नई दिल्ली: कोविड-19 पर मंत्री समूह (जीओएम) की आख़िरी बैठक, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने की थी, 9 जून को हुई थी. कोरोनावायरस संकट पर स्वास्थ्य मंत्रालय की आख़िरी ब्रीफिंग, उसके दो दिन बाद 11 जून को हुई थी. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की टास्क फोर्स की आख़िरी बैठक को, दो हफ्ते से ज़्यादा हो गए हैं.
इधर भारत में कोविड-19 के मामले तेज़ी से बढ़कर 4,73,105 हो गए हैं, और पिछले 24 घंटों में मामलों और मौतों की संख्या, क्रमश:16,922 और 418 हो गई है, उधर केंद्र सरकार मोर्चे पर कम दिखाई दे रही है, और पीछ हटकर पृष्ठभूमि में ऐसे चली गई है, जैसे सामरिक तौर पर वापसी कर रही हो.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का चार्ज, सीधे अपने हाथ में लेकर भले ही कुछ ज़्यादा दिखने लगे हों, लेकिन बाकी टॉप सरकारी मशीनरी, जो महामारी के शुरूआती हफ्तों में हर जगह मौजूद थी, अब मुश्किल से ही दिखाई या सुनाई देती है.
इस रिपोर्ट के लिए दिप्रिंट ने डॉ हर्ष वर्धन को कई बार कॉल किया, और टेक्स्ट मैसेज भी भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
मंत्री समूह की बैठकें
मंत्री समूह का गठन 3 फरवरी को, दुनिया भर में उभर रही कोविड की स्थिति पर, नज़र रखने के लिए किया गया था. डॉ हर्ष वर्धन के अलावा, मंत्री समूह के दूसरे सदस्य हैं- नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी, विदेश मंत्री एस जय शंकर, गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय, स्वतंत्र प्रभार के जहाज़रानी राज्यमंत्री मंसुख मांडविया और स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे.
लेकिन ऐसा लगता है कि समूह की बैठकों का, कोविड संकट के आकार के साथ उल्टा अनुपात है, क्योंकि अधिकारियों ने भी ग़ैर-कोविड सेवाओं को वापस पटरी पर लाने के लिए, राज्य सरकारों के साथ वीडियो कॉनफ्रेंस बैठकें शुरू कर दी हैं.
ये नमूना देखिए: फरवरी में जब देश में कुल तीन केस थे- और वो तीनों केरल में थे जो चीन के वूहान से लौटे थे, तो मंत्री समूह ने 3 और 13 फरवरी को दो बैठकें कीं.
अगले महीने, इसकी कई बैठकें हुईं- 2,4,11,16,19,25, और 31 मार्च को, जब भारत भर में कुल मामले बढ़कर 1,251 हो गए थे.
अप्रैल में, मंत्री समूह की मीटिंग तीन बार- 9,17 और 25 अगस्त को हुई, जबकि इनमें से आख़िरी तारीख़ तक, कुल मामले बढ़कर 21,700 हो गए थे.
फिर मई में इनकी बैठक दो बार- 5 और 15 तारीख़ को हुई, जब कुल मामले बढ़कर 81,970 हो चुके थे.
इस महीने अभी तक, ये बैठक एक बार 9 जून को हुई है, जिस दिन मामलों की संख्या 2,66,598 थी.
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प्रशासनिक अधिकारियों पर भरोसा
मंत्री समूह की बैठकों की घटी हुई आवृति, संयोग से 11 सशक्त समूहों के गठन से मेल खाती है. सिविल सर्वेंट्स की अगुवाई में ये समूह, कोविड प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को देखने के लिए बनाए गए थे. इसकी वजह से अटकलबाज़ियां शुरू हो गईं थीं, कि कोविड रणनीति को अस्ल में सिविल सर्वेंट्स ही चला रहे हैं. इन अटकलबाज़ियों को इससे भी बल मिलता है, कि कैबिनेट सचिव की समीक्षा बैठकें जारी हैं, और तक़रीबन हर हफ्ते होती हैं.
सिविल सर्वेंट्स पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता उस वक़्त नज़र आई, जब 30 मई को सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के तीन समूहों- इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए), इंडियन एसोसिएशन फॉर प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम), और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट्स (आईएई)- ने एक बयान जारी करके सरकार पर आरोप लगाया, कि फील्ड अनुभव वाले प्रशिक्षित महामारी विज्ञानियों की अपेक्षा, वो ‘आम प्रशासनिक नौकरशाहों पर अधिक भरोसा’ कर रही है.
बयान में कहा गया,’अगर भारत सरकार ने महामारी विज्ञानियों से सलाह मश्वरा किया होता, जिनके पास बीमारे फैलने के डाइनामिक्स की, मॉडलर्स से बेहतर समझ है, तो शायद उसके हक़ में ज़्यादा अच्छा होता’.
बयान में आगे कहा गया, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सीमित जानकारी के आधार पर, ऐसा लगता है कि सरकार शुरू में, क्लीनिशियंस और अकादमिक महामारी विज्ञानियों से सलाह ले रही थी, जिनकी ट्रेनिंग और कौशल सीमित होते हैं. नीति बनाने वालों ने ज़ाहिरी तौर पर, आम प्रशासनिक नौकरशाहों पर अधिक भरोसा किया’.
मंत्री समूह की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर, हाल ही में रियाटर हुए एक सिविल सर्वेंट ने, जो अपनी पहचान नहीं कराना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया: ‘इन संस्थानों के पास आप तभी जाते हैं, जब आपको राष्ट्रीय स्तर का कोई फैसला लेना होता है. या तो आप इन संस्थानों के पास जा सकते हैं, या कहीं और जा सकते हैं.’
अधिकारियों का कहना है कि वो फैसले, जिन्हें वैसी मंज़ूरी की ज़रूरत होती है, पीएमओ द्वारा बहुत जल्दी और प्रभावी ढंग से निपटा दिए जाते हैं, इसलिए मंत्रियों की भूमिका बहुत सीमित है. मोदी सरकार के साथ शुरू से ही ऐसा रहा है, लेकिन महामारी के दौरान ये और बढ़ गया है.
स्वास्थ्य मंत्री और आईसीएमआर टास्क फोर्स नदारद
कोविड लड़ाई के चेहरे के तौर पर, स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन की ग़ैर-मौजूदगी का मुद्दा, पिछले तीन महीने में बार बार उठता रहा है, लेकिन 22 मई को, विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष की निर्वाचित कुर्सी संभालने के बाद से, उन्होंने विशेष रूप से एक लो प्रोफाइल रखा हुआ है.
संभवतया मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, विभिन्न अस्पतालों और नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल जैसी फ्रंटलाइन एजेंसियों के उनके दौरे, कम हो गए हैं.
वर्धन का ऐसा आख़िरी दौरा 24 मई को हुआ था, जब उन्होंने दिल्ली के नजफगढ़ में चौधरी ब्रहम प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान (सीबीपीएसीएस) में, कोविड-19 को समर्पित हेल्थ सेंटर का मुआयना किया था.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंत्री के लिए कहा:’उन्हें दौरे करके हर किसी को ख़तरे में क्यों डालना चाहिए?’
लेकिन पिछले हफ्ते ही, गृह मंत्री अमित शाह ने लोक नारायण जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल का औचक निरीक्षण किया, जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत एक कोविड अस्पताल है.
कोविड-19 पर आईसीएमआर की टास्क फोर्स के एक सदस्य ने, अपनी बैठकों के लिए कहा, कि वो ‘पिछले क़रीब दो हफ्तों से नहीं हुई हैं. इनकी आवृति यक़ीनन घट गई है’.
आईसीएमआर की ख़ामोशी पर एक सीनियर स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा: ‘उनका काम तकनीकी गाइडेंस देना है जो वो करते आ रहे हैं. टेस्टिंग रणनीति, टेस्ट या अन्य किसी चीज़ में, यदि किसी बदलाव की ज़रूरत होगी, तो बयान जारी किया जाएगा.’
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ब्रीफिंग्स
जनवरी में महामारी की शुरूआत में, स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जानकारी का प्रवाह बिजली की गति से आता था, किसी भी घंटे, अकसर आधी रात के बाद भी, चूंकि नए आदेश आ रहे थे, और वीज़ा व निर्यात पर पाबंदियां लगाई जा रहीं थीं.
मार्च में शुरू हुई कोविड ब्रीफिंग्स हर रोज़ घड़ी की सुईं के साथ, शाम 4 बजे शुरू हो जातीं थीं, रविवार और छुट्टियों में भी.
मई के मध्य से, ये ब्रीफिंग्स कम होने लगीं, और अब वीक-एंड्स पर बंद हो गई हैं.
लेकिन, पिछले 12 दिन सबसे लम्बा समय रहा है, जब कोई ब्रीफिंग नहीं हुई है, हालांकि एक लिखित अपडेट हर रोज़ मिलता है.
एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया: ‘आइडिया ये है कि ध्यान पूरी तरह दिल्ली पर लगा रहे. गृह मंत्रालय पहले ही उस पर बयान जारी कर रहा है, जैसे कि हम पूरे देश की स्थिति पर जारी कर रहे हैं. जब हमारे पास कुछ कहने को होगा, तो कहेंगे.’
मामलों में उछाल आने के साथ ही, जानकारी साझा करने के तरीक़े में भी बदलाव हुए हैं. कोविड मामलों के ज़िलेवार आंकड़े, जो पहले ऑनलाइन उपलब्ध थे, अब हटा लिए गए हैं.
रोज़ की संख्या और मामले, स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर अपडेट किए जाते हैं, लेकिन आधिकारिक बयानों में केवल पॉजिटिव बातें होती हैं- कितनी संख्या में लोग ठीक हुए, आबादी के अनुपात में भारत में कुल मामले और मौतें सबसे कम हैं, और राज्यों से कुछ पॉज़िटिव कहानियां.
पिछले वीकएंड पर, इस बात का ज़िक्र था, कि मुम्बई के धारावी ने कैसे बीमारी पर क़ाबू पाया, जबकि मंगलवार को, कोविड रणनीति में ओडिशा सरकार के, टेक्नोलॉजी और ज़मीनी लोकतंत्र के इस्तेमाल पर रोशनी डाली गई.
बयान में नए मामलों या मौतों की संख्या का कोई उल्लेख नहीं होता, लेकिन ये ज़रूर होता है कि ठीक हो गए मरीज़ों की संख्या, अब एक्टिव मामलों की संख्या से अधिक है. महामारी विज्ञानियों का कहना है कि महामारी के पूरे कार्यकाल में, इस बात का कोई मतलब नहीं बनता.
ये पूछे जाने पर कि ब्रीफिंग्स अनियमित क्यों हो गई हैं, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम दो प्रेस ब्रीफ जारी कर रहे हैं’.
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हम जितना कर सकते थे, किया है
इस पूरी प्रवृति के बारे में पूछे जाने पर, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा: ‘हमने वो सब किया है जिसकी ज़रूरत थी, वो सब जो हम कर सकते थे. लोगों को इसके साथ ही रहना सीखना होगा.’
लेकिन, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, सुजाता राव ने पीछे हट जाने के लिए सरकार की कड़ी आलोचना की.
राव ने पूछा,’स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कोई ख़ास कार्रवाई नहीं हो रही है, वो ख़ामोश है. बेशक इस भारत-चीन विवाद (वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव) ने उसकी जगह ले ली है…लेकिन फिर भी, स्वास्थ्य अगर राज्य का विषय है, तो उन्होंने इसे आपदा प्रबंधन क़ानून, और महामारी कानून के तहत क्यों ले लिया है?’
उन्होंने आगे कहा,’संक्रामक बीमारियों का नियंत्रण पूरी तरह स्वास्थ्य मंत्रालय का ज़िम्मा है, ये पूरी तरह केंद्र सरकार का काम है. अगर ये उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है, तो फिर उन्होंने राज्यों से पूछे बिना, लॉकडाउन क्यों घोषित कर दिया?’
‘जब चीज़ें अच्छी थीं, तो उन्होंने वही किया जो वो चाहते थे, और अब जब चीज़ें उनके माफ़िक़ नहीं हो रहीं, तो वो अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं.’
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