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Thursday, 2 May, 2024
होमदेशअयोध्या के मंदिरों में फूल पहुंचाने वाले गांव के हिंदू-मुस्लिम परिवारों में एक नई उम्मीद गुलज़ार हुई

अयोध्या के मंदिरों में फूल पहुंचाने वाले गांव के हिंदू-मुस्लिम परिवारों में एक नई उम्मीद गुलज़ार हुई

सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद फूल के व्यापार और खेती किसानी से जुड़े लोगों का मानना है कि राम मंदिर बनते ही पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी तो फूलों की डिमांड भी बढ़ेगी.

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अयोध्या:अयोध्या राम मंदिर पर आए फैसले के बाद यहां से लगभग छह किलोमीटर दूर स्थित ‘कटरा भोगचंद गांव’ के किसान बहुत खुश हैं. इनकी इस खुशी की बड़ी वजह इनका फूलों की खेती और व्यापार है. दरअसल इस गांव के किसान लंबे समय से फूलों की खेती करते आ रहे हैं और इसकी खेती के लिए मशहूर हैं.

करीब तीन हज़ार की जनसंख्या वाले इस गांव का मुख्य पेशा खेती किसानी है. हज़ार परिवार मुख्यरूप से इस पेशे से जुड़े हैं जिसमें 100 से 150 परिवार मुस्लिमों के हैं जो फूलों की खेती कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहरों में  और मंदिरों में पूजा के लिए इसी गांव से फूल जाते हैं, अयोध्या राम मंदिर पर फैसला आने के बाद यहां के किसानों में नई उम्मीद जगी है.

अयोध्या के मंदिरों में जाते हैं यहां के फूल

इस गांव में फूलों की खेती करने वाले युवक दुर्गा प्रसाद बताते हैं, ‘अभी तक मुख्य त्योहारों को छोड़कर केवल फूलों की खेती से घर चलाना आसान नहीं था लेकिन अब मंदिर बन जाने के बाद से अयोध्या में हर दिन फूल की डिमांड बहुत अधिक रहेगी. ऐसे में उनको मुनाफा होने की उम्मीद है.’

वहीं फूलों की खेती करने वाले धर्मेंद्र सैनी बताते हैं कि यहां से फूल अयोध्या के मार्केट में जाते हैं. खासतौर से दिवाली के आसपास ठीक-ठाक मुनाफा होता है. सैनी आगे कहते हैं कि त्योहारी मौसम में अकेले इस गांव से डेढ़ क्विंटल फूल प्रतिदिन अयोध्या के बाज़ार में जाता है. लेकिन अगर फूल का व्यापार बढ़ेगा तो मुनाफा सिर्फ त्योहारी सीज़न में नहीं बल्कि प्रतिदिन होना शुरू हो जाएगा. सैनी खुश होकर बताते हैं ‘ मंदिर बन जाने के बाद हर दिन ‘दिवाली’ जैसा मुनाफा होगा.


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कई तरह के फूलों की होती है खेती

यहां के किसान किशन मांझी बताते हैं कि इस गांव में सबसे अधिक ‘गेंदे’ की खेती होती है. यहां ‘जाफरी गेंदा’, ‘कलकत्ती गेंदा’, ‘बनारसी गेंदे’ के फूल की खेती की जाती है. किशन के मुताबिक, इन फूलों की विशेषता ये है कि तोड़ने के 4-5 दिन तक ये फूल मुरझाते नहीं हैं.

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कई अन्य ग्रामीण भी शुरू करेंगे खेती

यहां के निवासी ओम प्रकाश विश्वकर्मा ने बताया कि वह भी ‘फैसले के बाद अपने खेतों में फूलों की खेती शुरू करेंगे’. उनका कहना है कि मंदिर बनने के बाद सबसे अधिक मांग फूलों की बढ़ेगी. उनका ये भी कहना है व्यापार बढ़ने से युवाओं का इस गांव से ‘पलायन भी रुकेगा’. अभी तक अधिक मुनाफा न होने के कारण वे बाहर कमाने चले जाते थे. अब अपने गांव में ही खेती करेंगे.

कई मुस्लिम परिवार भी करते हैं खेती

इस गांव के करीब 150 मुस्लिम परिवार फूलों की खेती से जुड़े हैं. यहां की रहने वाली नजीमुलनिशां बताती हैं, ‘अभी तक हम सबको ‘दिवाली’ का इंतज़ार रहता था क्योंकि दिवाली के आसपास अयोध्या में फूलों की बिक्री बढ़ जाती थी. खासतौर पर दीपोत्सव के समय काफी ‘डिमांड’ रहती थी. ऐसे में मुनाफा भी होता था.

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर बनते ही पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी तो फूलों की डिमांड भी बढ़ेगी. नजीमुल निशां का कहना है कि फैसला सभी को मंजूर है. वह तो चाहती हैं कि अब फूलों की खेती से लगातार मुनाफा आने लगे ताकि घर परिवार बेहतर तरीके से चल पाए.


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फूलों के छोटे-छोटे बागानों से हर रोज़ करीब डेढ़ क्विंटल फूल अयोध्या पहुंचते हैं और फिर माला, गुलदस्ते समेत तमाम सजावटी किस्मों में तब्दील हो जाते हैं. फैज़ाबाद शहर (अयोध्या) की गलियों में लाइन से फूलों की दुकानें दिखाई दे रही है, कोई अजमल फूल भंडार था तो कोई अमीन फूल हाउस.

यहां तमाम मुस्लिम इस पेशे से जुड़े हैं. यहां तक की राम जन्मभूमि के ठीक पीछे आलमगंज कटरा में तमाम ऐसे घर हैं जहां फूल का व्यापार तमाम मुस्लिम परिवार करते हैं. उन्हें भी उम्मीद है कि अब फूल की खुशबू उनके व्यापार में भी नई महक लेकर आएगी.

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