मुंबई: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने एल्गार परिषद और माओवादियों के बीच संबंधों से जुड़े मामले में यहां एक विशेष अदालत के समक्ष पेश किए गए मसौदा आरोपों में दावा किया है कि आरोपी अपनी खुद की सरकार बनाना चाहते थे और ‘देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते’ थे.
एनआईए ने इस महीने की शुरुआत में मसौदा पेश किया था और इसकी प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई.
इस मसौदा में मानवाधिकार एवं असैन्य अधिकार कार्यकर्ताओं समेत 15 आरोपियों के खिलाफ 17 आरोप लगाए गए है. उनके खिलाफ अवैध गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए जाने का अनुरोध किया गया है.
एनआईए ने आरोप लगाया है कि आरोपी प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (माओवादी) के सक्रिय सदस्य थे. इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों में कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस, वरवर राव, हनी बाबू, आनंद तेलतुम्बडे, शोमा सेन, गौतम नवलखा और अन्य शामिल हैं.
मसौदा आरोपों के अनुसार, आरोपियों का मुख्य उद्देश्य ‘सरकार से सत्ता हथियाने के लिए सशस्त्र संघर्ष करना और क्रांति के जरिए जनता सरकार’ स्थापित करना था. मसौदा में यह भी आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने ‘भारत सरकार और महाराष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश’ की.
मामले में अभियोग शुरू करने से पूर्व पहला कदम आरोप तय करना है. इस दौरान अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोपों और सबूतों की जानकारी देता है. आरोप तय करने के बद अदालत आरोपियों से पूछेगी कि वे मामले में अपना अपराध स्वीकार करते हैं या नहीं.
मसौदा में यह भी आरोप लगाया गया है कि आरोपी एल्गार परिषद बैठक के दौरान पुणे में भड़काऊ गीत बजा रहे थे, लघु नाटक प्रस्तुत कर रहे थे और नक्सलियों के समर्थन में साहित्य वितरित कर रहे थे.
मसौदा में कहा गया है, ‘आपराधिक साजिश का इरादा भारत से एक हिस्से को अलग करना और व्यक्तियों को इस तरह के अलगाव के लिए उकसाना था.’ इसमें आरोप लगाया गया है कि आरोपियों का इरादा विस्फोटक पदार्थों का उपयोग करके लोगों के मन में आतंक पैदा करना था.
इसने दावा किया है, ‘आरोपियों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए भर्ती किया था.’
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120-बी (साजिश), 115 (अपराध के लिए उकसाना), 121, 121-ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124-ए (राजद्रोह), 153-ए (जुलूस में हथियार), 505 (1) (बी) (अपराध को बढ़ावा देने वाले बयान) और 34 (साझा इरादे) के तहत आरोप लगाए गए हैं. उन पर यूएपीए की धाराओं 13, 16, 17, 18, 18ए, 18बी, 20 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा), 38, 39 और 40 (आतंकवादी संगठन का हिस्सा होने की सजा) के तहत भी आरोप लगाए गए हैं.
एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया कि इस भाषणों के कारण अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि इस सम्मेलन को माओवादियों के साथ कथित रूप से संबंध रखने वाले लोगों ने आयोजित किया था.