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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशधनबल, RSS की मदद और उसका समर्पित कैडर: UP में BJP की जीत पर उर्दू प्रेस ने क्या कहा

धनबल, RSS की मदद और उसका समर्पित कैडर: UP में BJP की जीत पर उर्दू प्रेस ने क्या कहा

दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि इस सप्ताह उर्दू मीडिया ने देश-दुनिया की विभिन्न घटनाओं को कैसे कवर किया और उनमें से कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.

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नई दिल्ली: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण की सरगर्मियां और गुरुवार को जारी नतीजे, उर्दू अखबारों की सुर्खियों में रहे. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में इसी हफ्ते चुनाव परिणाम जारी हुए हैं.

इसकी एक वजह यह थी कि जिन राज्यों में यह चुनाव हुए सिर्फ वहीं के लिए ये महत्वपूर्ण नहीं थे. इसका असर आने वाले राज्य सभा चुनाव और इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा. इस चुनाव को साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में मतदाताओं के रुझान के तौर पर भी देखा जा रहा था.

इस बीच रूस-यूक्रेन संकट की वजह से भारत में शिक्षा व्यवस्था की कथित लचर हालात पर भी लोगों का ध्यान गया, जिसकी वजह से कई छात्रों को बेहतर अवसर के लिए विदेशों का रुख करना पड़ता है.

दिप्रिंट, उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर जगह बनाने वाली खबरों और संपादकीय का सारांश लेकर आया है.


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विधानसभा चुनाव 2022

11 मार्च को प्रकाशित रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में दो खबरें हेडलाइन बनी हैं. पहला, ‘चार राज्यों में कमल खिला ’ और दूसरा, ‘पंजाब में झाड़ू चली ’. अखबार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार के उस बयान को भी छापा है जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस क्षेत्रीय दल में बदल गई है.

सियासत ने आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत के साथ ही राहुल गांधी की ओर से जनता के फैसले को स्वीकार करने को मुख्य खबर बनाया है. इंकलाब ने चुनाव नतीजों के साथ ही प्रधानमंत्री के उस बयान को पहले पन्ने की खबर बनाई है जिसमें उन्होंने इन नतीजों को 2024 का (संसदीय चुनाव) रास्ता साफ होना बताया था.

इंकलाब ने अपने संपादकीय में आम आदमी पार्टी की जीत को ‘असाधारण’ बताते हुए लिखा है कि कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह की वजह से पंजाब के लोगों ने पार्टी पर दोबारा विश्वास नहीं किया. अखबार ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश में महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की नाराजगी जैसे मुद्दे सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ थे लेकिन बीजेपी धनबल, जमीनी स्तर पर आरएसएस की मदद और समर्पित कैडर के बल पर इन सबसे पार पाने में कामयाब रही.

सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा है कि चुनाव पूर्व विश्लेषण में उत्तराखंड और गोवा में बीजेपी की सरकार जाने और पंजाब में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की बात कही जा रही थी, वह गलत साबित हो गई है. संपादकीय कहता है कि इन चुनाव परिणामों से आने वाले समय में बीजेपी मजबूत होगी. वहीं, विपक्ष के लिए ये नतीजे निराश करने के साथ ही यह संकेत देते हैं कि कांग्रेस खत्म होने वाली है.

उत्तर प्रदेश में आखिरी चरण का चुनाव खत्म होने के बाद, आठ मार्च को इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि जिन पांच राज्यों में चुनाव खत्म हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों का इंतजार बेसब्री से है. अखबार ने लिखा कि बीजेपी को भी चुनाव परिणाम को लेकर चिंता थी, क्योंकि इसका असर आने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर भी होगा. साथ ही, इससे पहले कई विधानसभा चुनावों के परिणाम बीजेपी के लिए सुखद नहीं रहे हैं. इनमें साल 2017 में मध्य प्रदेश और गोवा के चुनाव शामिल हैं. हालांकि, इन दोनों राज्यों में पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही है.

छह मार्च को सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार को बेरोजगारी और महंगाई के इर्द-गिर्द रखा. वहीं, सत्तारूढ़ पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लगातार सांप्रदायिक बयानबाजी से (विपक्षी पार्टियों के लिए) मुश्किलें खड़ी कर दी.

रोजनामा ने सात मार्च को प्रकाशित अपने संपादकीय में लिखा कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का बेसब्री का इंतजार सिर्फ इसलिए नहीं किया जा रहा था, क्योंकि इन राज्यों में इससे नई सरकार बनने का रास्ता साफ होगा या पुरानी सरकार बनी रहेगी, बल्कि इससे राज्य सभा की रूप-रेखा भी बदलेगी. अप्रैल में 70 राज्य सभा सीटों के लिए चुनाव होना है. इनमें से 19 सीटें इन राज्यों में पड़ते हैं. अखबार के मुताबिक चुनाव का बड़ा असर राष्ट्रपति चुनाव पर भी होगा.


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रूस-यूक्रेन के बीच जंग

रूस पर पश्चिमी देशों की ओर से पाबंदी लगाए जाने के बावजूद रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है. इंकलाब ने ‘यूक्रेन भी जीत सकता है ’ शीर्षक से तीखा संपादकीय लिखा है. 10 मार्च को लिखे गए इस संपादकीय में कहा गया है कि रूस के प्रति झुकाव रखने वाले यूक्रेन के लोगों को छोड़ दें, तो ज्यादातर यूक्रेन के निवासी अपनी सरकार के पक्ष में खड़े हैं, जबकि रूस में ऐसा नहीं है. वहां पर मीडिया पर कड़ी पाबंदियां हैं और किसी भी तरह के प्रदर्शनों पर रोक लगी हुई है, ताकि अंदरूनी मतभेद सामने न आ पाए.

अखबार पूछता है कि सुपर पावर होने के बावजूद रूस इतना डरा हुआ क्यों है. यही वजह है कि यूक्रेन जंग जीत सकता है. भले ही, जीत का स्वरूप अलग हो.

छह मार्च को प्रकाशित सियासत के पहले पन्ने पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की के बयान को छापा गया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि यूक्रेन के जवान मोर्चे पर डटे हुए हैं. इसके बावजूद कि नाटो की तरफ से 50 टन डीजल मिलने के अलावा कोई मदद नहीं की गई है. अखबार ने भारत सरकार का बयान भी छापा है, जिसमें कहा गया है कि खारकीव से सभी भारतीयों को निकाल लिया गया है.

रोज़नामा ने सात मार्च को, अपने पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत न सिर्फ अपने नागरिकों को यूक्रेन के सुमी से निकालने में कामयाब रहा है, बल्कि इनमें बांग्लादेश और नेपाल के नागरिक भी शामिल हैं.

रोज़नामा ने नौ मार्च के संपादकीय में लिखा है कि रूस का विरोध करना भारत के रणनीतिक हित में ठीक नहीं है लेकिन उसे तबाही को रोकने के लिए युद्ध विराम करवाने के लिए उसे कोशिश करनी चाहिए.

विदेश में अध्ययन क्यों ’ शीर्षक से सात मार्च को लिखे गए संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि यदि यह युद्ध नहीं होता, तो भारत के बहुत सारे लोगों को पता ही नहीं चलता कि कितने भारतीय नागरिक, शिक्षा पाने के लिए विदेश जाते हैं.

अखबार ने पीएम मोदी के उस दावे को खारिज किया कि अतीत की गलतियों की वजह से इतने सारे लोग विदेश पढ़ने जाते हैं. अखबार के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में शिक्षा पाना बहुत महंगा पड़ता है.


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महंगाई की मार

इंकलाब ने सात मार्च को अपने पहले पन्ने पर बीजेपी के राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का बयान छापा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी, छोटी और मध्यम स्तर की कंपनियों को खत्म करने के लिए ‘रूसी तरीके’ से काम कर रहे हैं. अखबार के मुताबिक, सांसद ने आरोप लगाया है कि इस रैकेट को गौतम अडानी चला रहे हैं.

कच्चे तेल की कीमत 13 साल के सबसे उच्चतम स्तर 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने पर रोजनामा ने इसे आठ मार्च को अपने पहले पन्ने पर जगह दी है.

नौ मार्च को रोजनामा के पहले पन्ने पर पीएम मोदी के उस बयान को जगह दी गई है जिसमें उन्होंने कहा है कि कोविड महामारी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बेहतर हो रही है. दिल्ली-एनसीआर में सीएनजी के दाम में वृद्धि को भी अखबार ने पहले पन्ने पर जगह दी है.

नौ मार्च को प्रकाशित सियासत के संपादकीय में लिखा गया कि कच्चे तेल की कीमत बढ़ने के बावजूद राज्यों में हो रहे चुनाव की वजह से आम लोगों पर इसका भार नहीं पड़ा है. सरकार को चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी इसे इसी तरह से जारी रखना चाहिए.

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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