नई दिल्ली: क्रिसमस के दिन एक ट्विटर थ्रेड वायरल हुआ. इसमें एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने उन लोगों के साथ अपनी बातचीत के स्क्रीनशॉट साझा किए थे जिन्होंने उन्हें त्योहार की बधाई दी थी. पूर्व अधिकारी एम. नागेश्वर राव, जिन्होंने कुछ समय के लिए भारत की शीर्ष जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो का नेतृत्व किया था, ने ऐसे कई बधाई संदेशों का जवाब कुछ इस तरह दिया, ‘मैं ईसाई नहीं हूं और मैं मानता हूं कि आप भी नहीं हैं. फिर इसकी वजह?’
My Christmas conversation-1:
With a Hindu Professor from a top most Business School of the country who wished me Merry Christmas on WhatsApp?….. https://t.co/rqzEu5XyNF pic.twitter.com/guKeEYhEm5
— M. Nageswara Rao IPS (@MNageswarRaoIPS) December 25, 2020
यह ट्वीट शायद राव के विशेष तौर पर सोशल मीडिया पर नए-नवेले अवतार के अनुरूप ही था, उनके ट्विटर बायो के अनुसार, राव का विजन ‘सिविलाइजेशनल इंडिया’ है और उनका मिशन ‘हिंदुओं के लिए समान अधिकार’ है.
राव ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि भारतीय जब पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर एक-दूसरे को बधाई संदेश नहीं देते हैं तो हिंदुओं को गैर-हिंदू त्योहारों पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं क्यों देनी चाहिए? उन्होंने कहा, ‘मुझे गैर-हिंदुओं की तरफ से हिंदू त्योहारों पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने के मामले दिखाइये, मैं जाकर उनका फूल-मालाओं से स्वागत करूंगा.’
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‘बौद्धिक स्तर पर सुस्त हिंदुओं’ को जगाने की कोशिश
क्रिसमस पर शुभकामनाएं स्वीकारने में राव की अनिच्छा इस धारणा से उपजी है कि ईसाई और इस्लाम दोनों ही धर्म ‘विस्तारवादी’ है जो हिंदुओं को निशाना बनाने में लगे हैं.
पिछले महीने स्वराज्य में ‘लव जिहाद’ पर प्रकाशित एक लेख में पूर्व आईपीएस अधिकारी ने लिखा था, ‘अब्राहम से जुड़े ईसाई और इस्लाम जैसे धर्मों को दुनियाभर में विस्तारवादी पंथों के रूप में जाना जाता है. जिसका मतलब है कि उन्हें अपनी जनसांख्यिकी लगातार बढ़ानी होगी जो कि भूगोल के साथ भी संबद्ध है. दोनों धर्म पूरी तरह सुनियोजित ढंग से बहुराष्ट्रीय धर्मांतरण व्यवस्था के जरिये दूसरे धर्मों के लोगों को निशाना बनाते हैं.’
इसी साल अगस्त में सेवानिवृत्त हुए ओडिशा कैडर के 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी राव अक्सर ट्विटर पर व्यक्त अपने विचारों के लिए लोगों की आलोचना झेलते हैं, जिसमें आईपीएस में उनके पूर्व सहयोगी भी शामिल हैं.
इस साल जुलाई में उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने मुस्लिमों के खिलाफ टिप्पणियों और अभद्र भाषा के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. और कई सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारियों ने ‘हिंदू सभ्यता के अब्राहमकरण’ संबंधी उनके बयान की यह कहते हुए निंदा की थी कि यह सब राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए किया गया.
राव ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं बस उन्हें अनदेखा करता हूं. ये ज्यादातर अपनी जड़ों से उखड़े हिंदू हैं, जो भला-बुरा कुछ नहीं समझते हैं. राव ‘जड़ों से उखड़े हिंदू’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन लोगों का जिक्र करने के लिए करते हैं जो उनकी नज़र में ‘केवल नाम के हिंदू’ हैं और अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के बारे में गहराई से समझने के लिहाज से ‘बौद्धिक स्तर पर सुस्त’ हैं.
यह पूछे जाने पर कि उनके अनुसार हिंदू धर्म केवल हिंदुओं के लिए एक पहचान चिह्न होना चाहिए या नागरिकों के रूप में उनकी पहचान का एक सक्रिय हिस्सा, राव ने कहा, ‘यह हिंदू धर्म (सिख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म सहित) ही है जो भारत की पहचान है. आप इसे हटा दें, भारत भारत नहीं रह जाएगा, बल्कि किसी अन्य ईसाई या मुस्लिम देश की तरह ही होगा.
राव ने यद्यपि इस बात से इनकार किया कि उनका चुनावी राजनीति में उतरने का कोई इरादा है, साथ ही जोड़ा कि उनका मिशन हिंदू कार्यकर्ता या हिंदुओं का पैरोकार बनना है— यानी एक ऐसा कार्य जिसे वे ‘राजनीतिक सक्रियता’ कहते हैं. जल्द ही एक किताब लिखने की योजना बना रहे राव का कहना है, ‘राजनीति और राजनीतिक सक्रियता के बीच एक अंतर होता है. मैं निश्चित रूप से दूसरा वाला काम करने का इरादा रखता हूं.’
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नई ‘सक्रियता’
यह पूछे जाने पर कि क्या हिंदुओं की पराधीनता संबंधी उनकी राय और यह विचार कि हिंदू धर्म ही भारत की एकमात्र पहचान है, कभी आईपीएस अधिकारी के रूप में उनके काम के आड़े नहीं आया, राव का कहना था, ‘मेरे लिए मेरा काम और मेरे विचार पूरी तरह से अलग-अलग मायने रखते हैं. मेरे करियर में ऐसा कोई मामला नहीं आया है जिसमें मैंने किसी के साथ भेदभाव किया हो. एक पुलिस अधिकारी के रूप में मैंने केवल सबूतों को आधार बनाया.’
राव ने कहा कि वह ‘घृणा अपराध’ जैसे किसी मिथक पर विश्वास नहीं करते हैं, जिसे वे ‘हिंदू विरोधियों की साजिश’ और ‘पश्चिम की खोज’ करार देते हैं.
उन्होंने कहा कि जब तक सेवारत अधिकारी रहे तब तक उन्होंने कभी ऐसे विचार व्यक्त नहीं किए. ‘यह तो सेवानिवृत्त होने के बाद है जब मैं एक स्वतंत्र इंसान हूं और ऐसा कर पा रहा हूं.’ हालांकि, उनका पहला ट्वीट जिसके लिए उन्हें अपने आईपीएस के पूर्व सहयोगियों से जमकर खरी खोटी सुननी पड़ी थी वह उन्होंने रिटायर होने से सात दिन पहले किया था और उसमें रिटायरमेंट के बाद अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में बात की थी.
सीबीआई, जहां उन्होंने बतौर प्रमुख थोड़ा कार्यकाल बिताया था, में पूर्व सहयोगियों का भी तर्क है कि हिंदू मुद्दों को लेकर उनकी मुखरता उनका नया अवतार ही है.
केंद्र में राव के एक पूर्व आईपीएस सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘उन्होंने इससे पहले ऐसा कोई भाव नहीं दिखाया था. यह तो हाल ही में हुआ कि वह अचानक ही एकदम कट्टर मुस्लिम विरोधी और ईसाई विरोधी नज़र आने लगे…वह हमेशा विवादों में रहे लेकिन यह तो एक नया ही रूप है और अवसरवादी लगता है.’
हालांकि, राव का कहना है कि वह पहले से ही इस तरह के विचार रखते थे लेकिन इन्हें जाहिर करना सेवानिवृत्त के बाद शुरू किया है.
उन्होंने कहा, ‘एक हिंदू के रूप में मेरी मुखरता सालों तक मेरे अध्ययन का नतीजा है. मैं बहुत पढ़ता हूं. नौकरशाही (जिसके बारे में उनका तर्क है कि वाम-उदारवादी झुकाव वाली है) के साथ सालों से यही समस्या चली आ रही है कि सिविल सेवाओं में आने वाले बुद्धिमान लोग कुछ भी नहीं पढ़ते हैं, सिवाये फाइलों को छोड़कर… मैंने ऐसा कभी नहीं किया.’
वह अपने विचारों को उनके ‘विकास’ का एक हिस्सा बताते हैं क्योंकि उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों की शुरुआत एक कट्टरपंथी छात्र आंदोलन के साथ की थी. उन्होंने कहा, ‘(जेल में बंद एक्टिविस्ट) वरवर राव मेरे प्रोफेसर थे और मैं उस समय क्रांतिकारी छात्रसंघ में शामिल था.’
हैदराबाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर और आईआईटी मद्रास में शोधकर्ता रहे राव संविधान के प्रति कोई विशेष श्रद्धा नहीं रखते हैं, जिसकी हर अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी को शपथ दिलाई जाती है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि उनका मानना है कि संविधान वह है जो कानूनी रूप से हिंदुओं को पराधीन बनाता है. उनका तर्क है, ‘यह संविधान भारत के लोगों द्वारा नहीं बनाया गया था. उस समय संविधान सभा ने केवल 15 प्रतिशत भारतीयों का प्रतिनिधित्व किया था. इसलिए प्रस्तावना की प्रारंभिक पंक्तियां— ‘हम, भारत के लोग’— सरासर गलत हैं.’
इस साल अगस्त में उन्होंने एक आलेख लिखा, जिसमें उन्होंने संविधान को ‘नेहरू का ‘दास’ संविधान’ कहा था.
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आरोपों का अंबार
हालांकि, ट्विटर पर उनकी धार्मिक सक्रियता अपेक्षाकृत नई हो सकती है और जिसके लिए उन्हें तीखी आलोचानएं और व्यापक समर्थन दोनों हासिल होता है, राव का करियर विवादों, भ्रष्टाचार के आरोपों और सीबीआई- जहां संक्षिप्त ही सही लेकिन एक पुलिस अधिकारी के रूप में उनकी बेहद अहम नियुक्ति थी— से अचानक बेदखल किए जाने जैसी घटना से भरा रहा है.
2016 में राव को संयुक्त निदेशक के रूप में सीबीआई में लाया गया था, जिसके पहले वह ओडिशा में एडीजी रेलवे के पद पर कार्यरत थे. वह भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण (बीडीए) का नेतृत्व करने वाले एकमात्र आईपीसी अधिकारी भी हैं. 2008 के कंधमाल दंगों के दौरान वह सीआरपीएफ में महानिरीक्षक के रूप में भी काम कर रहे थे और तनाव घटाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. राव ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल में क्रमश: चिट फंड और सारदा घोटाले की जांच भी की थी.
यद्यपि उन्होंने घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं की जांच का जिम्मा संभाला लेकिन खुद भी ऐसे कई आरोपों के घेरे में भी आए.
राव पर ओडिशा के भुवनेश्वर में अग्निशमन सेवा निदेशालय के प्रमुख के रूप में वित्तीय अनियमितता, सीबीआई जांच को प्रभावित करने की कोशिश और कार्यालय में कोष के दुरुपयोग के आरोप लगे थे. उनकी पत्नी की शैल कंपनी में हिस्सेदारी के आरोप भी लगाए गए.
उन पर कोई भी नीतिगत निर्णय को न लेने के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद अंतरिम सीबीआई प्रमुख के रूप में तय प्रक्रियाओं का पालन किए बिना फैसले लेने का आरोप भी लगा, जिसके लिए उन्हें अवमानना का दोषी माना गया. तब भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने राव की कार्रवाइयों को शीर्ष अदालत की ‘महिमा’ और ‘गरिमा’ के खिलाफ करार देते हुए इन्हें ‘अवहेलना’ और ‘अपमान’ माना था.
वर्मा की जगह लाए जाने के कुछ महीने बाद ही आश्चर्यजनक रूप से सीबीआई से हटाए जाने को लेकर राव ने चुप्पी साधे रखी, उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताया. उन्होंने कहा, ‘सरकार के समक्ष मेरी तरफ से दाखिल रिटर्न के आधार पर ही उन्होंने मेरे खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की साजिश रची. मेरे सीबीआई में आने के बाद यह सब चीजें जाने कहां से सामने आ गईं.’
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