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Monday, 23 December, 2024
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लड़की पैदा होने पर नहीं लेते कोई फीस, ऐसा है डॉ. गणेश का ‘बेटी बचाओ जन-आंदोलन’

डॉ. गणेश राख के मुताबिक 2012 में उन्होंने अपने मेडिकेयर अस्पताल में यह पहल शुरू की थी, जो अब विभिन्न राज्यों और कुछ अफ्रीकी देशों में फैल गई है.

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नई दिल्ली: पुणे के डॉक्टर गणेश राख 2012 से ‘बेटी बचाओ जन-आंदोलन’ के रूप में लड़कियों के पैदा होने पर कोई फीस नहीं लेते है. अपने इस अभियान में वह अपने अस्पताल में पैदा होने वाली बालिकाओं के माता पिता से इलाज की फीस नहीं लेते हैं साथ ही यह भी सुनिश्चित करते हैं कि नवजात का स्वागत गर्मजोशी से हो.

डॉक्टर गणेश महाराष्ट्र के पुणे में प्रसूति-सह-मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल चलाते हैं. अपने अस्पताल में कन्या शिशु के मुफ़्त इलाज के साथ वो भ्रूण हत्या और शिशु हत्या के खिलाफ जागरूकता पैदा करने की भी कोशिश करते है.

उनका दावा है कि उन्होंने पिछले 11 सालों में करीब 2,400 कन्याओं के जन्म पर उनके माता-पिता और रिश्तेदारों से कोई फीस नहीं ली है.


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अस्पताल की शुरुआत

डॉ. राख के मुताबिक अस्पताल के शुरुआती वर्षों में 2012 से पहले उन्हें अपने जीवन में कुछ ऐसे अनुभव मिले जिससे वह बेहद दुखी हुए और वही से उन्होंने अपने अस्पताल में लड़की पैदा होने पर कोई फीस न लेने और नवजात का स्वागत धूम-धाम से करने का निर्णय लिया.

डॉ. गणेश राख के मुताबिक 2012 में उन्होंने अपने मेडिकेयर अस्पताल में यह पहल शुरू की थी, जो अब विभिन्न राज्यों और कुछ अफ्रीकी देशों में फैल गई है.

डॉ राख ने कहा कि एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में छह करोड़ से अधिक कन्या भ्रूण हत्या के मामले सामने आए हैं. उन्होंने कहा कि ‘यह एक तरह का ‘नरसंहार’ है.’

उन्होंने कहा ‘भ्रूण हत्या’ का एक मुख्य कारण बेटे की चाह है. उन्होंने कहा कि यह किसी एक क्षेत्र, राज्य या किसी देश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक सामाजिक समस्या है.


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बेटी पैदा होने पर परिजनों की प्रतिक्रिया

डॉ. राख ने एक लड़की को अपनी गोद में लिए हुए कहा, ‘अस्पताल के शुरुआती वर्षों में 2012 से पहले हमें यहां अलग-अलग अनुभव मिले, जहां कुछ मामलों में लड़की के पैदा होने पर परिवार के सदस्य उसे देखने आने से कतराते दिखे. उस दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया और इसने मुझे कन्या शिशु को बचाने और लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया.’

उन्होंने कहा कि लड़का पैदा होने पर कुछ परिवार खुशी-खुशी अस्पताल आते हैं और बिल का भुगतान करते हैं, लेकिन लड़की पैदा होने पर लोगो के उदासीन रवैया देखने को मिलता है.

उन्होंने कहा, ‘हमने लड़की पैदा होने पर पूरा चिकित्सा शुल्क माफ करने का फैसला किया और बाद में इस पहल को ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ का नाम दिया. हमने ​​पिछले 11 वर्ष में 2,400 से अधिक बालिकाओं के जन्म पर कोई शुल्क नहीं लिया है.’


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‘बेटी बचाओ’ पहल के सकारात्मक पक्ष

डॉ राख ने कहा, ‘हमारे सर्वेक्षण के अनुसार, हाल में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है और यह एक सकारात्मक निष्कर्ष है.’

उसी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर शिवदीप उंद्रे ने कहा कि ‘अभियान के तहत वे देश के विभिन्न राज्यों में पहुंच रहे हैं और लैंगिक जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं.’

वसीम पठान, जो पिछले महीने जुड़वां बच्चों (एक लड़का और एक लड़की) के पिता बने ने कहा किजिस तरह से अस्पताल के कर्मचारियों ने उनके बच्चों के जन्म का स्वागत किया, उससे वह अभिभूत हैं.

पठान ने कहा कि अस्पताल ने अपनी नीति के अनुसार बच्ची के जन्म में लगने वाला शुल्क माफ कर दिया और उनकी पत्नी को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर एक छोटे से उत्सव का आयोजन किया गया.

उन्होंने कहा, ‘अस्पताल ने लॉबी को फूलों और गुब्बारों से सजाया, केक काटा, बच्ची के समर्थन में नारे लगाए और जब हम अस्पताल से निकल रहे थे तो मेरे जुड़वा बच्चों पर फूल बरसाए गए.’

अस्पताल में अभियान से जुड़े लालसाहेब गायकवाड़ ने कहा कि अस्पताल से छुट्टी के समय इस तरह के उत्सव के पीछे का उद्देश्य कन्या शिशु के जन्म पर माता-पिता को गर्व महसूस कराना और इसे एक विशेष आयोजन बनाना है.

डॉ. गणेश का ये अस्पताल और उनका बेटी बचाओ जन आंदोलन, ‘बेटी बचाओ’ का एक उत्तम उदाहरण बन चुका है.


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