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Friday, 1 November, 2024
होमदेशपत्नी को शेल्टर से रिहा कराने की याचिका पर मुश्किल में पड़ा शख्स, HC ने दिए 'धर्मान्तरण' के जांच के आदेश

पत्नी को शेल्टर से रिहा कराने की याचिका पर मुश्किल में पड़ा शख्स, HC ने दिए ‘धर्मान्तरण’ के जांच के आदेश

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट जिस मुख्य प्रश्न का जवाब जानना चाहता है वह यह है कि क्या आर्य समाज ट्रस्ट किसी मुस्लिम लड़की को हिंदू धर्म में परिवर्तित कर सकता है; और यदि हां, तो किस कानून के तहत. इसने याचिकाकर्ता को पुलिस जांच की चेतावनी भी दी.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दिसंबर 2021 में एक व्यक्ति द्वारा अपनी ‘पत्नी’ को नारी कल्याण गृह के संरक्षण से मुक्त करवाने के लिए दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हेबियस कॉर्पस पेटिशन) अब आर्य समाज परंपरा के तहत इस लड़की के धर्मांतरण और इस युगल की शादी की तथ्यात्मक जांच में परिवर्तित हो गई है.

यह लड़की अपने कथित धर्म परिवर्तन और उसके बाद हुई शादी के समय नाबालिग थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के शामिल हैं, ने अब पहले यह पता लगाने का फैसला किया है कि क्या आर्य समाज ट्रस्ट किसी मुस्लिम लड़की को हिंदू धर्म में धर्मांतरित कर सकता है. और जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है, तब तक के लिए अदालत ने लगभग दो साल से ग्वालियर के नारी निकेतन में बंद लड़की को रिहा करवाने के लिए इस शख्श द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई नहीं करने का फैसला किया है.

अदालत के 16 जून के आदेश – जो मामले की सुनवाई की एक वीडियो क्लिप के वायरल होने के बाद ही लोगों के संज्ञान में आया – में कानून द्वारा पड़ताल किये जाने के लिए 12 प्रश्नों को तैयार किया गया है. वीडियो में जस्टिस आर्य को (लड़की के) धर्मांतरण पर सवाल उठाते हुए और याचिकाकर्ता को पुलिस जांच की चेतावनी देते हुए सुना जा सकता है.

अदालत ने जिस मूल प्रश्न का उत्तर जानने की कोशिश की है वो यह कि क्या एक ‘स्वयंभू’ निजी संस्था, आर्य समाज मंदिर, किसी व्यक्ति के हिंदू धर्म में धर्मांतरण का अनुमोदन कर सकता है, और यदि हां, तो किस कानून के तहत.

अदालत का यह आदेश तब आया जब वह एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रहा था. याचिकाकर्ता के वकील सुरेश अग्रवाल के अनुसार, इस जोड़े ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित आर्य समाज विवाह मंदिर ट्रस्ट में शादी की थी. लड़की – एक मुस्लिम जो हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गयी थी और उस समय एक नाबालिग थी – द्वारा मंदिर के अध्यक्ष की उपस्थिति में एक हलफनामे पर हस्ताक्षर कर नए धर्म को अपनाने के बाद ही विवाह संपन्न कराया गया था.

इसके बाद, इस जोड़े द्वारा पुलिस सुरक्षा के लिए दायर की गयी एक याचिका पर हाई कोर्ट ने उन्हें क्षेत्र के उप-मंडल मजिस्ट्रेट (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट) के सामने पेश होने का आदेश दिया. फिर मजिस्ट्रेट ने यह देखते हुए कि लड़की बालिग होने की उम्र से तीन महीने कम थी, उसे नारी निकेतन को सौंपने का आदेश दिया और युवक के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज करने के आदेश दे दिए.

जमानत पर रिहा होने के बाद इस युवक ने हाई कोर्ट में एक और याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि उसकी ‘पत्नी’ अब बालिग हो गयी है और इसलिए उसे नारी निकेतन से रिहा कर दिया जाना चाहिए.

हाई कोर्ट ने 2 दिसंबर, 2021 को इस मामले में नोटिस जारी किया, लेकिन उसके बाद की सारी कार्यवाही, लड़की के धर्मांतरण और इस जोड़े के विवाह की वैधता पर केंद्रित रही है. अदालत ने दो मौकों पर – जिनमें से सबसे हालिया मौका इस साल 14 मई को आया था – याचिकाकर्ता द्वारा अपने मामले को वापस लेने की अनुमति देने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.


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क्या कोई ट्रस्ट बिना किसी सत्यापन के धर्मांतरण के हलफनामे को स्वीकार कर सकता है?

इस साल 10 जनवरी को जब अदालत को लड़की के धर्म परिवर्तन के बारे में पता चला तो उसने आर्य समाज विवाह मंदिर ट्रस्ट को भी इस मामले में एक पक्ष बना दिया.

इसके एक सप्ताह बाद, मध्य प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता एम.पी.एस. रघुवंशी द्वारा यह कहे जाने के बाद कि धर्मांतरण का मामला एक ‘गंभीर मामला’ है, अदालत ने ट्रस्ट के पुजारी को तलब किया.

फिर 13 अप्रैल को जब ट्रस्ट के वकील यह नहीं बता सके कि इस लड़की ने किस कानून के तहत धर्म परिवर्तन किया और फिर याचिकाकर्ता से शादी कर ली, तो अदालत ने ट्रस्ट के महासचिव को भी तलब कर लिया.

फिर 16 जून को अदालत ने रघुवंशी द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश, जिसमें आर्य समाज के मंदिरों द्वारा किए गए विवाहों की उच्च-स्तरीय जांच का निर्देश दिया गया था, की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करवाए जाने के बाद प्रश्नों को तैयार किया.

इस बारे में दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, रघुवंशी ने कहा कि उनके राज्य में एक धर्मांतरण कानून है, जिसका इस युगल ने पालन नहीं किया. उन्होंने आगे यह भी दावा किया कि आर्य समाज परम्परा के तहत केवल दो आर्य समाजी सदस्य ही वहां शादी कर सकते हैं.

अदालत द्वारा स्वयं विचार करने हेतु तैयार किए गए प्रश्नों में से एक यह भी है कि क्या कोई ट्रस्ट बिना किसी सत्यापन के धर्मांतरण के बारे में दिए गए किसी के हलफनामे को स्वीकार कर सकता है और फिर विवाह प्रमाण पत्र जारी कर सकता है?

हालांकि, अदालत ने 27 जुलाई को भी मामले की सुनवाई की थी, लेकिन फिर इसे 1 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया.

(इस खबर को अंग्रेजा में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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