नई दिल्ली: भारत में मास मीडिया के विभिन्न माध्यमों अखबार, टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा के प्रति बीते 1.5 दशक में लोगों का रूझान लगातार कम हुआ है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएफएचएस-3 (2005-06), एनएफएचएस-4 (2015-16) और एनएफएचएस-5 (2019-21) के हालिया आंकड़ों की दिप्रिंट ने जब तुलना की तो ये जानकारी निकलकर आई.
भारत में टेलीविजन और अखबार अभी भी लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं लेकिन बीते 15 सालों से इसे पढ़ने और देखने वालों लोगों की संख्या में कमी देखने को मिली है. मोबाइल फोन की तरफ बढ़ता लोगों का झुकाव इसकी एक बहुत बड़ी वजहों में से एक है.
एनएफएचएस-5 के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के 93.3 प्रतिशत घरों में लोगों के पास मोबाइल फोन मौजूद है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगभग मोबाइल फोन की तादाद बराबर है. एक तरफ जहां 96.7 प्रतिशत शहरी घरों में फोन हैं तो ग्रामीण इलाकों में 91.5 प्रतिशत घरों में मोबाइल फोन हैं.
एनएफएचएस-3 के आंकड़ों के अनुसार सप्ताह में कम से कम एक बार टेलीविजन देखने वाली महिलाओं और पुरुषों की संख्या क्रमश: 55 और 63 प्रतिशत थी जो कि एनएफएचएस-5 के अनुसार घटकर 54 और 56 प्रतिशत पर आ गई है.
हालांकि एनएफएचएस-4 के 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है कि टेलीविजन देखने वाली महिलाओं और पुरुषों की संख्या में उस समय काफी बढ़ोतरी हुई थी जो कि क्रमश: 71 और 78 प्रतिशत दर्ज की गई थी.
इसी तरह अखबार पढ़ने वाली आबादी में भी गिरावट देखने को मिली है. डिजिटल मीडिया के उभार के साथ अखबार पढ़ने वाली आबादी में लगातार कमी देखने को मिल रही है. इंडियन रीडरशिप सर्वे के आंकड़े भी यही बताते हैं कि प्रिंट मीडिया का भविष्य काफी अंधकारमय है और अखबारों के सर्कुलेशन में भी लगातार गिरावट दिख रही है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसम्प्रेषण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के उभार के कारण अखबार और टेलीविजन की तरफ लोगों का रुझान कम हुआ है. लोग अब मोबाइल फोन पर ही न्यूज पढ़ लिया करते हैं.’
उन्होंने बताया कि आने वाले वक्त में जब अखबारों का सर्कुलेशन कम होता जाएगा तब वो ऑनलाइन की तरफ ज्यादा बढ़ेंगे और सब्सक्रिप्शन मॉडल अपनाएंगे. हालांकि उनका कहना है कि कोरोना जब चला जाएगा उसके बाद ही हमें सही स्थिति देखने को मिलेगी क्योंकि महामारी के समय काफी लोगों ने अखबार लेने बंद कर दिए थे.
ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने बताया, ‘अब लोगों ने अपने दिमाग का प्रबंधन इस तरह कर लिया है कि उनके पास टाइम भले हो लेकिन वो व्यस्त दिखना चाहते हैं. मोबाइल के कारण अतिव्यस्तम दिखना एक फैशन बन गया है.’
एनएफएचएस-3 के मुताबिक 23 प्रतिशत महिलाएं और 53 प्रतिशत पुरुष अखबार और मैगजीन पढ़ते थे लेकिन एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में ये गिरकर 15 और 32 प्रतिशत पर आ गए हैं. हालांकि एनएफएचएस-4 के दौरान ये आंकड़ा क्रमश: 27 और 55 प्रतिशत था.
एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के डेटा से पता चलता है कि बीते कुछ सालों में रेडिया सुनने वाली आबादी में भी काफी गिरावट आई है. हालांकि बीते समय में पॉडकॉस्ट में लोगों की रूचि बढ़ी है लेकिन अब ग्रामीण इलाकों से भी रेडियो गायब होने लगे हैं.
2015-16 के दौरान 11 प्रतिशत महिलाएं और 21 प्रतिशत पुरुष सप्ताह में एक बार रेडियो सुना करते थे जो कि 2019-21 में घटकर 4.2 और 7.6 प्रतिशत पर आ गए हैं.
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टेलीविजन अब भी मास मीडिया का सबसे बड़ा माध्यम: एनएफएचएस-5
भारत की महिला और पुरुष आबादी के बीच टेलीविजन मास मीडिया (अखबार, टेलीविजन, मैग्जीन और रेडियो) का अब भी सबसे बड़ा माध्यम बना हुआ है. पुरुषों की 56 प्रतिशत और महिलाओं की 54 प्रतिशत आबादी सप्ताह में कम से कम एक बार टेलीविजन का इस्तेमाल करते हैं.
टीवी के बाद अखबार लोगों के बीच मास मीडिया का सबसे बड़ा साधन है. पुरुषों की 32 प्रतिशत तो महिलाओं की सिर्फ 15 प्रतिशत आबादी ही सप्ताह में कम से कम एक बार अखबार पढ़ते हैं.
रेडियो, सिनेमा, थियेटर देखने वालों की आबादी काफी कम हो गई है.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के मुताबिक शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाओं का मास मीडिया से वास्ता बहुत कम होता है. वहीं ये बात शहरी पुरुष और ग्रामीण पुरुषों के मामले में भी एक जैसी है.
मास मीडिया से जुड़ने वाले पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में और भी देखने को मिलता है.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत शहरी महिलाएं मास मीडिया के किसी न किसी माध्यम से जुड़ी हैं लेकिन ग्रामीण महिलाओं की सिर्फ 23 प्रतिशत आबादी ही इससे जुड़ी है. वहीं 39 प्रतिशत शहरी पुरुष मास मीडिया के माध्यम से जुड़े हैं वहीं केवल 18 प्रतिशत ग्रामीण पुरुषों इसका इस्तेमाल करते हैं.
भारत में 15-49 वर्ष के आयु के बीच की सिर्फ 15 प्रतिशत महिलाएं ही अखबार पढ़ती हैं वहीं 54 प्रतिशत महिलाएं टीवी देखती हैं. रेडिया और सिनेमा देखने वाली महिलाओं की आबादी क्रमश: 4.2 प्रतिशत और 10 प्रतिशत है.
2019-21 के डेटा के अनुसार 25 प्रतिशत शहरी महिलाएं और 9.4 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं अखबार पढ़ती हैं वहीं टेलीविजन देखने के मामले में ये आंकड़ा 69.8 और 45.6 प्रतिशत का है.
वहीं 43.4 प्रतिशत शहरी पुरुष और 26 प्रतिशत ग्रामीण पुरुष अखबार पढ़ते हैं और टेलीविजन देखने के मामले में ये डेटा 68.1 और 49.2 प्रतिशत का है.
ये भी देखने को मिला है कि हिंदू और मुस्लिमों की तुलना में जैन, ईसाई और सिख आबादी मास मीडिया के विभिन्न माध्यमों से ज्यादा जुड़े हैं.
वहीं देश की 41 प्रतिशत महिलाएं और पुरुषों की 32 प्रतिशत आबादी कभी भी मास मीडिया के किसी भी माध्यम से नहीं जुड़ीं.
2005-06 के दौरान 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की 35 प्रतिशत महिलाएं और 18 प्रतिशत पुरुष मास मीडिया के किसी भी माध्यम से जुड़े नहीं थे. ये आंकड़ा 2015-16 में घटकर क्रमश: 25 और 14 प्रतिशत पर आ गया था लेकिन 2015-16 के मुकाबले 2019-21 में ऐसी महिलाओं की संख्या काफी बढ़ी है जो मीडिया के किसी भी माध्यम का इस्तेमाल नहीं करती. 2015-16 के 25 प्रतिशत की तुलना में 2019-21 में ये 41 प्रतिशत है वहीं पुरुषों के मामले में भी यह अंतर काफी बढ़ा है.
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क्या स्कूलिंग न हो पाना है इसकी वजह
एनएफएचएस-5 के आंकड़े के मुताबिक मास मीडिया का इस्तेमाल करने के मामले में जिन लोगों की स्कूलिंग हुई है उनका प्रतिशत स्कूल न जाने वालों लोगों से ज्यादा है.
2015-16 और 2019-21 के आंकड़ों के देखने से पता चलता है कि स्कूल जाने वाली आबादी में इजाफा तो हुआ है लेकिन ये काफी मामूली है. एनएफएचएस-4 के डेटा के अनुसार 15-49 वर्ष की आयु के बीच की 28 प्रतिशत महिलाएं और 12 प्रतिशत पुरुष स्कूल नहीं जाते थे वहीं 2019-21 में ये आंकड़ा घटकर 23 प्रतिशत और 11 प्रतिशत पर आ गया है.
आंकड़ों के मुताबिक भारत की 67 प्रतिशत महिलाएं और 61 प्रतिशत पुरुषों का मास मीडिया से ताल्लुक नहीं रहा है क्योंकि वे कभी स्कूल नहीं जा पाए. वहीं 12 साल और उससे ज्यादा स्कूल जाने वाली आबादी की 21 प्रतिशत महिलाएं और 15 प्रतिशत पुरुषों की मास मीडिया से दूरी है.
मास मीडिया तक पहुंच बनाने के लिए इंटरनेट काफी अहम साधन है. लेकिन देश की बड़ी आबादी की अभी भी इस तक पहुंच नहीं हो पाई है. 15-48 वर्ष की आयु की आबादी के बीच 33 प्रतिशत महिलाएं और 51 प्रतिशत पुरुष ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ये अंतर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में और भी ज्यादा गहराता हुआ दिखता है.
शहरों में 51 प्रतिशत महिलाएं और 66 प्रतिशत पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं वहीं ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ों 25 प्रतिशत और 43 प्रतिशत है.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि जिन महिलाओं और पुरुषों की शादी नहीं हुई है उनके इंटरनेट इस्तेमाल करने का प्रतिशत शादी-शुदा लोगों से ज्यादा है. वहीं भारत की 46 प्रतिशत महिलाएं कृषि कार्यों में लगी हैं वहीं सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाएं ही नौकरी पेशा हैं.
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राज्यों में मास मीडिया डिवाइड
केरल, कर्नाटक, गोवा, मिजोरम, लद्दाख, चंडीगढ़ और दिल्ली ऐसे प्रदेश हैं जहां सबसे ज्यादा अखबार पढ़ने वाली आबादी है. टेलीविजन देखने के मामले में तमिलनाडु, पुडुचेरी, मिजोरम, दिल्ली, चंडीगढ़ सबसे आगे हैं.
जम्मू-कश्मीर की 44.9 प्रतिशत, राजस्थान की 49 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश की 56 प्रतिशत, बिहार की 67 प्रतिशत, झारखंड की 65.3 प्रतिशत महिलाएं मास मीडिया के किसी भी माध्यम का इस्तेमाल नहीं करती हैं.
वहीं इन राज्यों में पुरुषों का डेटा क्रमश: 30.6%, 41.3%, 45.4%, 47.7% और 53% है.
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी मास मीडिया का इस्तेमाल न करने वाली काफी बड़ी आबादी है. वहीं दक्षिण भारत के राज्यों की स्थिति बाकी राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है.
केंद्र सरकार द्वारा कराया गया एनएफएचएस व्यापक और कई स्तरों का सर्वेक्षण है, जिसे देश भर के परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले नमूनों के आधार पर किया जाता है. ताजा सर्वेक्षण 2019 और 2021 के बीच किया गया और इससे देश में सामाजिक-आर्थिक सच्चाइयों, स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति का अनुमान लगता है. इसमें इन सभी विषयों पर जिला स्तर पर जानकारियां जुटाई जाती हैं.
एनएफएचएस-5 में 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के 707 जिलों में 6.37 लाख नमूना परिवारों से बातचीत की गई. इस दौरान 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों से प्रश्र पत्र के जरिए राय ली गई. योग्य आयुवर्ग व्यस्क पुरुषों और महिलाओं के लिए 15-49 वर्ष है.
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