रायपुर: वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के इस दौर में माओवादी एक ओर जहां अपनी कमजोर पड़ रही जड़ों को दोबारा संजोने में लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को कोसते हुए कह रहें हैं कि दुनिया भर में एक लाख लोगों की जान लेने वाली यह बीमारी चीन नहीं अमेरिका की देन है.
माओवादियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का गुलाम बताया है. हालांकि माओवाद विरोधी अभियान में कार्यरत पुलिस अधिकारियों के अनुसार नक्सलियों का यह आरोप लॉकडाउन में उन्हें खाद्य सामग्री और दवाइयां मिलने में हो रही परेशानी से उत्पन्न खीझ का नतीजा है.
साम्राज्यवादियों को नष्ट करने से ही कोरोना पर नियंत्रण पाया जा सकता है
नक्सलियों ने हाल में एक खुला पत्र जारी कर आरोप लगाया कि कोविड-19 का वास्तविक जनक चीन नहीं अमेरिका है जो युद्ध जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की शीर्ष केंद्रीय समिति ने कहा कि कोरोना अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों द्वारा बनाया गया है. अमेरिका की ओर इशारा करते हुए माओवादियों ने कहा कि साम्राज्यवादियों को नष्ट करने से ही कोरोना पर नियंत्रण किया जा सकता है.
नक्सलियों के पत्र में कहा गया है कि ‘कोरोनावायरस के अमेरिका में अपना प्रभाव दिखाने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस वायरस के विस्तार का कारण चीन को बताया था लेकिन चीन ने इसका खंडन किया. अमेरिका ने दूसरे वर्ल्ड वार में परमाणु बम का उपयोग किया गया था. उस समय से यह राष्ट्र मानव के ऊपर युद्ध जारी रखे हुए है. यह पूरे संसार को मालूम है कि वर्तमान में कोरोना जैसे विनाश करने वाला हथियार को वायरस के रूप में पैदा करने का काम इन्हीं साम्राज्यवादियों का है.’
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नक्सलियों ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अमेरिका को हैड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात करने के निर्णय की भी निंदा करते हुए कहा की, ‘अमेरिका की गुलामगिरी करते हुए देश के स्वास्थ्य कि स्थिति पर ज्यादा ध्यान नही दिया जा रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘कोरोना बीमारी में इस्तेमाल होने वाली हॉइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाईयों को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की चेतावनी से मोदी सरकार इन दवाईयों को अमेरिका भेजा रही है.’
सरकार ने कहा- नक्सलियों का पत्र लोगों में सहानुभूति पाने के लिए
माओवादी विरोधी अभियान में तैनात पुलिस अधिकारियों से जब दिप्रिंट ने सीपीआई (एम) केंद्रीय समिति के पत्र और नक्सलियों के आरोप के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि नक्सलियों द्वारा यह पत्र जनता में उनकी कम होती साख और पकड़ का एक मुख्य कारण है.
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी का कहना है, ‘यह सर्वविदित है कि नक्सलियों की पकड़ बस्तर के ग्रामीणों में बहुत कमजोर हो गई. उनके द्वारा यह पत्र अपने बचे हुए लड़ाकू कैडर के मनोबल को बनाए रखने के लिए लिखा गया है. सरकार की बुराई करना भी उनके इसी नीति का हिस्सा है.’
आईजी ने आगे बताया की यदि नक्सली गरीब और सर्वहारा समाज के सही मायने में हितैषी होते तो ग्रामीणों की बेवजह हत्याएं नही करते.
नक्सलियों को नहीं मिल पा रहा अनाज और दवाई
अधिकारियों का कहना है कि देशव्यापी कोरोना लॉकडाउन नक्सलियों के लिए एक परेशानी का प्रमुख कारण बन चुका है क्योंकि अंतर्राज्यीय बॉर्डर सील हो जाने की वजह से चरमपंथियों को जरूरी खाद्य सामग्री और दवाईयां नही मिल पा रही हैं.
सुंदरराज ने बताया की लॉकडाउन के चलते बस्तर के शहरी क्षेत्रों, बाजारों और अंतर्राज्यीय बॉर्डर में सुरक्षबलों की मुस्तैदी बढ़ जाने से माओवादी को काफी नुकसान हो रहा है. आईजी का कहना है कि, ‘लॉक डाउन की वजह से नक्सली अपने जरूरत के सभी समान नहीं जुटा पा रहे हैं. नक्सली अपने यूनिफॉर्म, रेशम, दवाईयों और करीब 50 प्रतिशत खाद्य सामग्री की पूर्ति या तो स्थानीय बाजारों से करते हैं या फिर पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश से, लेकिन लॉक डाउन की वजह से उनके बाजार में आने और पड़ोसी राज्य में खरीदी करने की गतिविधि पूरी तरह से ठप्प पड़ी है.’
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उन्होंने कहा, ‘हम यह दावा नहीं करते की नक्सली भूखे मर रहें हैं लेकिन लॉकडाउन में उनका सप्लाई नेटवर्क काफी कमजोर हो गया है. वर्तमान में खाद्यान्न के लिए वे सिर्फ ग्रामीणों से इकट्ठा किये गए अनाज पर ही निर्भर हैं वहीं अन्य सामग्रियों की सप्लाई ना के बराबर रह गई है’.