नयी दिल्ली, छह फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया गया है कि अविवाहित मृत पुरुष के संरक्षित किए गए वीर्य के नमूने को उसके माता-पिता या कानूनी वारिसों को जारी करने के लिए देश में कोई कानून नहीं है।
सर गंगा राम अस्पताल ने उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा कि केंद्र सरकार के राजपत्र में ”एआरटी” (सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी) अधिनियम, एक अविवाहित व्यक्ति के वीर्य के नमूने के निपटान या उपयोग की प्रक्रिया को निर्दिष्ट नहीं करता है, जिसकी मृत्यु हो गई है।
अस्पताल की प्रतिक्रिया एक दंपति की याचिका पर आई है, जिसमें गंगा राम अस्पताल के एक केंद्र से अपने मृत बेटे के संरक्षित किए गए वीर्य के नमूने को जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में याचिका पर अस्पताल और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं के कैंसर से पीड़ित अविवाहित बेटे ने कीमोथैरेपी शुरू होने से पहले वर्ष 2020 में अपने वीर्य के नमूने को संरक्षित किया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 30 साल की उम्र में मरने वाले अपने बेटे के एकमात्र जीवित उत्तराधिकारी होने के नाते बेटे के शरीर के अवशेषों पर उनका सबसे बड़ा हक है।
उन्होंने कहा कि मृतक के शुक्राणु प्राप्त करने का उद्देश्य उनके मृत बेटे की वंशावली को जारी रखना है।
भाषा शफीक नरेश
नरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.