नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि बार-बार उसे ये कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन वे सड़क को बाधित नहीं कर सकते.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने मौजूदा परिस्थिति में प्रदर्शनकारियों को समझाने के लिए वार्ताकारों की नियुक्ति के जरिए ढर्रे से हटकर समाधान निकालने का प्रयास किया.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ ने कहा कि अदालत ने ढर्रे से हटकर समाधान निकालने का प्रयास किया लेकिन पता नहीं इसमें कितनी कामयाबी मिली.
पीठ ने कहा, ‘हम पूर्व की सुनवाई में पहले ही कह चुके हैं और बार-बार नहीं कह सकते कि प्रदर्शनकारियों के प्रदर्शन करने के अधिकार हैं लेकिन वे सड़क को अवरुद्ध नहीं कर सकते.’
अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब भाजपा नेता नंद किशोर गर्ग की ओर से पेश वकील शशांक देव सुधी ने शाहीन बाग में सड़क से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए कुछ अंतरिम आदेश देने का अनुरोध किया. वकील ने कहा कि लोग विरोध के अपने अधिकार को औजार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे दूसरे लोगों को परेशानी हो रही है.
पीठ ने कहा, ‘हमने जो सोचा वो समस्या का समाधान निकालने की एक कोशिश थी. हमें अभी पता नहीं कि हमें इसमें कितनी सफलता मिली है लेकिन इतना कहेंगे कि वार्ताकारों ने समाधान निकालने की हर मुमकिन कोशिश की. हम उनके प्रयासों की सराहना करते हैं.’
पीठ ने कहा कि उसने दो वार्ताकारों- वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और वकील साधना रामचंद्रन की रिपोर्ट पर गौर किया है.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत ने वार्ताकारों को प्रदर्शनकारियों को सड़क खाली करने के वास्ते समझाने को कहा था ना कि बाधित सड़क का विकल्प तलाशने का.
इस पर पीठ ने कहा कि अदालत का आदेश इस संबंध में बहुत स्पष्ट है.
पीठ अब मामले पर 23 मार्च को सुनवाई करेगी.
शीर्ष अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. एक याचिका वकील और याचिकाकर्ता अमित साहनी की है और दूसरी भाजपा नेता नंद किशोर गर्ग की. याचिकाओं में शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
शाहीन बाग में पिछले दो महीने से संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है.