्षेप करने में असमर्थता ने लोगों का उन पर से विश्वास खो दिया है.”

जीवित रहने के लिए, निवासी पड़ोसी समुदायों की सहायता पर निर्भर हैं.

रोमियो ने कहा, “इलाके में नागाओं से भी मदद मिल रही है. हालांकि उन्होंने खुलकर कुछ नहीं कहा है, लेकिन दोनों समुदायों की हर संभव मदद कर रहे हैं.”

बढ़ी हुई कीमतें, वैकल्पिक पेशे

आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों ने चुराचांदपुर में प्रभावित लोगों को आजीविका कमाने के वैकल्पिक साधनों का सहारा लेने के लिए मजबूर कर दिया है. दिहाड़ी मजदूर और बुनकर अब पेट्रोल पंपों के बाहर बोतलों में खुला पेट्रोल बेच रहे हैं, जहां लंबी कतारें देखी जा रही हैं.

ऊपर उद्धृत सूत्र ने कहा, “लोगों को गैर-पारदर्शी सौदों के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं खरीदने, म्यांमार से तस्करी करने या मिजोरम और नागालैंड से खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है.”

Women selling loose petrol in Churachandpur | Praveen Jain | ThePrint
चुराचांदपुर में खुला पेट्रोल बेच रही महिलाएं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

विक्रेताओं ने दिप्रिंट को बताया, स्थिति के कारण कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है – पेट्रोल, जिसकी कीमत झड़पों से पहले 70 रुपये प्रति लीटर थी, 120 रुपये से 150 रुपये प्रति 750 मिलीलीटर की बोतल के बीच बेची जा रही है, और 45 किलोग्राम चावल की बोरी, जिसकी कीमत कभी 1,800 रुपये थी, अब 3,000 रुपये हो गई है.

वुंजबोई, एक बुनकर जो अब चुराचांदपुर में पेट्रोल बेच रहे हैं, ने कहा, “हम बुनकर और दिहाड़ी मजदूर हैं जिन्होंने अब पेट्रोल बेचने का यह पेशा अपना लिया है. हमें एक डीलर से पेट्रोल मिलता है, जो इसे मिजोरम से लाता है और हमें 100 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से बेचता है. फिर हम इसे आगे 120 रुपये से 150 रुपये में बेचते हैं. हर दिन रेट बदलता रहता है.”

चुराचांदपुर के कनान गांव के निवासी जॉर्ज ने कहा, “हम दान और हमारे द्वारा एकत्र किए गए धन पर जीवित हैं. लेकिन कमाई का कोई जरिया नहीं होगा तो, हम कब तक भोजन खरीदने के लिए पैसे खर्च कर पाएंगे?”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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