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Thursday, 26 December, 2024
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नेताजी ने भारत को आजादी दिलाने में मदद के लिए 1939 में सोवियत नेतृत्व को गुप्त पत्र भेजे थे

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(जयंत रॉय चौधरी)

कोलकाता, 23 जनवरी (भाषा) स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस ने अपने भतीजे अमिया बोस को भारत की आज़ादी के लिए सोवियत संघ से मदद के वास्ते गुप्त पत्र ले जाने का काम सौंपा था, जो ब्रिटेन में अक्टूबर 1939 में एजेंट को देने थे। यह द्वितीय विश्व युद्ध से बमुश्किल एक महीने पहले की बात है।

नेताजी के भतीजे की ब्रिटेन पहुंचते ही न्यू स्कॉटलैंड यार्ड के अधिकारियों ने तलाशी ली थी लेकिन वे उनके पास से पत्र हासिल नहीं कर पाए थे। इनमें से एक पत्र भारतीय मूल के ब्रिटिश कम्यूनिस्ट नेता रजनी पालमे दत्त को और दूसरा एक सोवियत एजेंट को सौंपा गया था।

अमिया बोस की बेटी और ‘बोस ब्रॉद्रर्स’ की लेखिका माधुरी बोस ने पीटीआई-भाषा से एक साक्षात्कार में कहा, “मेरे पिता ने बताया था कि उनके चाचा ने उन्हें मई 1939 में कैम्ब्रिज से भारत बुलाया था और ‘रूस मिशन’ पर जाने को कहा था। उनके पिता शरत बोस को इस बारे में पता था जबकि मां को कोई जानकारी नहीं थी। उनसे अपने ओवरकोट की जेब में संदेश ले जाने के लिए कहा गया था।”

अमिया बोस ने अपनी बेटी को बताया था कि उन्होंने सुभाष बोस से कहा था, “अगर मैं आपके संदेशों के साथ पकड़ा जाता हूं तो आपको फांसी दे दी जाएगी।” बोस ने तब कहा था कि वह खुशी-खुशी जोखिम लेंगे।

सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। नेताजी ने सोवियत रूस की सरकार से संपर्क करने के लिए समर्थन प्राप्त करने के वास्ते भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साथ बैठकें की थीं। माधुरी बोस कहती हैं कि बैठक में भाकपा का प्रतिनिधित्व करने वाले सोली बटलीवाला ने इस कदम पर सहमति जताई थी।

बाटलीवाला ने तीन दशक बाद अमिया बोस को दिए गए बैठक के एक हस्तलिखित रिकॉर्ड में बताया कि नेताजी ने उनसे कहा था, ‘मैं जो रणनीति सुझाता हूं वह है: हम भारत में स्वतंत्रता के लिए पूरे पैमाने पर राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करेंगे, उसी समय सोवियत रूस उत्तर की ओर से मार्च करे।”

नेताजी ने स्पष्ट रूप से बटलीवाला से कहा कि ‘सोवियत रूस पर भरोसा किया जा सकता है कि वह इसका फायदा न उठाए और देश पर कब्जा न करे।’

कोलकाता में रहने वाले कम्युनिस्ट के अनुसार, भाकपा इस योजना के पक्ष में नहीं थी, लेकिन इसके लिए सहमत हो गई कि संदेश मास्को तक पहुंच जाए।”

यह निर्णय लिया गया कि सुभाष चंद्र बोस अमिया के माध्यम से सीधा संवाद करेंगे। समुद्री जहाज से ब्रिटेन के पूले बंदरगाह पर पहुंचने पर, अमिया बोस को न्यू स्कॉटलैंड यार्ड के एक अधिकारी ने रोक लिया, जो अच्छी बंगाली बोलता था। उनसे तीन घंटे तक पूछताछ की गई और उनके सामान की तलाशी ली गई।

उनकी शेविंग किट और अन्य जूते जब्त कर लिए गए, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उनके ओवरकोट की तलाशी नहीं ली गई जिसकी जेब में पत्र रखे हुए थे।

अमिया बोस ने बाद में कहा कि उनके चाचा को स्पष्ट रूप से ‘खुफिया अधिकारियों के दिमाग की अच्छी समझ थी।”

माधुरी बोस ने कहा, “सुभाष चंद्र बोस के पत्र का सोवियत संघ की ओर से कोई जवाब नहीं आया। मेरे पिता कहते थे कि जब सोवियत अभिलेखागार वास्तव में खोला जाएगा तो किसी दिन वे पत्र सामने आएंगे।”

ब्रिटिश हुकूमत ने बाद में सुभाष चंद्र बोस को जेल में डाल दिया और फिर घर में नजरबंद कर दिया। मगर वह भाग निकले और 1941 में अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहुंचे, फिर अपने इतालवी पासपोर्ट का इस्तेमाल कर सोवियत रूस पहुंचे। उनके पास काउंट ओरलैंडो मज्जोत्तो नाम से इटली का पासपोर्ट था।

भारतीय युद्ध बंदियों से जर्मनी में भारतीय फौज की स्थापना के बाद, वह भारत को सैन्य रूप से मुक्त कराने के लिए इंडियन नेशनल आर्मी बनाने के लिए जापान पहुंचे।

भाषा

नोमान सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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