अयोध्या : अयोध्या में हनुमानगढ़ी से राम मंदिर कार्यशाला की ओर जाते वक्त कुछ ही मीटर की दूरी पर निर्मोही अखाड़ा परिसर है. अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद इस परिसर में सन्नाटा है. यहां से जुड़े सदस्यों में राम मंदिर का रास्ता साफ होने की तसल्ली तो है, लेकिन अखाड़े की याचिका खारिज और सेवादार का भी अधिकार न मिलने का गम है. ऐसे में अखाड़े ने देशभर के अपने सदस्यों की ‘पंचायत’ बुलाई है. वहीं सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन का विकल्प भी खुला रखा है.
पंचायत के दौरान ही आगे की रणनीति तय की जाएगी. अखाड़ा से जुड़े सदस्यों का कहना है कि साल 1528 से ये अखाड़ा रामलला की सेवा के लिए लड़ाई लड़ता आ रहा है. निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में ज़मीन का मालिकाना हक जताते हुए राम जन्मभूमि पर कब्ज़ा और प्रबंधन का अधिकार मांगा था. इस पक्ष का कहना था कि इस पर होने वाली पूजा अर्चना और प्रबंधन का काम हमेशा से ही निर्मोही अखाड़ा कराता रहा है इतना ही नहीं वह यहां पर आने वाले चढ़ावे को भी हासिल करता रहा है. लिहाजा उन्हें ही यह हक मिलना चाहिए लेकिन कोर्ट ने अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी. इसका अर्थ है कि निर्मोही अखाड़े को इस ज़मीन का कोई मालिकाना हक नहीं है.
कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े को सेवादार का भी अधिकार नहीं दिया है. हालांकि, मंदिर को लेकर बनने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को भी सदस्य बनाया जाएगा. आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने अपने 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन के एक तिहाई भू-भाग का मालिकाना हक सौंपा था. हाईकोर्ट ने यहां पर मौजूद राम चबूतरा और सीता रसोई का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को सौंपा था.
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हालांकि, फैसले के बाद निर्मोही अखाड़े के महंत स्वामी दिनेंद्र दास ने इस फैसले का स्वागत किया.अखाड़े ने इस पर भी खुशी जताई है कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राम जन्मभूमि अयोध्या में है और इस पर कोई विवाद नहीं है. हालांकि आगे की रणनीति को लेकर उनका कहना है कि अखाड़ा के पंचों के बीच इस फैसले पर मंथन किया जाएगा. निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता प्रभात सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि एक हफ्ते के भीतर पंचायत बुलाई गई है.
प्रभात ने बताया कि निर्मोही अखाड़ा एक पंचायती अखाड़ा है जिसका इतिहास सन 1528 से है. उनके मुताबिक,’ मंदिर के लिए हमने 77 बार लड़ाई लड़ी है. हमने मुस्लिमों से लड़ाई लड़ी, हमने अंग्रेजों से भी लड़ाई लड़ी. हिंदू होने की भावना से हम मंदिर बनने का रास्ता खुलने से तो खुश हैं. लेकिन उसे बनाए जाने के तरीके से असहमत हैं. इतने साल ले हमने लड़ाई लड़ी तो रामलला की सेवा का हक भी पहले हमारा है.
प्रभात के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने ये तो बताया कि मस्जिद से पहले वहां पूजा होती थी. लेकिन ये नहीं बताया कि वो पूजा कौन करते थे. प्रभात ने कहा, ‘वहां पूजा निर्मोही अखाड़ा के लोग करते थे. यहां तक की 1982 में विवादित स्थल की कुर्की करते वक्त तत्कालीन सरकार ने कुर्की निर्मोही अखाड़ा से ही ली थी.सरकार हमें मुआवज़ा भी देने को तैयार थी लेकिन हमने नहीं लिया था.’
कई साल से निर्मोही अखाड़ा लड़ रहा था कानूनी लड़ाई
गौरतलब है कि निर्मोही अखाड़ा एक प्राचीन मठ है जिसके अंतर्गत अयोध्या में स्थित कई मंदिर आते हैं. इसके प्रमुख महंत भास्कर दास का सितंबर 2017 में निधन हो गया था. वह इस मामले में प्रमुख पक्षकार भी थे. 19 मार्च 1949 को निर्मोही अखाड़े ने पंजीकरण कराया था. निर्मोही अखाड़ा पहली बार 1949 में उस वक्त चर्चा में आया था, जब उन्होंने कोर्ट में अयोध्या की विवादित ज़मीन को लेकर मुकदमा दायर किया था.
आपको बता दें कि निर्मोही अखाड़ा खुद को उस स्थल का संरक्षक बताता रहा है. अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में इसी अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने शुरू की थी. इस याचिका में अखाड़े की तरफ से यहां स्थित राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन फैज़ाबाद की ज़िला अदालत ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया गया था. इनकी दलील थी कि इस विवादित स्थल पर 1885 से मुस्लिम समाज ने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी है. 22-23 दिसंबर 1949 की रात यहां पर मूर्तियां रखी गई थीं. अखाड़े के सरपंच 95 वर्षीय महंत राजा रामचंद्र आचार्य के अनुसार, अखाड़ा शुरू से ही राम मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई लड़ता आ रहा है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके अधिकारों को ही नकार दिया.
सोशल मीडिया पर भी अखाड़े के इतिहास से जुड़े तमाम तथ्य साझा किए गए हैं.
*राम और रावण*खैरबकी 23 मार्च 1528 श्रीराम जन्मस्थान मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद बनाते समय दो वर्ष युध्द जारी…
श्रीराम जन्मस्थान ६७:७७ एकड़ पर " मंदिर " Shri Ram यांनी वर पोस्ट केले गुरुवार, ३१ ऑक्टोबर, २०१९
इन तथ्यों के ज़रिए निर्मोही अखाड़ा के सदस्य ये साबित करना चाह रहे हैं कि मंदिर की लड़ाई वे पिछले 400 से अधिक वर्षों से लड़ रहे हैं. उनके पास इसके साक्ष्य भी हैं. बावजूद इसके उनका दावा खारिज किया गया है.
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‘पुजारियों के अंदरूनी घमासान की संभावना’
नाम न छापने की शर्त पर निर्मोही अखाड़ा के एक सदस्य ने बताया कि न्यास और निर्मोही अखाड़ा में कभी नहीं बनी. न्यास को विश्व हिंदू परिषद का समर्थन प्राप्त है. केंद्र व प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में उनका पलड़ा भी मज़बूत है. इस सदस्य का कहना था कि अब असल लड़ाई तो अयोध्या के पुजारियों के बीच राम मंदिर में सेवा करने की होगी. हर कोई उस मंदिर के संचालन से जुड़ना चाहेगा. इस सदस्य का कहना है कि अयोध्या पर फैसला आने के बाद अब काशी, मथुरा पर वीएचपी वाले शांत हो जाएंगे क्योंकि संघ फिलहाल ये नहीं चाहता. वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानव्यापी मस्जिद है. इसी तरह मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि के पास भी एक मस्जिद है. हिंदूवादी संगठन इन मस्जिदों पर भी दावा ठोंकते रहे हैं.