scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमदेशन कोई चैम्बर, न ही वॉशरूम- भारत के कंज्यूमर कोर्ट्स की बदहाली सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची

न कोई चैम्बर, न ही वॉशरूम- भारत के कंज्यूमर कोर्ट्स की बदहाली सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची

ये निष्कर्ष वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने, अपनी रिपोर्ट में सूचीबद्ध करके SC को पेश किए हैं, जो कंज़्यूमर निकायों में बड़ी संख्या में रिक्तियों पर, ख़ुद से एक केस की सुनवाई कर रहा है.

Text Size:

नई दिल्ली: 35 वर्ष से अधिक हो गए है जब उपभोक्ता शिकायतों से निपटने के लिए, एक विशेष क़ानून अधिसूचित किया गया था, लेकिन दावा आवेदनों पर फैसला लेने के लिए, क़ानूनी ढांचे के तहत परिकल्पित निर्णायक पैनल्स, अभी भी बुनियादी सुविधाओं तथा आवश्यक जनशक्ति से सुसज्जित नहीं हैं.

ये निष्कर्ष वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण के हैं, जिन्होंने ये रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार की, जो उपभोक्ता इकाइयों में बड़ी संख्या में रिक्तियों पर, ख़ुद से एक केस की सुनवाई कर रहा है, जो फरवरी में शुरू हुई थी. शंकरनारायण एक न्याय मित्र के तौर पर, इस मामले में बेंच की सहायता कर रहे हैं.

ये रिपोर्ट जिसमें राज्यवार अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं, इसी महीने कोर्ट में पेश की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि बहुत सी ज़िला और प्रदेश उपभोक्ता विवाद निवारण इकाइयों के पास, केस फाइलें रखने के लिए स्टोरेज कक्ष नहीं हैं, शिकायतें सुनने के लिए नियुक्त सदस्यों के वास्ते चैम्बर्स नहीं हैं, कुछ जगहों पर कोर्टरूम ही नहीं हैं, और कहीं पर तो वॉशरूम जैसी बुनियादी सुविधा तक नहीं है.

इसके अलावा, इन पैनल्स के पास अभी भी पर्याप्त स्टाफ नहीं है, इसके बावजूद कि शीर्ष अदालत ने राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों को निर्देश दिया था, कि अक्तूबर के अंत से पहले इन रिक्तियों को भर लिया जाए.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986, के अंतर्गत एक तीन-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र- ज़िला, राज्य, तथा राष्ट्रीय स्तर पर- तैयार किया गया है, जिससे कि उपभोक्ता विवाद के मामलों का, कम ख़र्च पर, और कम समय में समाधान किया जा सके. लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया है कि कमीशन में नाकाफी बुनियादी सुविधाओं और रिक्तियों ने, क़ानून के मक़सद को ही नाकाम कर दिया है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ख़ामियों को दूर करने के लिए, अतीत में दी गई सिफारिशों के बावजूद, स्थिति अभी भी भयानक बनी हुई है.

इसमें कहा गया है कि दो उच्च-स्तरीय पैनलों- 2000 में बागला कमेटी और 2016 में जस्टिस अरिजीत पसायत कमेटी- ने आयोगों के काम करने की स्थिति में सुधार के लिए विस्तृत सुझाव दिए थे, लेकिन फिर भी इन ख़ामियों पर ध्यान नहीं दिया गया है.


यह भी पढ़ें: CAA-विरोधी प्रदर्शनों में अखिल गोगोई का भाषण कोई UAPA अपराध नहीं बल्कि राजनीतिक बयान: NIA कोर्ट


इनफ्रास्ट्रक्चर के मसले

राज्य तथा ज़िला उपभोक्ता आयोगों में बुनियादी सुविधाओं के मामले में, रिपोर्ट में कोर्ट से अनुरोध किया गया है, कि राज्यों को निर्देश दिया जाए कि दो महीने के भीतर ज़मीनी आवश्यकताओं का आंकलन करें, और तत्काल आधार पर ख़ामियों को दूर करें.

राजस्थान, कर्नाटक, उत्तराखंड, और आंध्र प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों ने बताया, कि उनके पास राज्य-स्तर के उपभोक्ता आयोग के लिए, एक समर्पित और स्थायी बिल्डिंग मौजूद है.

लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया कि सभी सूबों ने मौजूदा इनफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए ज़्यादा जगह की मांग की है. केवल चंडीगढ़, मणिपुर, तमिलनाडु और त्रिपुरा ने, संशोधित उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 के अनुसार, अपने राज्य उपभोक्ता आयोग में मेडिटेशन कक्ष स्थापित किए हैं

बहुत से सूबों ने बताया कि उनके यहां वादियों के लिए वॉशरूम नहीं बनाया गया है, जबकि दिल्ली, महाराष्ट्र और नागालैण्ड ने स्वीकार किया, कि उनके राज्य उपभोक्ता निकायों में तैनात स्टाफ के लिए वॉशरूम नहीं हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान, मिज़ोरम, मणिपुर, मेघालय, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, और अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में, भंडारण कक्ष की सुविधा नहीं है.

भंडारण कक्ष या रिकॉर्ड रूम की ज़रूरत, 2020 में क़ानूनों के बदलाव के बाद पैदा हो गई है, जिनके तहत आयोग शिकायतकर्त्ता या प्रतिवादी को, केस संपत्ति की फिज़िकल जांच के लिए कह सकता है, जिसके लिए पैनल को उसे अपनी रखवाली में रखने की ज़रूरत पड़ सकती है.

ज़िला आयोग से जुड़े डेटा से संकेत मिलता है, कि बहुत से उपभोक्ता विवाद निवारण पैनलों के पास पर्याप्त जगह ही नहीं है, जिसकी वजह से वो अपने मौजूदा सदस्यों को अलग चैम्बर्स, या फाइलिंग काउंटर के लिए समर्पित जगह, उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं हैं.

बहुत से ज़िला आयोगों में वादियों के लिए वॉशरूम सुविधाएं भी नहीं हैं, स्टाफ के लिए कंप्यूटर सुविधा नहीं है, स्टोरेज या रिकॉर्ड रूम के लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है, और फैसलों या केस की स्थिति को अपडेट करने के लिए, उन्होंने पोर्टल्स भी विकसित नहीं किए हैं.


यह भी पढ़ें: UP में 5 साल में फर्जी बीमा दावों पर सिर्फ 18% की जांच पूरी, SC ने ‘सुस्ती’ के लिए SIT को लगाई फटकार


SC के निर्देश के बावजूद रिक्तियां नहीं भरी गईं

रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद आयोगों में रिक्तियां भरे जाने के मामले में, बहुत कम प्रगति हुई है.

अगस्त में, शीर्ष अदालत ने आठ हफ्ते की एक मियाद रखी थी, जिसके अंदर राज्यों को सभी रिक्त पदों पर नियुक्तियां करनी थीं. इससे पहले न्याय-मित्र ने ज़िला उपभोक्ता आयोगों और राज्य उपभोक्ता पैनलों में, मानव संसाधनों की कमी पर एक रिपोर्ट पेश की थी.

उस रिपोर्ट में कहा गया था कि ज़िला उपभोक्ता पैनलों में, 990 में से 500 पद रिक्त पड़े थे, और अगले छह महीनों में 89 और पद रिक्त हो जाने की संभावना है. जहां तक राज्य उपभोक्ता आयोगों का सवाल है, 28 राज्यों में से केवल चार, और आठ केंद्र-शासित क्षेत्रों में से केवल एक, अपनी पूरी मानव शक्ति के साथ काम कर रहे हैं.

ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, एससी के अगस्त निर्देश का मुश्किल से ही अनुपालन हुआ है. केवल सात राज्य/यूटीज़- असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, मेघालय, पंजाब, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश ने, आंशिक रूप से रिक्तियां भरी हैं.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, कि तेईस राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों ने किसी भी रिक्ति को नहीं भरा है, और उसमें ये भी कहा गया है कि ज़्यादातर राज्यों ने वादा किया है, कि जून 2022 तक सभी नियुक्तियां करने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बालिग के साथ सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं बल्कि अनैतिक, दुराचार है- इलाहाबाद HC


 

share & View comments