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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशNCPCR बोला- रांची शेल्टर होम में नाबालिग के शोषण का मामला 'मंदर से जुड़ा,' वकील का किसी लिंक से इनकार

NCPCR बोला- रांची शेल्टर होम में नाबालिग के शोषण का मामला ‘मंदर से जुड़ा,’ वकील का किसी लिंक से इनकार

एनसीपीसीआर ने दिल्ली हाई कोर्ट में रांची शेल्टर होम पर रिपोर्ट दाखिल की है. मामला एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के संगठन सीईएस की तरफ से संचालित दो अन्य बाल गृहों से जुड़ा है, लेकिन वकील का कहना है कि रांची स्थित शेल्टर होम वे नहीं चलाते हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने लड़कियों के लिए खुशी रेनबो होम नामक बच्चों के शेल्टर होम की रांची ब्रांच में एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न की घटना समेत कथित तौर पर कई उल्लंघनों का आरोप लगाया है.

लड़कियों के खुशी रेनबो होम की दिल्ली ब्रांच सहित दो अन्य बाल गृहों के संबंध में चल रहे एक मामले के सिलसिले में पिछले हफ्ते दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष एक रिपोर्ट दायर की गई थी. ये शेल्टर होम सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) की तरफ से संचालित हैं, जिनमें एक्टिविस्ट और लेखक हर्ष मंदर निदेशक हैं. हालांकि, मंदर के वकील सरीम नावेद ने दिप्रिंट को बताया कि नई रिपोर्ट ‘अप्रासंगिक’ है क्योंकि रांची स्थित शेल्टर होम सीईएस द्वारा संचालित नहीं है.

लेकिन एनसीपीसीआर का कहना है कि वह ‘रेनबो होम प्रोग्राम के तहत चल रहे संस्थानों’ का निरीक्षण कर रहा था. इसने कहा कि रांची स्थित शेल्टर होम इसी कार्यक्रम का ‘हिस्सा’ है और इसी के तहत ‘चल रहा है.’ एनसीपीसीआर ने इस मामले में दिल्ली में प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

एनसीपीसीआर—जो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है—ने अपनी रिपोर्ट दावा किया है कि झारखंड के रांची जिले में स्थित कुटे गांव के इस शेल्टर होम में बच्चे एकदम दयनीय परिस्थितियों में रहते हैं.

एनसीपीसीआर ने आरोप लगाया है कि इन बच्चों को जरूरत की चीजें भी नहीं मिलती हैं जो कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजेए) में निर्धारित की गई है. जेजेए अपराधी किशोरों और देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों से जुड़ा एक विशेष कानून है. दिप्रिंट ने एनसीपीसीआर की रिपोर्ट को एक्सेस किया है.


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क्या है मामला

एनसीपीसीआर रिपोर्ट हाईकोर्ट में दायर एक हलफनामे का हिस्सा थी, जो राष्ट्रीय राजधानी में मंदर के संगठन सीईएस की तरफ से चलाए जा रहे बच्चों के दो शेल्टर होम के मामले में पिछले साल दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. इसमें एक लड़कियों के लिए चलने वाले खुशी रेनबो होम की दिल्ली ब्रांच, और एक अन्य संगठन उम्मीद अमन घर—जो लड़कों के लिए है—से जुड़ी थी.

पिछले साल दायर याचिका में एनसीपीसीआर की उस निरीक्षण रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की गई थी जिसमें दोनों शेल्टर होम पर 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत में दिल्ली में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में बच्चों के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था.

सीईएस ने एनसीपीसीआर के उन निष्कर्षों को चुनौती दी है, जिनके कारण दिल्ली सरकार ने शेल्टर होम के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया था, और उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की थी.

पिछले साल दायर एक हलफनामे में एनसीपीसीआर ने पहले ही दोनों शेल्टर होम के संबंध में अपने निष्कर्षों को सही ठहराने का प्रयास किया था. पिछले हफ्ते, इसने अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के माध्यम से एक नया हलफनामा दायर किया, जिसमें कोर्ट के समक्ष खुशी रेनबो होम की रांची ब्रांच पर नवीनतम रिपोर्ट रखी गई.

एनसीपीसीआर ने शेल्टर होम के अंदर एक नाबालिग लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न की शिकायत मिलने के तीन दिन बाद इस साल 26 अप्रैल को रांची ब्रांच का निरीक्षण किया था.

शिकायत में आरोप लगाया गया था कि शेल्टर होम प्रबंधन ने घटना के संबंध में जानकारी छिपाई थी.

एनसीपीसीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, शेल्टर होम ने ‘एक नाबालिग लड़की का शेल्टर होम के गार्ड द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने की घटना के बारे में जानबूझकर रिपोर्ट नहीं कराई’ और इसलिए, एनसीपीसीआर ने दिल्ली में उसके प्रबंधन के खिलाफ एफआईआर की सिफारिश की है.

मंदर के वकील नावेद ने एनसीपीसीआर की रिपोर्ट को दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष कार्यवाही के लिए अप्रासंगिक बताते हुए खारिज कर दिया है.

नावेद ने कहा, ‘रिपोर्ट रांची स्थित एक बाल गृह से संबंधित है, जो एक अन्य संगठन की तरफ से चलाया जाता है और इसका हर्ष मंदर से कोई लेना-देना नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष जारी कार्यवाही दिल्ली के दो शेल्टर होम से संबंधित है जहां एनसीपीसीआर की करीब एक साल पुरानी जांच रिपोर्ट को चुनौती दी गई है. लंबित मामले का एनसीपीसीआर की इस (रांची) रिपोर्ट से कोई संबंध नहीं है.’

रांची शेल्टर होम की तरफ से एनसीपीसीआर की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए समय मांगने के बाद हाई कोर्ट ने मामले में कार्यवाही स्थगित कर दी है.

क्या कहती है एनसीपीसीआर की रिपोर्ट

हाई कोर्ट को सौंपी निरीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के नेतृत्व में एक टीम ने वहां के प्रभारी और शेल्टर होम के कर्मचारियों के साथ-साथ कथित पीड़िता से भी बातचीत की.

यौन उत्पीड़न के बारे में सूचना मिलने के बाद कर्मचारियों की तरफ से उठाए कदमों के संबंध में कथित तौर पर कई विसंगतियां और प्रक्रियागत खामियां देखी गईं है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि कथित तौर पर नाबालिग लड़की का उत्पीड़न करने वाले गार्ड के ठिकाने के बारे में स्टाफ के सदस्य खुलकर कुछ भी नहीं बता रहे. हर कर्मचारी के साथ व्यक्तिगत स्तर पर बातचीत के दौरान ही टीम को पता लगा कि गार्ड को नौकरी से निकाल दिया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, टीम को यह भी बताया गया कि कथित घटना के संबंध में पुलिस में कोई शिकायत नहीं की गई थी और न ही पीड़िता को चिकित्सकीय सहायता या परामर्श मुहैया कराया गया.

इसके अलावा, एनसीपीसीआर का यह दावा भी है कि किशोर न्याय कानून और 2016 में उसमें जोड़े गए कई प्रावधानों में कई अहम उल्लंघन पाए गए हैं,

यद्यपि कानून के तहत सभी चाइल्ड केअर संस्थानों का पंजीकरण अनिवार्य है, लेकिन रांची स्थित शेल्टर होम के निरीक्षण के दौरान कथित तौर पर ऐसा नहीं पाया गया.

इसके अलावा, कानून के तहत अभिभावक से अलग होने वाले बच्चों के बारे में किशोर न्याय कानून के तहत गठित बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी), चाइल्डलाइन सेवाओं, जिला बाल संरक्षण इकाई, या निकटतम पुलिस स्टेशन में सूचना दिए जाने का प्रावधान है.

यदि यह सूचना 24 घंटे के भीतर नहीं दी जाती है, तो इसे अधिनियम के तहत उल्लंघन माना जाता है, और उल्लंघन करने वाले को छह महीने की जेल, 10,000 रुपये का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है.

एनसीपीसीआर की निरीक्षण टीम का कहना है कि उसने पाया कि घर में रहने वाले 59 बच्चों में से केवल नौ ही सीडब्ल्यूसी के आदेश के तहत वहां रहे थे. कथित तौर पर, यह दर्शाने वाला कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया कि शेष बच्चे किस आधार पर शेल्टर में रह रहे थे.

रिपोर्ट में कुछ और कथित उल्लंघनों पर प्रकाश डाला गया है, खासकर शेल्टर होम के बुनियादी ढांचे को लेकर. और उन मामलों में भी कागजी खानापूरी पूरी नहीं पाई गई जहां जहां बच्चों को फिर उनके अभिभावकों के हवाले कर दिया गया था.

बुनियादी ढांचे और चाइल्डकेअर सुविधाओं के संबंध में टीम ने पाया कि शेल्टर होम कानून के तहत निर्धारित अनिवार्य देखभाल और न्यूनतम मानकों पर खरा नहीं उतरता है. कथित तौर पर कोई प्रबंधन या बाल समितियां नहीं थीं, और बाल कल्याण अधिकारी, परामर्शदाता, चिकित्सा अधिकारी, पैरामेडिकल स्टाफ, हाउसकीपिंग स्टाफ और हेल्पर जैसे महत्वपूर्ण पद रिक्त पाए गए.

सोने के कमरे भी ठीक से नहीं बने थे, पंखे नहीं थे, और साफ-सफाई भी नहीं थी. इसके अलावा कर्मचारी और बच्चे एक ही कमरा साझा करते थे जिससे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की आशंका बढ़ जाती है. रिपोर्ट में दावा किया गया कि कर्मचारियों और बच्चों के लिए शौचालय भी कॉमन थे.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘संस्था में रहने वाले बच्चों की स्थिति बच्चों के मानसिक, सामाजिक और स्वस्थ विकास के लिहाज से सही नहीं थी.’

संस्था ये दर्शाने वाले दस्तावेज पेश करने में असमर्थ थी कि बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं, और न ही यह बताने वाला कोई रिकॉर्ड था कि जिन मामलों में बच्चों को उनके अभिभावकों को सौंपा गया था, उसकी कार्यवाही सीडब्ल्यूसी के आदेशों के तहत आगे बढ़ी थी.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आयोग यहां रहने वाले बच्चों की दयनीय स्थिति से बेहद दुखी था, जिन्हें बच्चों के कल्याण के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही थीं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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