देहरादून, नौ नवंबर (भाषा) उत्तराखंड स्थापना के रविवार को आयोजित रजत जयंती समारोह में शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का टोपी से लेकर बोली तक हर अंदाज उत्तराखंडी रहा ।
वैसे तो अक्सर प्रधानमंत्री यहां अपने भाषण की शुरूआत गढवाली में करते हें लेकिन उत्तराखंडी टोपी पहने मोदी ने इस बार अपने भाषण में कई बार गढ़वाली और कुमांऊनी का इस्तेमाल किया ।
प्रधानमंत्री ने अपने चिर-परिचित अंदाज में भाषण की शुरूआत करते हुए कहा, ‘ देवभूमि उत्तराखंड का मेरा भै—बन्धौं, दीदी—भुल्यों, दाना—सयाणों। आप सबू कैं म्यर नमस्कार, पैलाग, सेवा सौंधी ‘(भाई—बंधुओं, दीदी—बड़े भाइयों। आप सबको मेरा नमस्कार, चरण वंदना, प्यार आशीर्वाद )।
इसके बाद, पिछले 25 साल में प्रदेश में आए बदलाव को सबको साथ लेकर चलने की नीति और हर उत्तराखंडी के संकल्प का नतीजा बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘पैली पहाडोंक चढ़ाई, विकासक बाट कें रोक दे छी। अब वई बटी, नई बाट खुलण लाग ली।’ (पहले पहाड़ों की चढ़ाई विकास के रास्ते रोकती थी। अब वहीं से नए रास्ते खुलने लगे हैं ।’
बीच में, एक बार फिर प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड के विकास को लेकर प्रदेशवासी बहुत उत्साहित हैं और अगर उनकी बातों को वह गढ़वाली में बोलेंगे तो हो सकता है कि उनसे गलती हो जाए लेकिन ‘ 2047 मा भारत थे, विकसित देशों की लैन मा, ल्याण खुणी, मेरो उत्तराखंड, मेरी देवभूमि, पूरी तरह से तैयार छिन। (2047 में भारत को विकसित देशों की लाइन में ले जाने के लिए मेरा उत्तराखंड, मेरी देवभूमि पूरी तरह से तैयार है । )
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण मे पहाड़ के लोक पर्वों, लोक परंपराओं और महत्वपूर्ण आयोजनों को भी शामिल किया। इस क्रम में उन्होंने हरेला, फुलदेई, भिटोली, नंदादेवी, जौलजीबी मेले, देवीधुरा मेले से लेकर दयारा बुग्याल के बटर फेस्टिवल तक का जिक्र किया।
भाषा दीप्ति रंजन
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