मुंबई: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस रविवार को हाल ही में बनकर तैयार हुए मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे के एक छोटे से हिस्से का टेस्ट ड्राइव लेने के लिए सीएम की गाड़ी में सवार हुए. फडणवीस ने स्टीयरिंग व्हील संभाली हुई थी जबकि उनके साथ वाली सीट पर सीएम शिंदे बैठे हुए थे.
लेकिन इससे सीएम शिंदे के माथे पर कोई शिकन नहीं आई, क्योंकि मूल रूप से इस प्रोजेक्ट की परिकल्पना इसी तरह की गई थी. मुंबई-नागपुर राजमार्ग, को ‘समृद्धि महामार्ग’ के रूप में भी जाना जाता है. इस प्रोजेक्ट का आइडिया फडणवीस का ही था.
उन्होंने पहली बार 2015 में इसकी घोषणा की थी, जब वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. शिंदे तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार के हिस्से के रूप में महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (एमएसआरडीसी)- प्रोजेक्ट पर काम करने वाली एजेंसी- के प्रभारी थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नागपुर से शिरडी तक 520 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस वे के पहले चरण का उद्घाटन करने वाले हैं. समृद्धि महामार्ग की कुल लंबाई 701 किमी है, जो इसे राज्य का सबसे लंबा राजमार्ग बनाता है.
इसे तैयार करने में 55,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. यह मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे के बाद महाराष्ट्र में दूसरा प्रमुख एक्सप्रेस वे होगा.
एमएसआरडीसी के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आर. मोपलवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि यह देश की सबसे बड़ी परियोजना है. निश्चित रूप से दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे इसके पूरा हो जाने के बाद लंबा होने वाला है. यह एक बड़ी खुशी की बात है.’
मोपलवार ने बताया कि बाकी बचा हुआ हिस्सा 15 जुलाई 2023 को खोल दिया जाएगा. उस हिस्से का लगभग 70-80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है.
फडणवीस ने पहले परियोजना के लिए 2019 की समय सीमा निर्धारित की थी. लेकिन भूमि अधिग्रहण में रुकावट और बाद में कोविड-19 महामारी के चलते इसमें देरी हुई.
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आइए प्रोजेक्ट और इससे होने वाले फायदों पर नजर डालते है-
‘गेम चेंजर’
आधिकारिक तौर पर इस हाइवे को ‘हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग’ के रूप में जाना जाता है. 701 किलोमीटर का मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे 14 जिलों, छह तालुकाओं और 392 गांवों से होकर गुजरेगा. इसमें 24 इंटरचेंज, 38 पुल होंगे, जिनकी लंबाई 30 मीटर से ज्यादा होगी. इसके अलावा 283 अन्य की लंबाई 30 मीटर से कम होगी.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने रविवार को संवाददाताओं से कहा ‘यह हाइवे एक ‘गेम-चेंजर’ साबित होगा. 18 घंटे का सफर अब घटकर छह से सात घंटे का रह जाएगा. मुंबई और नागपुर करीब आएंगे और व्यापार बढ़ेगा. इससे किसानों को भी मदद मिलेगी.’
यह एक ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट है, जिसका अर्थ है कि यह बिल्कुल नया है और मौजूदा सड़क को चौड़ा या आधुनिकीकरण करके नहीं बनाया गया है. इस एक्सप्रेस वे में आठ लेन तक की विस्तार क्षमता के साथ छह लेन होंगी.
इससे मराठवाड़ा और विदर्भ के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विकास के अवसरों और व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. महाराष्ट्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी मुंबई और शीतकालीन राजधानी नागपुर के बीच मौजूदा 16 घंटे का सफर भी कम होकर आधा रह जाएगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है.
मोपलवार ने कहा, ‘इस परियोजना की पूरी जिम्मेदारी का भार एमएसआरडीसी के ऊपर है. हमने कलेक्टरों के साथ काम किया, अपने संचारकों को नियुक्त किया और देखा कि लोग लोग भी इससे जुड़े हुए हैं. हमें डर था कि (अगर प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ) लोगों को नुकसान होगा. लेकिन हम वास्तव में सफल रहे.’
जब इसे पहली बार 2016-17 में शुरू किया गया था, तब इस परियोजना को किसानों के बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा था. हालांकि राज्य सरकार द्वारा किसानों को उनकी जमीन के लिए बाजार मूल्य से पांच गुना तक देने की भूमि अधिग्रहण नीति में संशोधन के बाद विरोध शांत हो गया था.
मोपलवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह अब तक की देश में सबसे बड़ी परियोजना है. यह नए अधिग्रहण कानून के तहत किया गया था. उदारता के साथ मुआवजा दिया गया है और उन्हें (किसानों) इसके लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा.’
राज्य सरकार ने कारों के लिए लगभग 1,200 रुपये का टोल प्रस्तावित किया है, जिसके बारे में मोपलवार ने दावा किया कि यह मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर वसूले जाने वाले शुल्क का 60 प्रतिशत है.
मोपलवार ने कहा, ‘यह टोल उतना ही होगा जितना आप मुंबई-नासिक के लिए भुगतान करते हैं. किसी अन्य समतुल्य एक्सप्रेस वे से पूरी तरह से तुलना करने के लिए कोई डेटा नहीं है. मुंबई-पुणे (एक्सप्रेसवे) 2.95 रुपये प्रति किमी से टोल लेता है, हम 1.72 रुपये प्रति किमी चार्ज कर रहे हैं.’
हालांकि प्रोजेक्ट को पूरा होने में काफी देरी हुई है. पहले भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध हुआ था. इसका विरोध करने वालों में शिवसेना भी शामिल थी, एक ऐसी पार्टी जिसने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में इस परियोजना का क्रेडिट लेने के लिए भाजपा के साथ लड़ाई लड़ी थी.
कोविड महामारी के कारण भी इसमें काफी देरी हुई. इन्हीं कुछ कारणों के चलते नागपुर और शिरडी के बीच 491 किलोमीटर का हिस्सा पूर्व में घोषित समय सीमा पर पूरा नहीं किया जा सका.
नागपुर और शेलू बाजार के बीच राजमार्ग के पहले चरण का उद्घाटन इस साल 2 मई को होना था, लेकिन एक्सप्रेसवे पर एक वन्यजीव ओवरपास के गिरने सहित निर्माण संबंधी दो दुर्घटनाओं ने समय सीमा को और पीछे धकेल दिया.
ठाकरे के अधीन वाली महाराष्ट्र सरकार ने तब उद्घाटन को जून तक के लिए टाल दिया था. हालांकि, शिवसेना में विभाजन और उसके बाद तत्कालीन महा विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार के पतन ने परियोजना को फिर एक बार पीछे कर दिया.
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राजनीतिक खींचतान
देवेंद्र फडणवीस नागपुर से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने पहली बार इस परियोजना की घोषणा तब की थी जब वह मुख्यमंत्री थे.
इस साल 5 अप्रैल को एक ट्वीट में फडणवीस ने कहा कि उनके दिमाग में 20 साल से यह परियोजना थी, लेकिन उन्हें यह देखकर खुशी हुई कि ‘जिन लोगों ने तब इसका विरोध किया था, वे अब इसका उद्घाटन करने के लिए इंतजार नहीं कर पा रहे हैं.’
वह उद्धव ठाकरे की शिवसेना का जिक्र कर रहे थे, जिसने परियोजना का विरोध करने के लिए किसानों की चिंताओं का हवाला दिया था.
26 दिसंबर 2016 को ठाकरे ने कहा कि वह ‘किसानों की भूमि का अधिग्रहण नहीं होने देंगे’. उस समय उनकी पार्टी महाराष्ट्र में फडणवीस की भाजपा की सहयोगी थी.
ठाकरे ने अपने सरकारी आवास मातोश्री के बाहर संवाददाताओं से कहा था, ‘इसके बजाय मैं सुपर-एक्सप्रेस वे परियोजना के अलाइनमेंट में बदलाव के लिए कहूंगा या एक विकल्प के साथ आने का प्रयास करूंगा. इस संबंध में मैं मुख्यमंत्री और संबंधित अधिकारियों से भी मिलूंगा.’
हालांकि 2017 में पार्टी ने अपने पिछले रुख पर पलटी मारी. लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन मंत्री एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनकी पार्टी ‘समृद्धि महामार्ग के खिलाफ कभी नहीं थी’. वह तो सिर्फ ‘किसान हितों की रक्षा करना चाहती थी.’
परियोजना के पहले चरण के उद्घाटन की तारीख एक बार फिर से पास आ रही है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना के एक नेता अनिल परब ने कहा, ‘यह क्रेडिट के बारे में नहीं है’ और ‘हर सरकार ने इसके लिए काम किया है’.
परब ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह भाजपा-शिवसेना सरकार के दौरान शुरू किया गया था. एमवीए ने इसे आगे बढ़ाया और अब बीजेपी सरकार के दौरान पूरा हो रहा है. इसलिए हर सरकार ने इसमें योगदान दिया है. इसका श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं बल्कि सरकारों को जाता है.’
उन्होंने स्वीकार किया कि यह एक ‘ऐतिहासिक परियोजना’ है, जो मुंबई और नागपुर के बीच यात्रा के समय को बचाएगी.
परब ने कहा, ‘लेकिन हमें लगता है कि केवल नागपुर का ही विकास नहीं होना चाहिए बल्कि साथ आने वाले अन्य गांवों और गलियारों का भी विकास होना चाहिए.’
(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः संघप्रिया मौर्य)
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