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Saturday, 2 November, 2024
होमदेश'यह कोई आम सिलाई का काम नहीं'- #HarGharTiranga के लिए पंजाब में झंडे सिल रहीं मुस्लिम महिलाएं

‘यह कोई आम सिलाई का काम नहीं’- #HarGharTiranga के लिए पंजाब में झंडे सिल रहीं मुस्लिम महिलाएं

मलेरकोटला अपने बारीक कढ़ाई के काम के लिए जाना जाता है. इलाके में कई स्मॉल स्केल यूनिट हैं जो भारतीय सेना और सुरक्षाबलों के लिए सेरेमोनियल झंडे, प्रतीक चिन्ह और बैज बनाने का काम करती हैं.

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सुनामी गेट इलाके में पक्की गलियों की भूलभुलैया में 42 साल की नाहिदा नूर का घर है. वह बरामदे में बैठी तिरंगे सिल रही हैं. साथ ही में देशभक्ति गीत बज रहा है. सिलाई मशीन पर तेजी से चलते उनके हाथ और उनकी चमकती आंखें बता रहीं हैं कि वह अपने काम में कितनी माहिर हैं.

नूर कहती हैं, ‘जो मैं इन तिरंगे को सिलकर कर रही हूं, यह कोई आम सिलाई का काम नहीं है.’ वह कहती हैं, ‘मुझे यह काम करने में गर्व महसूस हो रहा है. मुझे पता है कि मेरे हाथों का सिला गया राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता दिवस पर पूरे देश में घरों पर फहराया जाएगा.’

वह पंजाब के मलेरकोटला शहर में अपने घर के ऊपर भी तिरंगा फहराएंगी.

नूर बताती हैं, ‘यह पहल (हर घर तिरंगा अभियान) हमारे लिए एक वरदान के रूप में आई है. इसलिए मैं बाकी के सभी कामों को छोड़ पहले इसे करती हूं. अब हम पहले से ज्यादा कमा पाते हैं.’ उनकी 20 साल की बेटी, जिसने तीन साल पहले बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर ली थी, उनकी मदद कर रही है. वह अब अपनी मां से सिलाई करना सीख रही है. नूर कहती हैं, ‘हमें प्रति पीस 15-20 रुपये मिलते हैं और मैं एक दिन में 45 से 50 पीस बना लेती हूं.’

मुस्लिम बहुल पंजाब के मलेरकोटला शहर में नाहिदा जैसी कई महिलाएं पिछले 15 दिनों से अपने ऑर्डर पूरा करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रही हैं. गरीब तबके की इन महिलाओं में से कुछ अकेले काम करना पसंद करती हैं, तो कुछ को ग्रुप में काम करना अच्छा लगता है.

Nahida Noor along with other women stitching tricolor on the veranda of Noor's house. | Chitvan Vinayak | ThePrint
नाहिदा नूर अन्य महिलाओं के साथ नूर के घर के बरामदे पर तिरंगा सिल रही हैं. | रीति अग्रवाल | दिप्रिंट

झंडे और बैज का काम करने वाले एनएन एम्ब्रायडरी यूनिट के मालिक मोहम्मद नसीम ने कहा, ‘कम से कम 1,800-2,000 महिलाएं तिरंगा बनाने के काम में लगी हुई हैं. इनमें से ज्यादातर महिलाएं मुस्लिम हैं और अपने घरों से काम कर रही हैं.’ नसीम ही इन महिलाओं को कपड़ा मुहैया कराकर तिरंगा बनाने के लिए काम पर रखते हैं. राष्ट्रीय ध्वज की सिलाई में लगी महिलाओं की तुलना में पुरुष कम हैं.

मलेरकोटला में फलफूल रहा है झंडा व्यवसाय

पटियाला और लुधियाना के बीच बसे मलेरकोटला की आबादी लगभग 1.35 लाख है. यह पंजाब का 23वां नवगठित जिला है. 2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलमानों की कुल आबादी का 68.5 प्रतिशत है.

यह इलाका अपने बारीक कढ़ाई के काम और कुशल कारीगरों के लिए जाना जाता है. मलेरकोटला में कई स्मॉल स्केल यूनिट है जो भारतीय सेना और सुरक्षाबलों के लिए सेरेमोनियल झंडे, प्रतीक चिन्ह और बैज बनाने का काम करती हैं. इस साल झंडों की मांग काफी ज्यादा है.

Rubina, 22, has been into stitching since 4 years and is now working at NN embroidery, one of the units that deals in flags and badges. | Chitvan Vinayak | ThePrint
22 साल की रुबीना 4 साल से सिलाई कर रही हैं और अब एनएन कढ़ाई में काम कर रही हैं, जो झंडे और बैज में काम करने वाली इकाइयों में से एक है. | रीति अग्रवाल | दिप्रिंट टीम

नसीम ने कहा, ‘सैन्य और सुरक्षा बलों से मिलने वाले ऑर्डर की वजह से पहले स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के आसपास तिरंगे की कुछ मांग बढ़ जाती थी. लेकिन इस बार राष्ट्रीय ध्वज की मांग पहले से काफी ज्यादा है. हम साल में 500 से 600 झंडे बनाते थे, मगर इस साल हम पहले ही 1.5 लाख झंडे बना चुके हैं.’

अन्य महिलाएं भी इस मौके का फायदा उठा रही हैं.

एक यूनिट में काम करने वाली 28 साल की रेशमा ने कहा, ‘हर घर तिरंगा अभियान की घोषणा के बाद से मैं एक दिन में लगभग 20 झंडे बना रही हूं. ज्यादा कमाई करने के लिए मैं ओवरटाइम काम करती हूं.’ उन्होंने बताया कि उनके पड़ोस की कई अन्य महिलाएं भी अब इस काम से जुड़ गई हैं.

32 साल की शुक्रिया कहती हैं, ‘हमने यूनिटों से संपर्क किया और कच्चे माल को घर ले आए. मैं झंडों पर कढ़ाई के साथ अशोक चक्र की सिलाई और बुनाई भी करती हूं. किसी भी चीज़ से ज्यादा, यह हमारे लिए गर्व का पल है कि हमें किसी तरह से देश की सेवा करने का अवसर मिला है.’ शुक्रिया को राष्ट्रीय प्रतीकों पर हाथ से कढ़ाई करने की कला में महारत हासिल है.

इन भीड़भाड़ वाली गलियों में आजादी के उत्सव की भावना को देखना आसान है. घुटने टेक कर अपने काम में जुटी ये महिलाएं बेहतरीन झंडे बनाने के लिए एक-दूसरे के साथ खुशी-खुशी तालमेल बिठाती हैं. और सबसे बड़ी बात, वे सब स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की सहायता के बिना ऐसा कर रही हैं.

मलेरकोटला में असिस्टेंट कमिश्नर गुरमीत कुमार ने कहा, ‘हमने राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए कुछ स्वयं सहायता समूहों से संपर्क किया था. लेकिन उनमें से अधिकांश एक बार इस्तेमाल में आने वाली प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद कपड़े के थैलों के ऑर्डर में व्यस्त थे, इसलिए व्यक्तिगत तौर पर काम करने की इच्छुक महिलाओं को झंडा बनाने का काम दिया गया.’


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फायदे से ज्यादा देशभक्ति

कारोबारियों का कहना है कि झंडे की मांग बढ़ने से कच्चे माल की कीमतों में भी तेजी आई है. स्थानीय कपड़ा व्यापारी टिंकल गोयल ने बताया, ‘झंडे टेरीकोट, साटन और खादी के कपड़े से बनते हैं. हाल ही में कई कारकों की वजह से इन कपड़ों की कीमतों में तेजी आई है.’

लेकिन कई लोगों के लिए, देशभक्ति लाभ से ऊपर है.

नसीम ने कहा, ‘इस बार यह मुनाफे के लिए नहीं है. कच्चे माल के महंगे होने के कारण हमारे लाभ मार्जिन में कमी आई है, लेकिन हम अपने देश के लिए योगदान देकर खुश हैं. जब स्थानीय लोग अपने घरों के लिए झंडा मांगते हैं तो मैं उनसे एक पैसा नहीं लेता हूं.’

Shabina, 20, working at NN embroidery, one of the units that deals in flags and badges. | Chitvan Vinayak | ThePrint
झंडे पर काम करती हुई 20 साल की शबीना | रीति अग्रवाल | दिप्रिंट

यह मांग मलेरकोटला की खचाखच भरी गलियों से भी आगे तक फैली हुई है. एक अन्य ध्वज और बैज निर्माण बनाने वाली यूनिट के मालिक ताहिर राणा ने कहा, ‘हमारे बनाए गए राष्ट्रीय झंडे जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, गोवा, असम और उत्तर प्रदेश में जा रहे है. मैं अब तक एक लाख से ज्यादा झंडे डिलीवर कर चुका हूं.’

राणा ने कहा कि उनकी यूनिट गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पोर्टल के जरिए झंडों का कारोबार करती है. लेकिन नसीम जैसे अन्य लोगों के लिए ऑर्डर एक ठेकेदार के जरिए दिया जाता है जो सार्वजनिक और निजी संगठनों के साथ कोआर्डिनेट करता है.

झंडे कई आकारों में बनाए जाते हैं- घरों के लिए 2×3 वर्ग फुट, सरकारी कार्यालयों के लिए 6×4 वर्ग फुट और बड़े खंभों पर फहराने के लिए 8×12 वर्ग फुट. इन झंडों की कीमतें पेंटिंग और कढ़ाई के आधार पर अलग-अलग हैं. एक कढ़ाई वाले झंडे (6×4 फीट) की कीमत 290 रुपये है, एक स्क्रीन-पेंट झंडे की कीमत 190 रुपये है.

अधिकांश दर्जी ज्यादातर झंडों पर अशोक चक्र की कढ़ाई करने के लिए चीनी सिलाई मशीनों का इस्तेमाल करते हैं. शायद ही उन्हें इस बात की जानकारी हो.

हाथ से की जाने पर बारीक सिंगल-थ्रेड कढ़ाई की लागत ज्यादा होती है.

शुक्रिया कहती हैं, ‘कोई भी किफायती विकल्प उपलब्ध होने पर कढ़ाई के लिए ज्यादा पैसा देना पसंद नहीं करता है. हाथ से बनी कढ़ाई की घटती मांग के चलते कारीगरों ने भी हुनर को छोड़ना शुरू कर दिया है.’

महिलाओं के लिए इसका क्या अर्थ है

मलेरकोटला की महिलाएं इस पेशे में अपनी पहचान और स्वायत्तता तलाश रही हैं. बीच में पढ़ाई छोड़ने वाली महिलाओं के लिए यह एक सच है. 19 साल की सुनैना ने आठवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया था. वह बड़े गर्व से बताती है, ‘मैं भी झंडे सिलती हूं.’

रेशमा ने कहा, ‘पेशेवर रूप से सिलाई करने से पहले मैंने पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है.’

लेकिन स्क्रिप्ट अब धीरे-धीरे बदल रही है. सुधरी हुई आर्थिक स्थिति और काम करने की आजादी ने औरतों की सोच को बदला है. अब वो अपनी बेटियों को पढ़ाई करने की इजाजत दे रही है. डिस्पैच करने के लिए झंडे पैक कर रही रानी ने कहा, ‘पहले हममें से कितनी महिलाएं आठवीं क्लास के बाद स्कूल छोड़ देती थीं. लेकिन अब हम चाहते हैं कि हमारी बेटियां बारहवीं या कम से कम दसवीं तक की अपनी पढ़ाई पूरी कर लें’

Nahida Noor, 42, says she feels proud that her hand-made flags will be hoisted across the nation and Har Ghar Tiranga campaign have helped them earn profits | Chitvan Vinayak | ThePrint
42 साल की नाहिदा नूर कहती हैं कि उन्हें गर्व है कि उनके हाथ से बने झंडे पूरे देश में फहराए जाएंगे और हर घर तिरंगा अभियान ने उन्हें मुनाफा कमाने में मदद की है | रीति अग्रवाल | दिप्रिंट

लेकिन कुछ मांएं काम से जुड़ी आर्थिक सुरक्षा को तरजीह देती है. नाहिदा नूर ने कहा ‘मेरी बेटी ने स्कूल पूरा कर लिया है और अब घर के कामों में मेरी मदद करती है. हमे पसंद नहीं कि वह घर से बाहर जाकर काम करे.’ उनकी बेटी पास ही बैठकर हाल ही में सिले झंडों को पूरा करने में नूर की मदद करने में लगी थी.

राज्य अल्पसंख्यक आयोग, पंजाब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ मोहम्मद रफी बताते हैं, ‘ज्यादातर महिलाएं, विशेष रूप से मलेरकोटला में मुसलमान आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों के कारण उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंच पाते हैं. लेकिन अब समय बदल रहा है.’

रफी ने कहा, ‘अब मलेरकोटला में लगभग पांच कॉलेज हैं. मुस्लिम महिलाओं को अब अपनी शिक्षा पूरी करने का अवसर मिल रहा है.’

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), मलेरकोटला के जिला अध्यक्ष जगत कथूरिया ने कहा कि क्षेत्र के मुस्लिम कारीगर अपने कढ़ाई कौशल के लिए जाने जाते हैं.

Flags in preparation at NN embroidery, one of the units that deals in flags and badges. | Chitvan Vinayak | ThePrint
तैयार किए गए झंडे. रीती अग्रवाल. दिप्रिंट टीम

कथूरिया ने कहते हैं, ‘हमें खुशी है कि हर घर तिरंगा अभियान ने रोजगार पैदा करने में मदद की है और कारीगर राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए हिंदू-मुस्लिम सोच सो आगे बढ़ रहे हैं.’

आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक डॉ मोहम्मद जमील उर रहमान ने भी हर घर तिरंगा अभियान को समर्थन दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ऐसे कुशल श्रमिकों को स्वयं सहायता समूहों में शामिल करने और आगे की मौद्रिक सहायता प्रदान करने की योजना बना रही है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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