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Saturday, 20 April, 2024
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UP में बहुमत घटने से जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए थोड़ी कठिन होगी BJP की राह

जुलाई 2021 में सिर्फ 0.05% की तुलना में भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए अब बहुमत के निशान से 1.2% दूर हो गया है. लेकिन जगनमोहन की वाईएसआरसीपी और नवीन पटनायक की बीजद जैसी पार्टियों के साथ कभी मैत्रीपूर्ण रहे रिश्तों की वजह से यह अंतर भर सकता है.

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नई दिल्ली: भाजपा ने भले ही फरवरी/मार्च में पांच राज्यों में हुए चुनावों में से चार में जीत हासिल कर ली है—जिसके नतीजे गुरुवार को घोषित किए गए—लेकिन इस साल के अंत में प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव में अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचक मंडल (जिसमें सांसद और विधायक शामिल होते हैं) के न्यूनतम आंकड़े से वह पीछे ही है. यही नहीं, यह आंकड़ा पिछले साल जुलाई की तुलना में थोड़ा और घट गया है.

भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के पास अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कुल मतों में करीब 1.2 प्रतिशत से कमी है. मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल इस साल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है.

बहरहाल, आंकड़ों में यह कमी भाजपा नेताओं की बेचैनी नहीं बढ़ा रही क्योंकि उन्हें निर्वाचक मंडल में बहुमत हासिल करने में काफी हद तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजू जनता दल की मदद मिलने का पूरा भरोसा है.

यूपी में संख्याबल घटने का पड़ा असर

पिछले साल जुलाई में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दिप्रिंट ने अनुमान लगाया था कि एनडीए राष्ट्रपति चुनाव के लिए जरूरी बहुमत के निशान से मात्र 0.05 प्रतिशत पीछे है, लेकिन अब स्थिति थोड़ी और खराब हो गई है.

2022 के विधानसभा चुनावों के नतीजों के साथ-साथ जुलाई 2021 के बाद से तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों के मद्देनजर एनडीए अब राष्ट्रपति चुनाव में 50 प्रतिशत वोट-शेयर से कम से कम 1.2 प्रतिशत दूर हो गया है.

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एनडीए के वोट-शेयर में गिरावट के लिए काफी हद तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा का संख्याबल घटने को जिम्मेदार माना जा सकता है.

राष्ट्रपति चुनाव में, लोकसभा या राज्यसभा के किसी भी सांसद की वोट-वैल्यू 708 होती है, जो एक निर्धारित फॉर्मूले के आधार पर तय होती है.

वहीं, किसी राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना के आधार पर) और विधानसभा सीटों की संख्या के आधार पर प्रत्येक विधायक की वोट-वैल्यू अलग-अलग होती है. यूपी के विधायक सभी राज्यों में सबसे अधिक वोट-वैल्यू रखते हैं, जो कि 208 है. राज्य के चार विधायक मिलकर एक सांसद के वोट पर भारी पड़ सकते हैं. लेकिन यहीं पर एनडीए की स्थिति कमजोर हुई है.

2017 के यूपी चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने क्रमश: 312 और 11 निर्वाचन क्षेत्रों में सफलता हासिल करके कुल 323 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया था.

जुलाई 2021 तक कुछ सीटें रिक्त होने के कारण यह संख्या घटकर 315 रह गई थी. 2022 के चुनावों में, भाजपा ने 255 सीटें जीतीं और अपना दल (एस) ने 12. वहीं, एक अन्य सहयोगी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) के छह विधायक जीते हैं. इस तरह, एनडीए के पास अब राज्य में कुल 273 विधायक हैं.

दूसरे शब्दों में कहें तो आठ महीनों के भीतर, एनडीए को उत्तर प्रदेश में 48 विधायकों का नुकसान उठाना पड़ा है, जो राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट-शेयर का लगभग 0.9 प्रतिशत है.

इस साल मतदान वाले अन्य राज्यों में से उत्तराखंड में भाजपा की सीटें घटकर 47 रह गईं, जो जुलाई 2021 में 56 थी. मणिपुर में, एनडीए जुलाई 2021 के 36 विधायकों की तुलना में अब 32 विधायकों पर सिमट गया है, खासकर तब तक के लिए जब तक अलग चुनाव लड़ने वाले सहयोगी दल फिर भाजपा से हाथ नहीं मिला लेते. गोवा में, एनडीए अपने पुराने सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक के बाहरी समर्थन के साथ 28 विधायकों से घटकर 20 पर आ गया है. महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के राज्य विधानसभा में दो विधायक हैं. पंजाब में, कोई बदलाव नहीं हुआ और भाजपा के पास पहले की तरह ही अब भी दो सीटें ही हैं.

हालांकि, इन राज्यों में प्रत्येक विधायक की वोट-वैल्यू काफी कम है. पंजाब के एक विधायक की वोट-वैल्यू 118, उत्तराखंड में 64, गोवा में 20 और मणिपुर में 18 है.

कुल मिलाकर कहा जाए तो एनडीए इस समय राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से लगभग 13,000 वोट दूर है. इसके लिए कुल वोट-वैल्यू करीब 1,093,347 है, जिसमें से 48.8 प्रतिशत एनडीए के पास है.


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‘मित्र’ दलों की मदद से आसान हो सकती है राह

निर्वाचक मंडल में कुछ क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है. इनमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) और नवीन पटनायक का बीजू जनता दल (बीजद) आदि शामिल हैं.

पंजाब के जीत हासिल करने के साथ अब आप के पास 1 फीसदी, और तृणमूल कांग्रेस के पास 3.05 फीसदी, वाईएसआरसीपी के पास 4 फीसदी, टीआरएस के पास 2.2 फीसदी और बीजद के पास लगभग 3 फीसदी वोट हैं.

इनमें से कुछ पार्टियां निश्चित तौर पर भाजपा की मित्र नहीं हैं. ममता बनर्जी भाजपा की प्रबल विरोधी हैं और अरविंद केजरीवाल के भी इसका समर्थन करने की संभावना नहीं है. वहीं, केसीआर भी भाजपा के खिलाफ पाले में खड़े होने का मन बना चुके नजर आते हैं.

ऐसे में एनडीए को जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी और नवीन पटनायक की बीजद से ही कुछ उम्मीद नजर आती है. इन दोनों दलों ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के साथ अपेक्षाकृत मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे हैं. दोनों दलों ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के एनडीए के फैसले का संसद में समर्थन किया था.

यदि वाईएसआरसीपी या बीजद साथ आएं तो एनडीए को राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक वोट मिल सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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