तिरुचिरापल्ली, 26 जुलाई (भाषा) इसरो और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एनआईएसएआर मिशन से पृथ्वी अवलोकन में वैश्विक समुदाय को काफी लाभ होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष वी. नारायणन ने शनिवार को यह जानकारी दी।
जीएसएलवी-एफ16/एनआईएसएआर मिशन, इसरो और नासा-जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी, अमेरिका की दो टीमों के बीच एक दशक से अधिक समय के मजबूत तकनीकी सहयोग का परिणाम है।
इसरो के अनुसार, यह पहला ऐसा मिशन है जिसमें ड्यूल-बैंड रडार सैटेलाइट ले जाया जाएगा। पहली बार किसी जीएसएलवी रॉकेट के जरिए ऐसे उपग्रह को सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (सूर्य-स्थिर कक्ष) में स्थापित किया जाएगा, जबकि अब तक यह काम मुख्यतः पीएसएलवी रॉकेट करते रहे हैं। इसके अलावा, यह इसरो और नासा का पहला संयुक्त पृथ्वी निगरानी मिशन भी है।
एनआईएसएआर, जिसका पूरा नाम नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (एनआईएसएआर) है, वैज्ञानिकों को पृथ्वी की जमीन और बर्फीली सतहों की व्यापक निगरानी में मदद करेगा।
यह मिशन समय के साथ बड़े और छोटे बदलावों का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार करने में सक्षम होगा, जिससे पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों को समझने में महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी।
प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और भूस्खलन के दौरान धरती की गतिविधियों को समझने में भी यह मिशन वैज्ञानिकों के लिए बेहद मददगार साबित होगा।
यहां पत्रकारों से बातचीत में नारायणन ने कहा, “नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (एनआईएसएआर) सैटेलाइट का प्रक्षेपण हमारे जीएसएलवी-एमके II (जीएसएलवी-एफ 16) के माध्यम से किया जाएगा। इस उपग्रह के विभिन्न पेलोड को इसरो और अमेरिका की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) ने संयुक्त रूप से तैयार किया है। यह उपग्रह पृथ्वी अवलोकन और आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में वैश्विक समुदाय के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगा।”
भाषा
प्रशांत संतोष
संतोष
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