नई दिल्ली: दिल्ली के सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) ने खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के पूर्व सदस्य देविंदर पाल सिंह भुल्लर की रिहाई पर अपना फैसला फिलहाल टाल दिया है. भुल्लर को 1993 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बम धमाकों के मामले में दोषी ठहराया गया था.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि एसआरबी ने बुधवार की बैठक में बोर्ड के सदस्यों के बीच ‘अपर्याप्त विचार-विमर्श’ के कारण कोई भी फैसला अपनी अगली बैठक तक टाल दिया. अभी यह तय नहीं है कि अगली बैठक कब होगी.
20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले ही शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और विभिन्न सिख समूहों ने भुल्लर की रिहाई के लिए अपनी आवाज बुलंद की थी.
बुधवार के घटनाक्रम को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया जताई जा रही है. गौरतलब है कि तिहाड़ जेल का प्रशासनिक अधिकार उनकी सरकार के पास ही है, जहां 57 वर्षीय भुल्लर एक कैदी के तौर पर पंजीकृत है. हालांकि, स्वास्थ्य कारणों से एक विशेष व्यवस्था के तहत उसे 2015 में ही पंजाब की जेल में भेज दिया गया था.
एसएडी नेता और पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने बुधवार को एक के बाद एक कई ट्वीट करके कहा कि केजरीवाल ने ‘वादा’ करने के बाद भी ‘एस. देविंदर पाल सिंह भुल्लर की रिहाई फिर से रोककर वास्तव में अपने सिख-विरोधी और पंजाब-विरोधी रुख का परिचय दिया है’, अकाली दल ‘यह लड़ाई जारी रखेगा.’
Delhi CM @ArvindKejriwal has bared his true anti-Sikh and anti-Punjab fangs by blocking S Devinder Pal Singh Bhullar's release again. We will make him face the consequences of his communal mindset. Bhagwant & entire @AAPPunjab have a lot to explain to Sikhs now. 1/3
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) March 2, 2022
भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी भुल्लर को रिहाई का फैसला टलने को लेकर केजरीवाल को ‘झूठ’ और ‘पाखंडी’ करार देते हुए उन पर निशाना साधा.
Deferring decision for release of Devinder Pal Singh Bhullar by Delhi govt once again proved that @ArvindKejriwal is a liar, cunning, deceitful & hypocrite
We will not let his style of politics encroach over human rights. We will approach Supreme Court for #JusticetoBhullar@ANI pic.twitter.com/Hja28SCI8A— Manjinder Singh Sirsa (@mssirsa) March 2, 2022
बहरहाल, आप के प्रवक्ताओं ने इस मामले पर प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट की तरफ से किए गए फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
पंजाब चुनाव से पहले भुल्लर की रिहाई के लिए दिल्ली और पंजाब दोनों जगहों विरोध प्रदर्शन हुए थे. गौरतलब है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में आप का सब कुछ दांव पर लगा है और उसने सभी 117 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे. वहीं, आप ने अन्य दलों पर इस मुद्दे के राजनीतिकरण का आरोप लगाते हुए कहा है कि एसआरबी के कई हितधारक हैं और अकेले राज्य सरकार अपने दम पर कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकती है.
केजरीवाल ने 29 जनवरी को संवाददाताओं से कहा था कि उनकी सरकार ने एसआरबी की बैठक बुलाई है, लेकिन तारीख नहीं बताई थी.
यह भी पढ़ें- मोदी के गढ़ वाराणसी में BJP वॉर रूम में बनाए रहती है गहमा-गहमी, हर वोटर तक पहुंचने की कोशिश
‘निर्णय टला, खारिज नहीं किया गया’
एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि बुधवार की बैठक की सूची में भुल्लर का नाम होना ‘सामान्य’ बात थी.
अधिकारी ने कहा, ‘एसआरबी की तरफ से हर साल लगभग 80-100 कैदियों को रिहा किया जाता है. मौत की सजा पाए कैदियों को छोड़कर, उन दोषियों को समय से पहले रिहा करने पर विचार किया जाता है, जिन्होंने बिना किसी छूट (सजा में कम) के कम से कम 14 साल जेल में गुजार लिए हो या फिर छूट के साथ 20 साल पूरे कर लिए हों. नियमों के तहत एसआरबी की बैठकों के लिए रखी जाने वाली सूची में भुल्लर का नाम शामिल होना सामान्य बात है.’
उन्होंने कहा कि भुल्लर का मामला 11 दिसंबर 2020 को भी एसआरबी के एजेंडे का हिस्सा था, लेकिन बोर्ड ने उसकी जल्द रिहाई के खिलाफ फैसला किया था.
अधिकारी ने बताया, ‘आमतौर पर, किसी एसआरबी बैठक में जिस नाम को खारिज कर दिया जाता है, उसे अगली बैठक की सूची में शामिल नहीं किया जाता. 27 अगस्त 2021 को एसआरबी की पिछली बैठक में भुल्लर का नाम नहीं आया था, इसलिए इसे इस बार यह शामिल होना ही था.’
अधिकारी के मुताबिक बुधवार की बैठक की सूची में 28 दोषियों के नाम थे.
अधिकारी ने कहा, ‘27 दोषियों के मामलों पर चर्चा हुई लेकिन भुल्लर के नाम पर शायद ही कोई चर्चा हुई. अब जब बोर्ड ने उस पर फैसला टाल दिया है और विशेष तौर पर खारिज नहीं किया है तो इस पर अगली बैठक में चर्चा होगी.
एसआरबी बैठकों के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है, और यह आमतौर पर सभी हितधारकों की सहमति से बुलाई जाती हैं. सामान्य तौर पर हर साल दो से चार बैठकें होती हैं.
दिल्ली के गृह मंत्री सेंटेंस रिव्यू बोर्ड के पदेन अध्यक्ष हैं और महानिदेशक (जेल), राज्य के गृह सचिव, राज्य के विधि सचिव, एक जिला जज, दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी और दिल्ली समाज कल्याण विभाग के निदेशक इसके सदस्य होते हैं.
भुल्लर पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया गया, इस पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन के कार्यालय को फोन किया और टेक्स्ट मैसेज भेजा, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.
1993 का दिल्ली बम धमाका
11 सितंबर 1993 को नई दिल्ली के रायसीना रोड स्थित भारतीय युवक कांग्रेस के कार्यालय के बाहर एक कार बम धमाके में नौ लोगों की मौत हो गई और कम से कम 31 अन्य घायल हो गए. माना जाता है कि युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एम.एस. बिट्टा इस धमाके का मुख्य निशाना थे, हालांकि वह हमले में बच गए.
खालिस्तान लिबरेशन फोर्स नामक अलगाववादी संगठन से जुड़ा देविंदर पाल सिंह भुल्लर धमाके के बाद जर्मनी भाग गया और बाद में वहां उसने राजनीतिक शरण मांगी. हालांकि, उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया और पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 1995 में उसे आतंकवाद के आरोप में भारत में प्रत्यर्पित कर दिया गया गया और यहां आने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
कभी लुधियाना में केमिकल इंजीनियरिंग प्रोफेसर रहे भुल्लर को 2011 में आतंकवाद मामलों पर सुनवाई करने वाली एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई. हालांकि, मार्च 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उसके खराब स्वास्थ्य और मुकदमे में देरी को देखते हुए मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. 2015 में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को देखते हुए उसे अमृतसर की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया था.
भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर उसकी सजा के खिलाफ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही है, पहले मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलवाने के लिए और फिर समय से पहले रिहाई के लिए.
भुल्लर पर राजनीति
2009 में जब भुल्लर के वकील ने उसे पंजाब ट्रांसफर करने के लिए एक याचिका दायर की थी, तो पंजाब की एसएडी-भाजपा सरकार ने उसे यहां रखने से इनकार कर दिया था. हालांकि, जब भुल्लर के परिवार और सिख संगठनों की तरफ से मौत की सजा घटाने के लिए चलाए गए अभियान को समर्थन मिलना शुरू हो गया तो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 2013 में इस मुद्दे पर यू-टर्न लिया और उस समय प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को भुल्लर की मौत की सजा को कम करने के लिए कहा.
अरविंद केजरीवाल ने भी 2014 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लिखा था कि भुल्लर का मृत्युदंड माफ कर दे—उन्होंने यह आग्रह लोकसभा चुनाव से करीब तीन महीने पहले किया था, जिसमें पंजाब में अपने पहले चुनाव में आप को चार सीटें मिली थीं.
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब के सिख समूहों ने केजरीवाल के सामने भुल्लर की समयपूर्व रिहाई का मुद्दा उठाया था इस पर 29 जनवरी को आप प्रमुख ने दावा किया कि उन्हें ‘इस मामले की जानकारी नहीं थी’ क्योंकि ‘सभी चीजें सीएम तक नहीं पहुंचती हैं.’
आप के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा कि भुल्लर का मामला केजरीवाल के लिए ‘चुनौतीपूर्ण’ रहा है, जिन पर उग्रवादी संगठनों के साथ सहानुभूति रखने का आरोप लगाया गया है.
आप नेता ने कहा, ‘(ये आरोप) 2017 में लगे थे और माना जाता है कि यह एक बड़ा फैक्टर था जिसकी वजह से पार्टी को पंजाब में अधिक सीटें नहीं मिल पाई थीं. इस साल, फिर यही हुआ. केजरीवाल को इस पर कूटनीतिक रूख अपनाना चाहिए, खासकर ऐसे समय पर जबकि वह राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में एक प्रमुख विपक्षी चेहरा बनने की तैयारी कर रहे हैं. जल्दबाजी में लिए किसी भी फैसले के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा सकते हैं.’
2019 में जब भाजपा और एसएडी के बीच गठबंधन बरकरार था, केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व (जन्म उत्सव) के मौके पर कुछ कैदियों को विशेष माफी दी जाएगी जिन्हें पंजाब में उग्रवाद के दौरान किए गए अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई है. इस सूची में भुल्लर का भी नाम था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के फैसले पर रोक लगा दी.
पंजाब में 2022 के चुनावों के दौरान भुल्लर का मुद्दा ऐसे समय में उठा जब आप पूरी आक्रामक के साथ राज्य में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही थी और स्पष्ट तौर पर खुद को प्रमुख विपक्षी दल से सत्ताधारी पार्टी तक पहुंचाने की कवायद में लगी थी.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)