मुम्बई: एक पुलिस वाला एक आदमी को गले से पकड़े है, जो कोई आम आदमी लगता है, और मामूली सी नीली टी-शर्ट और पैंट पहने है. लेकिन, एक स्मार्टफोन की स्क्रीन से बाहर निकलता उसका चेहरा, किसी राक्षस का है जिसकी रूखी पपड़ीदार हरी त्वचा, घनी भौंहें, टेढ़े दांत, और बालों वाले हाथ हैं.
उसके चेहरे को फ्रेम करती हुई स्मार्टफोन स्क्रीन कहती है, ‘भदोतरी ट्रोल (किराए के ट्रोल)’ और पुलिस वाले को कहते दिखाया गया है, ‘यन्ना शिकवू चांगलाच ढाड़ा (हम उन्हें अच्छा सबक़ सिखाएंगे)’. ‘ट्रोल’ और पुलिस वाले ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, और व्हाट्सएप के लोगो से घिरे हैं.
ये मुखपृष्ठ है बिल्कुल नई मार्मिक के ताज़ा संस्करण का, वो साप्ताहिक जिसे शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे ने 1960 में शुरू किया था, जिसे पार्टी ने एक नए संपादक, नई सामग्री और कार्टून्स तथा राजनीति पर फोकस के साथ, एक नया रूप दिया है.
ये साप्ताहिक प्रकाशन इस साल 60 का हो गया, लेकिन इसे अपने डायमंड जुबली वर्ष का अधिकतर हिस्सा, स्टैण्ड्स से दूर गुज़ारना पड़ा, चूंकि लॉकडाउन, कोविड संकट और उसके बाद प्रेस की आर्थिक कठिनाइयों के कारण इसके प्रकाशन को स्थगित कर दिया गया था.
लेकिन, 17 नवंबर को हास्य-चित्र पर आधारित साप्ताहिक एक विशेष डायमंड जुबली संस्करण और नए लुक के साथ, स्टैण्ड्स पर वापस आ गया. उसके बाद से मार्मिक ने तीन और संस्करण छापे हैं और वो सब इसकी दीर्घ-कालिक नवीनीकरण योजना के अनुरूप हैं, जिसका उद्देश्य साप्ताहिक को और अधिक कार्टून-केंद्रित और पहले से ज़्यादा राजनीतिक बनाना है- लगभग उस सियासी लाइन की गहरी परछाई की तरह, जो सेना का दैनिक मुखपत्र सामना लेता है.
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नया मार्मिक
इसी साल, सामना और मार्मिक निकालने वाली, प्रकाशन कंपनी प्रबोधन प्रकाशन ने, बाल ठाकरे द्वारा स्थापित साप्ताहिक के लिए, वरिष्ठ पत्रकार मुकेश माचकर को हायर किया था.
सामना की तरह मार्मिक अधिकारिक रूप से, शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे के आधीन है, लेकिन माचकर मार्मिक के रोज़ाना के कामकाज और इसकी सामग्री के इंचार्ज हैं, वैसे ही, जैसे शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत सामना के हैं.
माचकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘तात्कालिक एजेंडा मार्मिक को ज़्यादा कार्टून-केंद्रित बनाना है, जिसमें पूरे महाराष्ट्र के कार्टूनिस्ट अपने काम की नुमाइश कर सकें’.
मार्मिक के हर संस्करण में बीच के पन्ने पर, बाल ठाकरे का एक कार्टून रहेगा, जो मार्मिक की टीम को राजनीतिक और सामाजिक रूप से, अभी भी प्रासंगिक लगता हो.
मसलन, मार्मिक के 5 दिसंबर के संस्करण में, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन (1950 के दशक में) का एक कार्टून फिर से छापा गया, जिसमें अलग अलग विचारों, विचारधाराओं और राजनीतिक धाराओं के नेता, महाराष्ट्र के गठन के लिए एकजुट हो गए थे.
बीच के पन्ने पर लिखा है, ‘उस संघर्ष और मार्मिक के, आज 60 वर्ष पूरे हो गए हैं और एक बार फिर महाराष्ट्र-विरोधी ताक़तें एक साथ आने लगीं हैं, जिनमें से कुछ मुम्बई को महाराष्ट्र से अलग करने का पुराना सपना नए सिरे से देख रही हैं. ऐसे समय में एक बार फिर अलग अलग विचारधाराओं के नेता महा विकास अघाड़ी के रूप में एक साथ आ गए हैं’.
माचकर ने कहा कि अगले साल से टीम मार्मिक, कार्टूनिस्ट्स के लिए ‘मार्मिक गप्पा’, और ‘मार्मिक मैफल’ जैसी वर्कशॉप्स और कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रही है.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम अपने संस्करणों के लिए गेस्ट कार्टूनिस्ट भी लाना चाहेंगे और हमारी भविष्य की योजनाओं में, कैरिकेचर पत्रकारिता पर एक कोर्स शुरू करने के लिए पत्रकारिता संस्थानों के साथ सहयोग भी शामिल है’.
मार्मिक, जो न्यूज़ स्टैण्ड्स की बिक्री के सहारे करता था, अब सक्रियता के साथ सदस्यता पर आधारित मॉडल पर जाना चाहता है, चूंकि कोविड ने लोगों के ख़बरें हासिल करने के तौर-तरीक़ों को ही बाधित कर दिया है. मुम्बई की उपनगरीय रेलवे चालू न होने के कारण, बहुत से न्यूज़पेपर स्टैण्ड्स, जो रेलवे स्टेशनों के आसपास होते थे, और बिक्री के लिए ट्रेन यात्रियों पर निर्भर रहा करते थे, बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
साप्ताहिक, जिसने अपनी क़ीमत तीन गुना बढ़ाकर 15 रुपए कर दी है, 600 रुपए में वार्षिक सदस्यता के विज्ञापन दे रहा है.
नए सिरे से राजनीति पर फोकस
माचकर ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि मार्मिक में हर किसी के लिए कुछ हो.
‘एक बार पत्रिका घर पर आ जाए, तो परिवार के हर सदस्य- सबसे बड़े से लोकर सबसे छोटे तक- को इसमें कुछ दिलचस्प मिलना चाहिए. लेकिन साथ ही, हमने मार्मिक में ज़्यादा राजनीतिक ख़बरें लेनी शुरू कर दी हैं, जो बीच में कम हो गईं थीं. मुखपृष्ठ 100 फीसद सियासी होगा, एक सियासी कार्टून जो सामना की लाइन पर होगा’.
5 दिसंबर के संस्करण के मुखपृष्ठ पर जो उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महा विकास अघाड़ी सरकार के एक साल पूरा करने के एक हफ्ते बाद आया, सीएम उद्धव ठाकरे को नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के डिप्टी सीएम अजित पवार और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट के साथ- जो कैबिनेट मंत्री भी हैं- खड़े हुए दिखाया गया.
तीनों लोग पूरे क्रिकेट गियर में थे, और नीली जर्सियां पहने थे, जिन पर महाराष्ट्र लिखा हुआ था. शार्षक में लिखा था, ‘365 नॉट आउट’.
इसी तरह, अगले हफ्ते मुखपृष्ठ पर उत्तर प्रदेश सीएम योगी आदित्यनाथ का कार्टून था, जो व्यग्रता से भगवा वस्त्र पहले चल रहे हैं. उनके हाथ में घास का एक बंडल है, और सर पर एक छोटा सा गांव रखा है, और लिखा है, ‘उत्तर प्रदेशातिल प्रस्तावित चित्रानगरी’. (उत्तर प्रदेश का प्रस्तावित फिल्म सिटी).
कवर पेज पर एक्टर उर्मिला मतोंडकर के एक लेख का विज्ञापन भी था जो इसी महीने शिवसेना में शामिल हुईं, जिसमें कहा गया था कि मुम्बई के साथ हिंदी सिनेमा के रिश्ते को तोड़ना मुमकिन नहीं है.
कवर पेज के डिज़ाइन में उत्तर प्रदेश सीएम के इसी महीने के मुम्बई दौरे पर कटाक्ष किया गया था, जिसमें उन्होंने अपने गृह राज्य में फिल्म सिटी विकसित करने के लिए निवेशकों और बॉलीवुड हस्तियों से मुलाक़ात की थी.
ट्रोल और पुलिसकर्मी वाला सबसे ताज़ा संस्करण, एमवीए सरकार के आलोचकों के लिए है, जो पुलिस की कथित ज़्यादतियों पर आवाज़ उठा रहे हैं. पिछले एक साल में, पुलिस ने सोशल मीडिया यूज़र्स के खिलाफ कई मुक़दमे दायर किए हैं, जिन्होंने एमवीए सरकार, सीएम ठाकरे, या उनके बेटे आदित्य के खिलाफ कथित तौर पर आक्रामक और अपमानजनक पोस्ट डाले थे.
समय के साथ चलते हुए, शिवसेना मार्मिक को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी ले गई है. ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने, जो एक प्रदेश कैबिनेट मंत्री हैं, 17 नवंबर को इसकी वेबसाइट लॉन्च की.
मार्मिक का सफर
1960 में बाल ठाकरे ने, जो उस समय राजनीतिक कार्टूनिस्ट थे, अपने भाई श्रीकांत ठाकरे के साथ मिलकर मार्मिक की शुरुआत की.
बाल ठाकरे ने कुछ पहले ही, फ्री प्रेस जर्नल और उसके मराठी दैनिक ‘नवशक्ति’ से इस्तीफा दिया था, जहां उनके पेपर के संपादकों से राजनीतिक मतभेद हो गए थे और वो अपना ख़ुद का राजनीतिक साप्ताहिक शुरू करना चाहते थे.
ठाकरे के व्यंगात्मक सियासी कार्टून्स के साथ मार्मिक उनकी शिवसेना का लॉन्चपैड बन गई. ठाकरे ने मार्मिक का इस्तेमाल, मुम्बई के कारोबार और वेतनभोगी वर्ग में ग़ैर-महाराष्ट्रियों की बढ़ती तादात के खिलाफ प्रचार में किया. वो हर हफ्ते, वरिष्ठ सरकारी और निजी क्षेत्रों की नौकरियों में लगे, ऐसे लोगों की सूची छापते थे. सूची का शीर्षक होता था ‘वाचा अणि ठांडा बासा (पढ़िए और शांत बैठ जाइए)’. महाराष्ट्र के मध्यम वर्ग में मार्मिक की लोकप्रियता बढ़ती चली गई.
ये ठाकरे के पिता केशव ठाकरे थे, जिन्हें आमतौर पर प्रबोधनकर कहा जाता था, जिन्होंने अपने बेटे को सुझाव दिया कि वो प्रवासी-विरोधी प्रचार के इस आवेग को एक संस्था का रूप दें. और इस तरह जून 1966 में शिवसेना की स्थापना हुई.
शिवाजी पार्क में पार्टी की पहली बैठक का विज्ञापन मार्मिक में छपा, जिसे एक ज़बर्दस्त रेस्पॉन्स मिला.
लेकिन, 1989 में सामना के लॉन्च के साथ शिव सैनिकों के लिए ‘आदेश’, और शिवसेना की राजनीतिक विचारधारा और एजेंडा को पेश करने के मंच के रूप में मार्मिक की भूमिका मंद पड़ गई
मार्मिक प्रकाशन के साथ क़रीब से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘सामना एक दैनिक था और संगठन के बढ़ने के साथ शिवसेना के एजेंडा को आगे बढ़ाने में ज़्यादा कारगर था. मार्मिक ख़ासकर तब और पीछे हो गई, जब 1990 के दशक की शुरुआत में संजय राउत ने सामना के कार्यकारी संपादक का कार्यभार संभाला. वो अपने संपादकियों में बाला साहेब के विचारों को, इस तरह फिर से पेश कर देते थे जैसे बाला साहेब ने उन्हें ख़ुद लिखा हो’.
उन्होंने आगे कहा, ‘उसके बाद के बहुत से सालों में, मार्मिक हालांकि राजनीतिक थी लेकिन एक परिवार-केंद्रित प्रकाशन ज़्यादा बन गई थी. लेकिन आगे चलकर ये एक ज़्यादा प्रभावशाली राजनीतिक साप्ताहिक बनेगी, जिसका केंद्रीय फोकस कार्टून्स होंगे, रूखे और व्यंगात्मक, जैसे बाला साहेब के होते थे’.
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