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Sunday, 5 May, 2024
होमदेशदेश में पिछले 9 वर्षों में लगभग 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए: नीति आयोग रिपोर्ट

देश में पिछले 9 वर्षों में लगभग 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए: नीति आयोग रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद बिहार, एमपी, राजस्थान का स्थान रहा, जहां इस अवधि में 3.77 करोड़, 2.30 करोड़ और 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहरो आये.

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नई दिल्ली: अनुमान है कि पिछले नौ वर्षों में 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं, नीति आयोग द्वारा सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी का स्तर 2013-14 के 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गया है, जिससे इसमें 17.89 प्रतिशत की कमी आई है.

‘2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी’ विषय पर पेपर नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रमण्यम की उपस्थिति में जारी किया था.

यह पेपर चंद और संघीय थिंक टैंक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. योगेश सूरी द्वारा लिखा गया है. ऑक्सफोर्ड नीति और मानव विकास पहल और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने इसके लिए तकनीकी इनपुट प्रदान किए हैं.

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मौद्रिक पहलुओं से परे कई आयामों में गरीबी को पहचानने का विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त तरीका है. बहुआयामी गरीबी को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर में सुधार के जरिये मापा जाता है. यह 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतकों के माध्यम से दर्शाए जाते हैं.

 

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Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint
ग्राफिक: प्रज्ञा घोष, दिप्रिंट

संकेतकों में पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं. पिछले नौ वर्षों के दौरान सभी 12 संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया गया है.

पेपर में संबंधित नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) राउंड तीन से पांच के डेटा का उपयोग करके वर्ष 2005-06, 2015-16 और 2019-21 के लिए भारत में बहुआयामी गरीबी का अनुमान लगाया गया है. इसमें कहा गया है कि 2005-06 में 55.34 प्रतिशत, जो भारत की आधी से अधिक आबादी हैं बहुआयामी रूप से गरीब थी.

कुल जनसंख्या में ऐसे गरीब व्यक्तियों का अनुपात 2005-06 में 55.34 प्रतिशत से गिरकर 2013-14 में 29.17 प्रतिशत हो गया है, जो 26.17 प्रतिशत की कमी के दर्शाता है.

लेकिन पेपर में कहा गया है कि घातीय पद्धति का उपयोग करके गरीबी की कुल संख्या अनुपात में गिरावट की गति 2005-06 और 2015-16 (7.69 प्रतिशत वार्षिक गिरावट दर) के बीच की अवधि की तुलना में 2015-16 और 2019-21 (10.66 प्रतिशत वार्षिक गिरावट दर) के बीच बहुत तेज थी.

सुब्रमण्यम ने कहा कि पेपर ने एक घातांकीय विधि का उपयोग करके प्रवृत्ति का विस्तार किया है क्योंकि यह गणितीय रूप से अधिक रक्षात्मक है, जो यूएनडीपी और ऑक्सफोर्ड के परामर्श से किया गया था. “सरकार का लक्ष्य बहुआयामी गरीबी को 1 प्रतिशत से नीचे लाना है. उस दिशा में सभी प्रयास किये जा रहे हैं.”

पेपर में कहा गया है कि भारत 2024 के दौरान ही सिंगल-डिजिट गरीबी स्तर तक पहुंच जाएगा.

उनके अनुसार, गरीबी में कमी मुख्य रूप से दो कारकों के कारण हासिल की गई है. उन्होंने कहा, “पहला शासन और वितरण में सुधार है. और दूसरा, लॉन्च की जा रही अधिक से अधिक लक्षित योजनाएं, जो प्रत्येक संकेतक पर मैप की जाती हैं. इसलिए असर कहीं ज्यादा दिख रहा है. दर को किसी तरह कार्यक्रमों की संख्या के साथ सहसंबद्ध किया जा रहा है, जो प्रत्येक संकेतक पर निर्देशित हैं. 12 एमपीआई संकेतकों में से प्रत्येक को लक्षित करने वाली एक योजना है.”

मोदी सरकार ने गरीबों को लक्ष्य करते हुए कई पहल शुरू की थीं, 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त राशन देना, पीएम आवास योजना के तहत गरीबों के लिए घर, प्रधानमंत्री जन धन योजना और मातृ स्वास्थ्य को संबोधित करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, उज्ज्वला योजना के माध्यम से खाना पकाने के लिए ईंधन वितरण, सौभाग्य के माध्यम से बेहतर बिजली, आदि शामिल हैं.


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UP में गरीबों की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट 

राज्यों में, उत्तर प्रदेश ने पिछले नौ वर्षों में 5.94 करोड़ लोगों के गरीबी से बाहर निकलने के साथ गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है, इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान हैं, जहां क्रमशः 3.77 करोड़, 2.30 करोड़ और 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं.

पेपर में विभिन्न क्षेत्रों में अभाव में कमी का विश्लेषण करने के लिए तीन NFHS सर्वेक्षणों के बीच इंडिकेटर-वाइज प्रदर्शन की भी जांच की गई.

इससे पता चलता है कि 2005-06 में अभाव का उच्चतम स्तर खाना पकाने का ईंधन (74.40 प्रतिशत), स्वच्छता (70.92 प्रतिशत) और बैंक खातों (58.11 प्रतिशत) जैसे संकेतकों में पाया गया. दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान बाल और किशोर मृत्यु दर (4.84 प्रतिशत), स्कूल में उपस्थिति (21.27 प्रतिशत) और पीने के पानी (21.34 प्रतिशत) की कमी सबसे कम थी.

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चंद के अनुसार, गरीबी का स्तर नीचे आने के साथ, भारत 2030 तक सभी आयामों में गरीबी में रहने वाले सभी उम्र के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के अनुपात को कम से कम आधा करने के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) 1.2 लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना है.

पेपर में कहा गया है कि वर्तमान परिदृश्य (यानी वर्ष 2022-23 के लिए) के मुकाबले वर्ष 2013-14 में गरीबी के स्तर का आकलन करने के लिए, इन विशिष्ट अवधियों के लिए डेटा सीमाओं के कारण अनुमानित अनुमानों का उपयोग किया गया है.

चंद ने कहा कि बहुआयामी गरीबी में गिरावट की दर मुख्य रूप से विशिष्ट अभाव पहलुओं में सुधार लाने के लिए लक्षित सरकार की बड़ी संख्या में पहलों/योजनाओं के कारण संभव हुई है.

पेपर के अनुसार, अधिक गरीबी वाले राज्यों में पिछले कुछ वर्षों में कुल जनसंख्या अनुपात गरीबी में अधिक कमी देखी गई है, जो दर्शाता है कि विभिन्न राज्यों में अंतर-राज्य बहुआयामी गरीबी अंतर में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है.

हालांकि, पेपर में यह भी कहा गया है कि गरीबी में कमी भिन्न हो सकती है, क्योंकि विभिन्न और बाहरी कारक गरीबी उन्मूलन प्रयासों की गति और प्रक्षेपवक्र को प्रभावित कर सकती हैं. गरीबी का स्तर कम होने की तुलना में जब गरीबी का स्तर अधिक होता है तो कटौती की गति आमतौर पर तेज होती है.

इसके अलावा, चूंकि NFHS-5 डेटा का कुछ हिस्सा महामारी से पहले एकत्र किया गया था, इसलिए पेपर में प्रस्तुत अनुमान अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव या बाद के सरकारी हस्तक्षेपों के निहितार्थ को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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