पटाखों के शोर से घबराकर एनसीआर के कुत्ते कहीं भाग गए हैं और उनकी देखभाल करने वाले सैकड़ों लोग हर जगह उनकी तलाश कर रहे हैं. कुछ फेसबुक, इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहे हैं तो कुछ इनाम की घोषणा करते हुए पोस्टर और हैंडबिल छपवाने में लगे हैं.
यह हर दिवाली होता रहा है. लेकिन महामारी के दौरान पिछले दो सालों से कुत्तों को राहत मिली हुई थी. इस बार पटाखों का शोर वापस आया, तो कुत्ते फिर से एक वॉर जोन में आ गए. अब वे गायब हैं और उनकी देखभाल करने वाले हर जगह उन्हें ढूंढ़ते हुए खुद को हारा हुआ महसूस कर रहे हैं.
दक्षिण और मध्य दिल्ली डॉग फीडर और रेस्क्यू ग्रुप वैगिंग टेल्स की सह-ट्रस्टी मानसी रौतेला बताती हैं, ‘मैं और मेरे दोस्त लगातार इसके बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप हर जगह हमने उनकी तलाश की है. हम पैदल चलकर पोस्टर भी बांट रहे हैं, लेकिन कुत्ते कहीं नहीं मिले.’ उनके चार आवारा कुत्ते दिवाली से लापता हैं. उनके मुताबिक, ऐसा हर साल होता रहा है.
कुत्तों की देखभाल में जुटे बहुत से लोग मानसी की बात से सहमत हैं. और ऐसा सिर्फ दिवाली के दौरान ही नहीं होता है, क्रिसमस, भाई दूज, करवा चौथ और न जाने कितने त्यौहार हैं, जब लोग पटाखे जलाकर जोरदार तरीके से अपनी खुशी जताते हैं. लेकिन कुत्तों के लिए इन धमाकों की आवाज एक डर पैदा करती है और वह कहीं दूर भाग जाते हैं. ऑस्ट्रिया के एक वेटरनरी स्कूल में पढ़ रही गायत्री को ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था. इस साल दिवाली के बाद कुछ समय के लिए उनके दो कुत्ते लापता हो गए. जब वो दोनों लौटकर आए तो उनके शरीर पर काटने के निशान और खरोंचें लगी हुईं थी. इससे पता चलता है कि वे किस डर से गुजरे होंगे.
अधिकांश रेस्क्यूअर और डॉग फीडर फिलहाल तो अपने भाग्य से हारा हुआ महसूस कर रहे हैं. इतने दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक वो अपने कुत्तों को नहीं ढूंढ़ पाए हैं. डॉग्स (और कैट्स) ऑफ दिल्ली नामक एक इंस्टाग्राम अकाउंट चलाने वाली अनुप्रिया कहती हैं, ’13 दिन हो गए हैं और हमें अभी भी हमारी चमेली नहीं मिली है. वह बूढ़ी है और उसे बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत है. मैं उसे खोजने के लिए सब कुछ कर रही हूं.’ उन्होंने अपने कुत्ते को खोजने के लिए 25,000 रुपये के इनाम की भी घोषणा की है.
यह भी पढ़ें: ‘खूनी संघर्ष, लंबा इंतजार’: जमीन का डिजिटलीकरण शुरू होते ही नए विवादों से घिरीं बिहार की जिला अदालतें
गुरुग्राम में रहने वाली डॉग रेस्कयूअर और फीडर छवि गोयल भी सीनियर ओंजा नाम के अपने आवारा कुत्ते की तलाश कर रही हैं. वह 25 अक्टूबर से लापता है. 32 साल की छवि के मुताबिक, कुछ लोगों ने इस साल दिवाली का फायदा उठाकर जानबूझकर आवारा कुत्तों को चोट पहुंचाई हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने देखा था लोग मेरे कुत्ते के खाने की जगह पर पटाखे फेंक रहे थे. आप इन लोगों को रिपोर्ट भी नहीं कर सकते क्योंकि वे यह कहकर आसानी से बच निकलते हैं कि वे तो सिर्फ दिवाली मना रहे हैं.’ छवि ने कुत्ते को ढूंढ़कर लाने वाले को 10 हजार रुपये इनाम देने की घोषणा की हुई है. सीनियर ओन्जा की तलाश करते हुए छवि फिलहाल अन्य कुत्तों की देखभाल में जुटी हैं, जो अपने परिवार से दूर हो गए हैं और परेशान हैं.
इनाम, रेस्क्यूअर्स और पीडब्ल्यूडी
कुत्तों की परवाह और देखभाल करने वाले बहुत से लोगों ने छवि और अनुप्रिया से संपर्क किया है. तो वहीं कुछ लोगों ने इनाम में मिलने वाले पैसों के लालच में उनकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो स्थिति को बद से बदतर बनाने में लगे हैं और प्रैंक कॉल कर उनकी परेशानी को बढ़ा रहे हैं. मगर सभी डॉग फीडर एकजुट हैं और लापता कुत्तों को खोजने में एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं.
फीडिंग एरिया में लगे सीसीटीवी फुटेज भी फीडरों की कुत्तों की तलाश में मदद कर रहे है. लेकिन लोक निर्माण विभाग की लालफीताशाही उनके इस काम में रोड़ा अटका रही है. अनुप्रिया का स्ट्रे डॉग ‘चमेली’ दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के घर के पास रहता था. यह एरिया पूरी तरह से सीसीटीवी कैमरों से ढंका है. लिखित में एप्लिकेशन देने के बाद भी पीडब्ल्यूडी ने फुटेज उपलब्ध नहीं कराए हैं. अनुप्रिया कहती हैं, ‘कई दिन बीत चुके हैं. पीडब्ल्यूडी के क्लर्क अभी भी कह रहे हैं कि इसमें कुछ समय और लगेगा.’
इस मुश्किल समय में ऑटो चालक, चौकीदार, रेहड़ी-पटरी वाले और यहां तक कि ट्रैफिक पुलिस वाले भी उनकी मदद के लिए आगे आए हैं. फरीदाबाद में रहने वाली एक रिटायर्ड प्रोफेशनल उमा रमेश कहती हैं, ‘मैं अपने लापता कुत्तों में से एक को खोज पाई क्योंकि एनडीएमसी कार्यकर्ताओं ने मेरी मदद की थी’ उन्होंने बताया कि लापता कुत्तों को खोजने के लिए पैदल चलकर उनकी तलाश करना ज्यादा फायदेमंद रहता है.
उमा आगे कहती हैं, ‘मैं पिछले 40 सालों से आवारा कुत्तों की देखभाल कर रही हूं. सोशल मीडिया ने कभी भी कुत्तों को खोजने में मेरी मदद नहीं की. इसकी बजाय दुकानदारों, आइसक्रीम बेचने वाले, चाय वाले और चौकीदारों से बात करना ज्यादा काम करता है. वास्तव में ट्रैफिक पुलिस काफी मददगार साबित होती है.’
कई लापता आवारा कुत्ते घर से 20-30 किमी दूर मिले हैं. रेस्कयूअर लापता कुत्तों की तलाश में हर दिन बाहर जा रहे हैं और कुत्ते की देखभाल करने वाले भी उम्मीद लगाए बैठे हैं.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: पिलर और गार्टर तैयार होने के साथ गुजरात में कैसे गति पकड़ रही है 348 किलोमीटर लंबी बुलेट ट्रेन परियोजना