नई दिल्ली: एक विशाल नाव (बार्ज) मुंबई बंदरगाह में तेजी से आगे बढ़ रही थी. इसमें कुछ ऐसा माल था जिसे आप साधारण तो नहीं कह सकते- एक पीला गुलाबी पुल डेक जिसे चार अलग-अलग देशों में बनाया गया, जिसका वजन लगभग 300 हाथियों के बराबर है और इसे उठाने के लिए कई विशाल क्रेन की जरूरत पड़ेगी.
बुधवार की दोपहर इस बड़ी सी कार्गो नाव से सेवरी-न्हावा शेवा मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक (एमटीएचएल) के पियर 184 और 185 के बीच इस 2,300 मीट्रिक टन डेक को नीचे उतारा गया. यह कोई शोपीस प्रोजेक्ट नहीं है या फिर सिर्फ मुंबई के लिए ही खास हो, हम ऐसा भी नहीं कह सकते है. दरअसल अपनी खासियतों के चलते यह लिंक भारत की इंजीनियरिंग और निर्माण कौशल के लिए भी एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है.
भारत के सबसे लंबे समुद्री लिंक के रूप में जाना जाने वाला 22 किलोमीटर लंबा एमटीएचएल प्रायद्वीपीय दक्षिण मुंबई में सेवरी को मुख्य भूमि नवी मुंबई में न्हावा शेवा से जोड़ेगा. इससे न सिर्फ शहर के दो हिस्सों के बीच आवाजाही तेज हो जाएगी बल्कि मुख्य भूमि की कमर्शियल और आवासीय गतिविधियां भी बढ़ जाएंगी. निर्माणाधीन लिंक नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए भी एक महत्वपूर्ण कनेक्टर साबित होगा.
इस लिंक को तैयार करने में 17,843 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इस पर काफी तेजी से काम किया जा रहा है और संभावना है कि यह अपनी दिसंबर 2023 की समय सीमा तक पूरा कर लिया जाएगा. परियोजना में शामिल इंजीनियरों और अधिकारियों के मुताबिक, इस पूरे प्रोजेक्ट में बहुत सी तकनीक ऐसी हैं जो भारत के निर्माण क्षेत्र में पहली बार इस्तेमाल में लाई गई हैं.
अपने किसी भी प्रोजेक्ट के लिए भारत ने अभी तक ऑर्थोट्रॉपिक स्टील डेक (ओएसडी) का इस्तेमाल नहीं किया था. ऐसा पहली बार हुआ है. ये विशेष स्टील डेक दो पियरों के बीच अच्छी-खासी दूरी को बनाए रखते हैं, जो मानक से तीन गुना अधिक है और बड़े जहाजों के लिए नेविगेशनल चैनल वाले हिस्सों के लिए काफी फायदेमंद रहेंगे.
परियोजना पर काम कर रहे इंजीनियरों ने कहा कि इस सप्ताह अपने निर्माणाधीन लिंक तक पहुंचने वाला गुलाबी स्लैब 180 मीटर लंबा था. यह अभी तक इस्तेमाल किए गए सबसे लंबा ओएसडी में से है. इसे सही और सटीक ढंग से स्थापित करना इसे और भी महत्वपूर्ण बना देता है.
परियोजना की प्रभारी राज्य सरकार एजेंसी ‘मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी’ (MMRDA)के कमिश्नर एसवीआर श्रीनिवास ने दिप्रिंट को बताया, ‘लगभग 85 से 90 फीसदी सिविल वर्क (स्ट्रक्चरल वर्क) पूरा हो चुका है और हम दिसंबर 2023 की समय सीमा पर इसे पूरा करने के लिए ट्रैक पर हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस परियोजना में इस्तेमाल की जाने वाली कई इंजीनियरिंग तकनीकों को भारत में पहली बार इस्तेमाल में लाया गया है. हर चीज के लिए हमें बहुत सावधानी बरतनी पड़ रही है. एक छोटी सी भूल भी भारी पड़ सकती है और परियोजना को पीछे की ओर धकेल सकती है.’
पहली बार लगभग दो दशक पहले मुंबई बंदरगाह के बीच एक लिंक के रूप में एमटीएचएल की कल्पना की गई थी. यह लिंक हांगकांग में विक्टोरिया हार्बर के पार बने कॉव्लून की तर्ज पर बनाया जा रहा है, जिसका मकसद द्वीप शहर के साथ कनेक्टिविटी में सुधार करके मुख्य भूमि पर विकास को गति को तेज करना था.
2005 और 2011 के बीच इस परियोजना के लिए बोली लगाने के तीन प्रयास हुए, लेकिन सभी किसी न किसी कारण से सफल नहीं हो पाए थे.
फिर 2016 में महाराष्ट्र सरकार को जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) से परियोजना के लिए फंड मिला और 2017 में लिंक के लिए नए अनुबंध प्रदान किए गए. 2018 में इसका निर्माण शुरू हो गया था.
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एक लंबी दूरी को कवर करते ओएसडी
इन ओएसडी को पहले जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और म्यांमार में 12-12 मीटर के पैनल में तैयार किया गया और उसके बाद इन्हें नवी मुंबई में उरण में करंजा बंदरगाह पर असेंबल करने के लिए लाया गया.
इन डेक की लंबाई काफी ज्यादा है और इनकी यही खासियत इन्हें बाकी सबसे अलग करती है. डेक की लंबाई बड़े जहाजों को बिना किसी कठिनाई के नेविगेशन चैनलों से गुजरने देगी, इसलिए ये और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
MTHL पर आमतौर पर स्पेन की लंबाई 60 मीटर है. लेकिन OSDs के इस्तेमाल के साथ MMRDA ने 80 से 180 मीटर तक के स्पैन की योजना बनाई है.
हर कुछ दिनों में OSD को ले जाने वाला एक बड़ी सी नाव कारंजा पोर्ट से रवाना होती है, जिसे एक टग बोट खींचते हुए आगे बढ़ाती है.
परियोजना पर सलाह देने वाले एक समुद्री रसद विशेषज्ञ ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम बार्ज यानी विशाल नाव को सिर्फ गहराई वाले पानी में चला सकते हैं, इसलिए हमें ज्वार के समय को लेकर बहुत सावधान रहना होता है. जब भी संभव होता है हम ज्वार का फायदा उठाते हैं और बहुत धीमी गति से आगे बढ़ते हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘यहां तक कि अगर इंजीनियर अनुकूल ज्वार के साथ आगे बढ़ता है तो भी नाव को साइट के स्थान तक पहुंचने में लगभग सात या आठ घंटे लग जाते हैं.’
बार्ज की लंबाई 100x 36 मीटर है और इसका वजन 1,300 मीट्रिक टन है. श्रीनिवास ने कहा कि तीन ऐसे बार्ज हैं जो स्टील डेक को एक साथ ले जा रहे हैं.
बुधवार का लिंक के साथ जोड़ा गया ओएसडी 36 वां था, जो हार्बर लिंक की 22 किमी लंबाई के लगभग 4 किमी को कवर करते हैं. बाकी दूरी के लिए गर्डर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस परियोजना में कुल 70 ओएसडी इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
श्रीनिवास ने कहा, ‘उम्मीद है कि हम अगस्त तक सभी ओएसडी लॉन्च कर देंगे. बची हुई 18 किमी की दूरी पर भी हमने 90 प्रतिशत गर्डरों को लॉन्च करने के काम पूरा कर लिया है.’
गर्डरों और ओएसडी के लॉन्च होने का काम पूरा हो जाने के बाद ठेकेदार लिंक पर क्रैश बैरियर स्थापित करेंगे, संवेदनशील भाभा परमाणु अनुसंधान क्षेत्र के साथ मिलकर समुद्री लिंक के हिस्से में विजन बैरियर, कुछ जगहों पर नॉइज बैरियर और फिर सड़क के ऊपर डामर बिछाने का काम किया जाएगा. और एमटीएचएल के सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से तैयार होने से पहले इस पर टोलिंग सिस्टम लगाया जाएगा.
क्रैश बैरियर मेटल की फेंसिंग होती हैं जो गंभीर दुर्घटनाओं के जोखिम को कम करने के लिए सड़कों के किनारे लगाई जाती हैं. विजन बैरियर भी सड़क के दोनों ओर लगाए जाते है ताकि आस-पास के दृश्य चालक को विचलित न करें या ड्राइविंग के समय उन्हें दिक्कत न आए .
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बुधवार को ओएसडी के लोकार्पण स्थल का दौरा किया था. उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि टोल प्रणाली लंबी कतारों को रोकने के लिए बिना किसी बूम बैरियर के ओपन रोड टोल (ओआरटी) होने की संभावना है.
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प्रोजेक्ट में पहली बार कई नईं तकनीकें
देश के सबसे लंबे समुद्री लिंक ने कॉम्प्लेक्स-टू-लॉन्च ओएसडी के अलावा और भी नई तरह की नई पहल की हैं.
सालों से पर्यावरणविद् एमटीएचएल के प्रस्ताव से असहमत थे. उन्हें डर था कि निर्माण गतिविधियों का शोर प्रवासी राजहंसों को यहां से दूर भगा देगा, जो दिसंबर से मई तक सेवरी मडफ्लैट्स में वार्षिक रूप से दिखाई देते हैं.
श्रीनिवास ने दिप्रिंट को बताया, इसके लिए एमटीएचएल टीम ने पाइल फाउंडेशन के लिए ‘रिवर्स सर्कुलेशन ड्रिलिंग’ (आरसीडी) नामक एक तकनीक को लगाया था. भारत में किसी भी परियोजना के लिए इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल किया गया है.
श्रीनिवास ने कहा, ‘ पाइल फाउंडेशन रखना किसी भी परियोजना में सबसे अधिक समय लेने वाली गतिविधि है. आम तौर पर हम पाइलिंग मशीनों के साथ वर्टिकल ड्रिलिंग का सहारा लेते हैं जो जबरदस्त शोर पैदा करता है. चार साल तक लगातार इस तरह के बढ़े हुए शोर से राजहंसों के आवास अस्त-व्यस्त हो जाते, इसलिए हमने आरसीडी का इस्तेमाल किया जो निर्माण के शोर को कम करता है.’
उन्होंने कहा, ‘निर्माण गतिविधि के बावजूद साल-दर-साल वापस राजहंस वापस आ रहे हैं. आरसीडी इसकी एक वजह रहा है.’
MMRDA दक्षिण कोरिया से विशेष उच्च-नियंत्रण क्रैश बैरियर का उपयोग करने की भी योजना बना रहा है. परियोजना पर काम करने वाले एक इंजीनियर ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘नियमित क्रैश बैरियर सिर्फ दुर्घटना का रोकते हैं. लेकिन चूंकि यह समुद्र है, इसलिए हम किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए हर सावधानी बरतना चाहते थे. हाई कंटेनमेंट क्रैश बैरियर कार को वापस सड़क पर धकेल देंगे.’
इंजीनियर ने कहा, यह भी भारतीय सड़कों के लिए एक नया प्रयोग है.
(अनुवाद : संघप्रिया मौर्या | संपादन : ऋषभ राज)
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