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Saturday, 5 October, 2024
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खेमका vs वर्मा : हरियाणा के दो अफसरों की लड़ाई में FIR, ट्वीट्स के बाद भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल

आईएएस अधिकारी संजीव वर्मा ने अशोक खेमका द्वारा उनके खिलाग भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करवाने के बाद इस बारे में सीबीआई जांच की मांग की है. यह काउंटर एफआईआर पिछले साल दर्ज की गई थी.

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चंडीगढ़ : हरियाणा पुलिस द्वारा रोहतक के डिवीजन कमिश्नर संजीव वर्मा के खिलाफ दर्ज एक जवाबी प्रथिमिकी वाले केस में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट-पीसीए) को लागू किये जाने के बाद कथित भ्रष्टाचार के मामले को लेकर दो आईएएस स्तर के अधिकारियों के बीच चल रही खींचतान में एक नया अध्याय लिखा गया है.

वर्मा ने मंगलवार को हिंदी में ट्वीट किया था – ‘बोये पेड़ बाबुल का, तो आम कहां से खाए’. यह प्रसाशनिक अधिकारी भक्ति आंदोलन के कवि कबीर के एक दोहे को उद्धृत कर रहे थे, जिसका मोटे तौर पर अर्थ कुछ इस प्रकार है: भविष्य में मिलने वाले परिणाम निश्चित रूप से वर्तमान में किये गए कार्यों से ही आकार लेते हैं.

गूढ़ मायने रखने वाला वर्मा का यह ट्वीट 1991 बैच के एक और आईएएस अधिकारी अशोक खेमका द्वारा हरियाणा अभिलेखागार विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में उनका ट्रांसफर किये जाने को लेकर ट्विटर पर किये गए एक पोस्ट के एक दिन बाद आया था.

इन दोनों के बीच कड़वाहट के दौर की शुरुआत तब हुई थी, जब वर्मा – जिन्हें साल 2004 में राज्य सिविल सेवा अधिकारी से आईएएस श्रेणी में पदोन्नत किया गया था- ने हरियाणा स्टेट वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन (एचएसडब्ल्यूसी) के प्रबंध निदेशक की अपनी हैसियत से पिछले साल अप्रैल में खेमका के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था.

गुरुवार को दिप्रिंट द्वारा उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश किये जाने पर वर्मा ने कहा, ‘बुधवार को, मुझे मीडिया के लोगों से इस आशय के फोन आने लगे कि पुलिस ने मेरे खिलाफ दर्ज प्राथमिकी संख्या 171 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम को भी जोड़ा है. पुलिस दबाव में नजर आ रही है. अगर सच सामने लाना है तो एफआईआर नंबर 170 और 171 दोनों को सीबीआई को सौंप दिया जाना चाहिए.’


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कैसे शुरू हुई यह खींचतान

वर्तमान में चल रही तकरार उस एचएसडब्ल्यूसी में हुई ‘अवैध भर्ती’ से संबंधित है, जहां वर्मा अप्रैल 2022 में प्रबंध निदेशक (एमडी) के रूप में शामिल हुए थे. 22 अप्रैल 2022 को, उन्होंने एक दशक से भी अधिक समय पहले अशोक खेमका के प्रबंध निदेशक के पद पर रहते हुए एचएसडब्ल्यूसी में की गई नियुक्तियों में हुई कथित अनियमितताओं के संबंध में एक आपराधिक मामला दर्ज करने की सिफारिश की थी.

वर्मा ने 2010 में दो प्रबंधक ग्रेड-1 के अधिकारियों, प्रदीप कुमार और सुरिंदर सिंह, की भर्ती के मामले में खेमका और तीन अन्य एचएसडब्ल्यूसी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए पंचकुला के सेक्टर 5 पुलिस स्टेशन को एक औपचारिक शिकायत भेजी थी. मामला पुलिस को सौंपे जाने से पहले ही वर्मा ने 20 अप्रैल 2022 को कुमार और सिंह को बर्खास्त कर दिया था.

उसके छह दिन बाद खेमका हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज के साथ पंचकूला के पुलिस उपायुक्त मोहित ढांडा के कार्यालय पहुंचे. बाद में इन तीनों ने पुलिस आयुक्त हनीफ कुरैशी से करीब आधे घंटे तक मुलाकात की.

इस बैठक से बाहर आने के बाद विज ने मीडिया को बताया था कि उन्होंने पुलिस अधिकारियों से खेमका की शिकायत पर वर्मा और रविंदर कुमार के खिलाफ प्राथमिकी (संख्या 171) दर्ज करने को कहा है.

पंचकुला निवासी रविंदर इस मामले में शामिल वह शिकायतकर्ता हैं जिनकी शिकायत के आधार पर वर्मा ने साल 2009 से 2010 तक एचएसडब्ल्यूसी के प्रबंध निदेशक के रूप में काम करने वाले खेमका के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था.

खेमका ने अपनी शिकायत में वर्मा और रविंदर पर उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया था. इस शिकायत में कहा गया है कि वर्मा ने रविंदर के साथ मिलकर और एचएसडब्ल्यूसी के एमडी के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करते हुए ‘बदले की भावना से और भ्रष्ट मंशा के साथ’ झूठी शिकायत दर्ज कराने की साजिश रची.

हालांकि, वर्मा ने इन आरोपों का खंडन किया था.

इस बीच, एचएसडब्ल्यूसी में दो अधिकारियों की कथित अवैध नियुक्ति के खिलाफ वर्मा द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत को पिछले साल 26 अप्रैल को प्राथमिकी (संख्या 170) में बदल दिया गया था. इसमें पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पीसीए की प्रासंगिक धाराओं को लागू किया था.

लेकिन उसी दिन पुलिस ने खेमका की शिकायत पर रिकॉर्डस के साथ कथित छेड़छाड़ के मामले में वर्मा और रविंदर के खिलाफ जवाबी प्राथमिकी भी दर्ज कर ली थी.

फिर जुलाई 2022 में, विज ने यह राय दी थी कि पहले से ली गयी मंजूरी के बिना खेमका के खिलाफ पीसीए की धारा 17ए के तहत प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती थी. वर्मा के खिलाफ दर्ज काउंटर एफआईआर (जवाबी प्राथमिकी) के मामले में हरियाणा के गृहमंत्री ने यह सिफारिश की थी कि इस पर कार्रवाई करने के लिए सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज की गई थी.

पीसीए की धारा 17ए में कहा गया है कि पुलिस को किसी सेवारत या सेवानिवृत्त लोक सेवक के खिलाफ छान-बीन, पूछताछ या जांच शुरू करने से पहले सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी.

खेमका ने अपने खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां हरियाणा सरकार ने कहा था कि धारा 17ए के तहत (कार्रवाई के लिए) अभी तक कोई मंजूरी नहीं दी गई है. कोर्ट ने 29 नवंबर को इस मामले का निपटारा कर दिया था.

हालांकि, पिछले साल जून में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने रविंदर की उस याचिका को स्वीकार नहीं किया था, जिसमें उनके और वर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को ख़ारिज किये जाने की मांग की गई थी. पर, उसके अगले महीने, उच्च न्यायालय ने खेमका द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के मामले में पुलिस को उसकी अनुमति के बिना चालान दाखिल करने से रोकते हुए रविंदर को थोड़ी राहत दे दी थी. यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है.

(अनुवाद : रामलाल खन्ना | संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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