scorecardresearch
Saturday, 2 November, 2024
होमदेशहर साल 10 हज़ार से ज्यादा छात्र करते हैं आत्महत्या, नई शिक्षा नीति परिवारों को सिखाएगी बच्चों से नरमी से पेश आना

हर साल 10 हज़ार से ज्यादा छात्र करते हैं आत्महत्या, नई शिक्षा नीति परिवारों को सिखाएगी बच्चों से नरमी से पेश आना

स्कूल जाने वाले नन्हे बच्चों से होने वाली मारपीट, उन पर पड़ने वाले पढ़ाई के मानसिक दबाव पर मंत्रालय का कहना है कि बच्चों से भी बड़ों जैसा व्यवहार होना चाहिए.

Text Size:

नई दिल्ली: प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत बच्चों के परिवार वालों की काउंसिलिंग को औपचारिक बनाया जा रहा है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

भारत में छात्रों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है. हर साल हज़ारों छात्र मानसिक तनाव के कारण अपनी जान दे देते हैं.

मनाव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा 2 मार्च को लोकसभा में पेश किए गए छात्रों की आत्महत्या से जुड़े आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2016 से 2018 के बीच हर साल लगभग 10,000 छात्रों ने आत्महत्या की है. सबसे ज्यादा मौत महाराष्ट्र में हुई है.

मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत में परिवार वालों का बच्चों के साथ पेश आने का तरीका बहुत गलत होता है. इसे ठीक करने पर ज़ोर होगा.’

उन्होंने कहा कि प्रथामिक शिक्षा से जुड़े छात्रों के परिवार वालों को सुझाव दिए जाएंगे. बच्चों के साथ पेश आने और उनके परवरिश को लेकर उनके साथ सलाह-मशविरा किया जाएगा.

अधिकारी ने कहा, ‘पढ़ाई के दबाव और कम उम्र की वजह से भारत में बच्चों के साथ उनके परिवार वाले अच्छा व्यवहार नहीं करते. इसे सुधारे जाने की दरकार है.’


यह भी पढ़ेंः काफी इंतजार के बाद मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति मार्च में आ सकती है सामने


स्कूल जाने वाले बच्चों से होने वाली मारपीट और उन पर पड़ने वाली पढ़ाई के मानसिक दबाव पर अधिकारी ने कहा कि बच्चे भी बड़े लोगों की तरह इंसान होते हैं. लेकिन उनकी भावनाएं बेहद नाज़ुक होती हैं जिसकी वजह से उनके साथ होने वाली किसी भी तरह की हिंसा या पड़ने वाले किसी भी तरह के दबाव का असर उनके ऊपर ज़िंदगी भर रह जाता है.

पैरेंट्स-टीचर मीटिंग से अलग होगी काउंसिलिंग

इन्हीं वजहों से नई शिक्षा नीति का प्रयास होगा कि वो परिवार वालों को इसके लिए सजग करें कि वो बच्चों को भी अपने बराबर मानकर व्यवहार करें. ये पूछने पर कि क्या ये दिल्ली सरकार के स्कूलों में होने वाले पैरेंट्स-टीचर मीटिंग के जैसा होगा, अधिकारी ने कहा, ‘ये बस तय होने ही वाला है. हम इसके तौर-तरीकों पर काम कर रहे हैं लेकिन ये पैरेंट्स-टीचर मीटिंग से अलग होगा.’

प्राथमिक शिक्षा के ऊपर के छात्रों के लिए इस तरह की व्यवस्था से जुड़े सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा, ‘प्राथमिक शिक्षा से ऊपर के बच्चों के लिए परिवार वालों को सुझाव देना मुश्किल है क्योंकि इसके बाद बच्चे और परिवार वाले दोनों ही एक परिपक्व अवस्था में होते हैं.’ इसी को ख़याल में रखते हुए सरकार इसे प्राइमरी तक ही औपचारिक बनाने की तैयारी कर रही है.

हालांकि, नेशनल काउंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत का कहना है कि प्रथामिक शिक्षा के मामले में सबसे पहले शिक्षकों की कमी और मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को दूर किया जाना चाहिए. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आज़ादी के बाद से अब तक सरकारों ने प्रथामिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया.’

उन्होंने ये भी कहा कि अभी प्रथामिक शिक्षा का हाल सबसे खराब स्थिति में है. उनके मुताबिक प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर परिवार वाले ख़ुद को स्कूल की गतिविधियों में शामिल नहीं रखते क्योंकि इसका हाल खराब है. उन्होंने कहा कि परिवार वालों की भूमिका अहम है लेकिन सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा का हाल दुरुस्त किया जाना चाहिए.

छात्रों द्वारा आत्महत्या करना अभिशाप है

प्रथामिक शिक्षा हो या उच्च शिक्षा, मानसिक दबाव भारत में छात्रों की आत्महत्या का एक बड़ा कारण है.

पिछले पांच सालों में सिर्फ़ दिल्ली में ही 443 छात्रों ने तमाम तरह के दबाव में आकर आत्महत्या की है. पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी जिसमें छात्रों के लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सुविधा की गुहार लगाई गई थी.

आए दिन बोर्ड परीक्षा में फेल हो जाने वालों से लेकर उसकी तैयारी कर रहे छात्रों की आत्महत्या की ख़बर आती रहती है.


यह भी पढ़ेंः आईआईटी, आईआईएम के झांसे से बचाने के लिए सरकार ने निजी संस्थाओं पर ऐसे नाम रखने पर लगाया प्रतिबंध


आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने परीक्षा से बच्चों को होने वाले तनाव में उन्हें मदद करने के लिए ‘परीक्षा पर चर्चा‘ जैसा सलाना कार्यक्रम भी लॉन्च किया है जिसे प्रधानमंत्री खुद होस्ट करते हैं. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री बच्चों को परीक्षाओं के दौरान तनाव कम करने के उपाय बताते हैं.

संसद के शीतकालीन सत्र में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ये जानकारी दी थी कि पिछले पांच सालों में देश के तमाम आईआईटी और आईआईएम को मिलाकर 60 छात्रों ने अपनी जान दी हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा मौतें आईआईटी गुवाहाटी में हुई हैं. ऐसे में शिक्षा मंत्रालय द्वारा नई शिक्षा नीति में परिवार वालों के लिए बच्चों की परवरिश से जुड़ी सलाह-मशविरा दिए जाने को औपचारिक बनाए जाने के कदम को लेकर मंत्रालय के अधिकारियों में काफ़ी उम्मीद है.

शिक्षा नीति लागू किए जाने को लेकर सुगबुगाहट

प्रस्तावित शिक्षा नीति को अगले अकादमिक सत्र की शुरू होने से पहले लागू किया जा सकता है. एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा कि इसे लागू करने को लेकर पहले ही काफ़ी देर हो चुकी है और ऐसी आशंका है कि अगर इसे जल्द लागू नहीं किया गया तो ये फिर लंबे समय तक लटक जाएगी.

पिछले हफ्ते एचआरडी मंत्रालय ने पीएम मोदी को इसी पर एक प्रेज़ेंटेशन दी थी. सूत्र ने कहा कि इसके ऊपर पीएम की पैनी निगाह बनी हुई है. उन्होंने ये भी कहा कि आने वाले संसद सत्र में ऐसा कुछ बड़ा नहीं है जिसकी वजह से उम्मीद है कि शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाएगा.

एक और सूत्र ने भी इस बात पर मुहर लगाई कि अगले सत्र से पहले इस नीति को लागू किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ये कोई बिल नहीं बल्कि नीति है जिसकी वजह से इसे संसद में ले जाने की दरकार नहीं है. सूत्र के मुताबिक आने वाली किसी भी कैबिनेट बैठक में इसे पास कराया जा सकता है.

share & View comments