scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होमदेश‘कोई अधिकार नहीं’ — ED ने झारखंड में खनन जांच में सोरेन सरकार के ‘हस्तक्षेप’ पर उठाए सवाल

‘कोई अधिकार नहीं’ — ED ने झारखंड में खनन जांच में सोरेन सरकार के ‘हस्तक्षेप’ पर उठाए सवाल

राज्य ने अधिकारियों को जारी किए गए ईडी समन के लिए आधार मांगा था. एजेंसी ने प्रमुख सचिव को पत्र लिख कर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड सरकार को पत्र लिख कर साहिबगंज जिले में कथित अवैध पत्थर खनन की चल रही जांच का विवरण मांगने और राज्य के पांच अधिकारियों को तलब करने के बारे में सवाल उठाया है.

यह ऐसे समय में आया है जब झारखंड कैबिनेट सचिवालय और सतर्कता की प्रमुख सचिव वंदना डाडेल, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की प्रमुख सचिव भी हैं, ने राज्य के कुछ अधिकारियों को जारी किए गए ईडी समन के लिए आधार मांगा था.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दादेल का ज्ञापन 9 जनवरी को हेमंत सोरेन सरकार द्वारा एक नए एसओपी के साथ आने की पृष्ठभूमि में आया है, जिसके तहत “बाहरी एजेंसियों” द्वारा सरकारी अधिकारियों को जारी किए गए सभी सम्मनों का जवाब सचिव, कैबिनेट सचिवालय के सतर्कता विभाग के कार्यालय से गुज़रना होगा.

बुधवार को ईडी के रांची जोनल कार्यालय ने दादेल के उस मेमो का जवाब दिया जिसमें उन्होंने “अनुसूची अपराधों” के बारे में पूछताछ की थी जिसके लिए सरकारी अधिकारियों को राज्य को सूचित किए बिना बुलाया गया था.

दिप्रिंट ने ईडी के पत्र की एक प्रति देखी है जिसमें कहा गया है कि प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से नहीं बुलाया गया है और — नौशाद आलम, राम निवास यादव और तीन अन्य — को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50(2) के तहत बुलाया गया है.

यादव उपायुक्त हैं जबकि नौशाद आलम साहिबगंज के पुलिस अधीक्षक हैं, दोनों कथित अवैध पत्थर खनन मामले में जांच के दायरे में हैं. माना जाता है कि ईडी के मुख्य गवाह विजय हांसदा के मुकरने में आलम की भूमिका है.

खनन मामला साहिबगंज पुलिस द्वारा हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, कथित सरगना और झारखंड सरकार के अधिकारियों सहित अन्य व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर से उपजा है.

इससे पहले 3 जनवरी को ईडी ने पत्थर खनन जांच के सिलसिले में झारखंड के सीएम के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद पिंटू, साहिबगंज के डिप्टी कमिश्नर और डीएसपी के आवासों सहित 12 स्थानों की तलाशी ली थी.

दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि ईडी का अनुमान है कि साहिबगंज से लगभग 23.26 करोड़ क्यूबिक फीट पत्थर, जिसकी कीमत लगभग 1,250 करोड़ रुपये है, अवैध रूप से खनन किया गया था.


यह भी पढ़ें: दिल्ली पुलिस ने क्लीनिक में रैकेट का किया भंडाफोड़- टेक्नीशियन, स्टाफ के साथ मिलकर करते थे मरीजों की सर्जरी


‘संसद से शक्ति प्राप्त करें’

कड़े शब्दों में लिखे पत्र में ईडी ने कहा कि जांच अधिकारी को मामले से संबंधित किसी भी जानकारी को प्रमुख सचिव के कार्यालय के साथ साझा करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि वह मामले का विवरण प्राप्त करने या हस्तक्षेप करने के लिए अधिकृत नहीं है.

इसने प्रमुख सचिव से मामले में हस्तक्षेप के बारे में स्पष्टीकरण मांगा और साथ ही यह भी बताया कि कोई भी आंतरिक विभागीय आदेश ईडी अधिकारियों पर लागू नहीं होगा क्योंकि एजेंसी को अपनी जांच शक्तियां संसद द्वारा अधिनियमित पीएमएलए से प्राप्त होती हैं.

ईडी ने लिखा, “यह स्पष्ट करना है कि अकेले केंद्र सरकार को धारा 52 और 73 के तहत पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने या नियम बनाने की शक्ति सौंपी गई है और धारा 73 यह प्रावधान करती है कि केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति धारा 74 के तहत संसद द्वारा अनुमोदन के अधीन है. धारा 52 और 73 के प्रावधानों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि राज्य सरकार को पीएमएलए के प्रावधानों के तहत जांच करने या प्रावधानों के दायरे में हस्तक्षेप करने के लिए कोई निर्देश जारी करने या कोई नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है.”

पिछले हफ्ते दिप्रिंट से बात करने वाले ईडी अधिकारियों ने राज्य की एसओपी को ‘अजीब’ और जांच को धीमा करने की ‘देरी करने वाली रणनीति’ करार दिया था.

पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत, उन्होंने कहा, निदेशक, अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक या सहायक निदेशक रैंक के ईडी अधिकारियों को किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार है, जिसकी उपस्थिति वे ज़रूरी मानते हैं, चाहे वह साक्ष्य देने के लिए हो, या किसी भी जांच के दौरान कोई भी रिकॉर्ड प्रस्तुत करने की.

इस बीच, एजेंसी ने आरोप लगाया कि झारखंड सरकार ने दो “परोक्ष उद्देश्यों ” से जानकारी मांगी थी.

ईडी ने लिखा, “आपके द्वारा पीएमएलए के तहत आईओ के साथ-साथ राम निवास यादव, आईएएस, जिसे पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाया गया है, को जारी किए गए अनुचित निर्देश/दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से दो हासिल करने के इरादे से हैं – एक चल रही संवेदनशील जांच के बारे में गोपनीय जानकारी प्राप्त करना और दूसरा धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए व्यक्तियों को धारा 50 (3) के प्रावधानों की अवज्ञा करने के साथ-साथ विशेष तरीके से जांच को प्रभावित करने के लिए राज्य सरकार के अधिकारी द्वारा अनुमोदित अनुरूप जानकारी प्रस्तुत करने के लिए मजबूर करना.”

साथ ही, ईडी ने चेतावनी दी कि उसके अधिकारी ज़रूरी कार्रवाई करेंगे, जिसमें चल रही जांच को प्रभावित करने, लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने के साथ-साथ समन की अवहेलना करने की साजिश रचने जैसे अपराधों के लिए आपराधिक मामले दर्ज करना शामिल है.

ईडी ने कहा, “आपके संचार की सामग्री से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आप धारा 52 के तहत केंद्र सरकार की शक्ति को हड़पने की कोशिश कर रहे हैं. जिसके अनुसार केंद्र सरकार पीएमएलए के उचित प्रशासन के साथ-साथ पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बनाने के लिए पीएमएलए की धारा 73 और 74 के तहत केंद्र सरकार और संसद की शक्ति के लिए निर्देश जारी कर सकती है.”

यह देखते हुए कि राज्य के पास इस संबंध में कोई अधिकार नहीं है, संघीय एजेंसी ने दावा किया, प्रमुख सचिव का संचार “राज्य सरकार की कानूनी क्षमता से परे है”.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘आधुनिकीकरण’ के लिए मिले पैसे का CAPF ने 10% से भी कम किया उपयोग, ITBP, NSG, SSB के लिए ज़ीरो है आंकड़ा


 

share & View comments