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Monday, 23 December, 2024
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मोदी-शाह के भरोसेमंद, यूपी के लो प्रोफाइल नेता और किशोर कुमार के फैन मनोज सिन्हा कैसे बने जम्मू कश्मीर के एलजी

पूर्वी यूपी के भूमिहार नेता की नियुक्ति अप्रत्याशित नहीं थी. उन्हें पिछले हफ्ते बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अवगत कराया गया था कि उन्हें कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी.

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नई दिल्ली: योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री चुने जाने से पहले 2017 में एक बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री के रूप में मनोज सिन्हा का नाम उछला था, लेकिन अब पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को राजनीतिक रूप से संवेदनशील जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल (एलजी) नियुक्त किया गया है, जम्मू कश्मीर को दो साल से कम समय में तीसरा गवर्नर मिला है.

उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई जब भाजपा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने की पहली वर्षगांठ मना रही थी.

भाजपा के सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके करीबी विश्वासपात्र सिन्हा को जम्मू-कश्मीर भेजने के फैसले के बाद जीसी मुर्मू को अचानक बुधवार रात एल-जी के पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया है.

हालांकि, पूर्वी यूपी से भूमिहार नेता की नियुक्ति अप्रत्याशित नहीं थी. उन्हें पिछले हफ्ते शीर्ष भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा अवगत कराया गया था कि उन्हें कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी.

बीजेपी के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि सिन्हा को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी नेता और प्रवक्ता बैजयंत पांडा के साथ राज्य में अस्थिर राजनीतिक स्थिति का जायजा लेने के लिए मणिपुर भेजा था.

सिन्हा को 1 अगस्त को दिल्ली आने के लिए कहा गया था. वह इस सप्ताह की शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी में आए और पीएम मोदी और शाह से मिले और उनकी नियुक्ति के बारे में बताया गया.

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, शीर्ष दो नेताओं (मोदी और शाह) द्वारा उन्हें भाजपा संगठन में उपाध्यक्ष के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन फिर उन्होंने अंतिम सप्ताह में चर्चा की कि क्यों न उन्हें जम्मू-कश्मीर में एल-जी के रूप में भेजा जाए. उनके पास प्रशासनिक अनुभव है और एक राजनीतिक नेता होने के नाते वह महत्वपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश को संभाल सकते हैं. इन चर्चाओं के बाद, उन्हें उनकी नियुक्ति के बारे में अवगत कराया गया था और मुर्मू को अपने कागजात तैयार रखने के लिए कहा गया था.

नेता ने कहा, ‘यह (नियुक्ति) केवल पीएम के साथ उनकी निकटता और उनकी साफ़ सुथरी लो-प्रोफाइल छवि के कारण हुई हैं. दूरसंचार के उच्च प्रोफ़ाइल मंत्रालय को संभालने के बावजूद, वह मायावती और अखिलेश (यादव) के ध्रुवीकरण और एकजुट लड़ाई के कारण 2019 में गाजीपुर से लोकसभा चुनाव हार गए. अगर वह चुनाव नहीं हारते तो शीर्ष पांच कैबिनेट मंत्रियों में से एक के रूप में उनका उत्थान निश्चित था. इसमें कोई संदेह नहीं था.’

सिन्हा की नियुक्ति के पीछे तीन मुख्य मापदंड

भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि सिन्हा की नियुक्ति मुख्य रूप से तीन मानदंडों पर की गई थी.

पहले, वह पीएम मोदी के करीबी और शाह के विश्वासपात्र भी थे. दूसरे, अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों को रोकने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए एक राजनीतिक व्यक्ति को केंद्र शासित प्रदेश का नेतृत्व करने की आवश्यकता थी.

और अंत में, सिन्हा एक लो-प्रोफाइल नेता हैं, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के विपरीत, जो हर विषय पर अपने विचार देते हुए भाजपा के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे थे.


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शाह के करीबी एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘जल्द ही यूटी के निर्माण और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद जम्मू और कश्मीर के विभिन्न मुद्दों को हल करने के लिए एक नौकरशाह की जरूरत थी जैसे कि वित्त, डोमिसाइल संबंधी मुद्दे पर. इसलिए मुर्मू (जो एक आईएएस अनुभवी हैं) को नियुक्त किया गया था.

मंत्री ने कहा, लेकिन अब एक परिपक्व राजनीतिक व्यक्ति के लिए संवेदनशील अनुभव वाले प्रशासनिक केंद्र का नेतृत्व करने की आवश्यकता है और सिन्हा फिट बैठते हैं. कुछ अन्य नामों पर भी चर्चा की गई, लेकिन पीएम ने सिन्हा पर विश्वास जताया क्योंकि उनके छपास की बिमारी (बीमारी) नहीं है. (जो हर मुद्दों पर बोलकर रोज प्रकाशित होना चाहते हैं)

भाजपा के एक दूसरे नेता के अनुसार, केंद्र में यह धारणा बढ़ती जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में ‘राजनीतिक वैक्यूम’ को भरने की जरूरत है.

बीजेपी जेएंडके इकाई द्वारा यूटी के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की गई है. भाजपा महासचिव राम माधव ने भी पिछले महीने कहा था कि पार्टी जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना चाहती है.

नेता ने कहा, ‘बाकी नेताओं की रिहाई के बाद आने वाले महीनों में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, इसलिए एक व्यक्ति का चयन करने की आवश्यकता थी, जो समाज के क्रॉस-सेक्शन को पूरा कर सकते हैं. उनका विश्वास हासिल कर सकते हैं. उनका रवैया नौकरशाही और अवरोधक वाला नहीं होना चाहिए, समस्याओं को हल करने के लिए होना चाहिए. यही कारण है कि मुर्मू को हटा दिया गया और एक राजनीतिक व्यक्ति को चुना गया.

सिन्हा-मोदी का संबंध चार दशक पुराना है

पीएम मोदी के साथ सिन्हा का रिश्ता चार दशक पुराना है. सिन्हा ने अपनी इंजीनियरिंग बीएचयू से पूरी की. जहां वह एबीवीपी और छात्र संघ अध्यक्ष के साथ थे. बाद में वह एबीवीपी बने. पहले भाजपा नेता ने कहा कि मोदी और सिन्हा आमतौर पर भाजपा परिषद की बैठकों में मिलते थे.

मोदी एक इंजीनियर, उनके जमीनी कनेक्शन, देहाती दृष्टिकोण और कम महत्वपूर्ण छवि के रूप में सिन्हा की तकनीकी पृष्ठभूमि से प्रभावित थे.’ 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका भाग्य बदल गया. सिन्हा को रेलवे और बाद में दूरसंचार के लिए राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था.

वह 2014 और 2019 में पीएम के वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र के पार्टी प्रभारी भी थे और उनकी देखरेख में प्रमुख विकास परियोजनाओं को निष्पादित किया गया था.

नेता ने कहा कि दूरसंचार मंत्री के रूप में उनके आचरण से पीएम भी काफी प्रभावित थे. उन्होंने कहा, ‘उनके कार्यकाल के दौरान, 5 जी को रोल आउट करने का निर्णय लिया गया था.

एक तीसरे भाजपा नेता ने कहा कि भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने सिन्हा को अखिलेश और मायावती द्वारा ध्रुवीकरण और संयुक्त लड़ाई के कारण पिछले साल लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से उनकी जीत पर नकारात्मक रिपोर्ट दी थी. तब पीएम ने इसके बाद सिन्हा को दूसरी सीट से लड़ने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.


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उन्होंने कहा, सर मैंने पूर्वी क्षेत्र और गाजीपुर में बहुत काम किया है, अगर मैं गाजीपुर से नहीं चुना जाता हूं, तो मुझे कहीं और से कैसे चुना जाएगा.

लगभग यूपी के सीएम बनने की कगार पर

2017 के यूपी चुनावों के बाद, सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए इत्तला दी गई. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनके नाम पर लगभग उनका नाम तय कार दिया था और केवल औपचारिकता बाकी थी कि उन्हें लखनऊ में विधायक दल का नेता चुना जाए.

सिन्हा वाराणसी में काल भैरव और काशी विश्वनाथ मंदिरों के दर्शन के लिए भी गए थे.

विधायक दल की बैठक के लिए लगभग 50 कारों के विशाल जत्थे को लखनऊ ले जाने की योजना बनाई गई थी, लेकिन आरएसएस के महासचिव सुरेश ‘भैयाजी’ जोशी द्वारा अमित शाह को अचानक फोन करने पर अनुरोध किया गया कि आदित्यनाथ को सीएम पद के लिए बनाया जाये, अचानक सब कुछ बदल गया.

बीएचयू से सिन्हा के दोस्तों में से एक प्रोफेसर एसके सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘2019 के चुनाव में अपनी हार के बावजूद, वह परेशान नहीं था. उन्होंने कहा ये सब राजनीति में होता है. मैंने पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम किया है और इस क्षेत्र (पूर्वी यूपी) में ऐसा विकास कार्य कभी नहीं हुआ है.’

प्रोफेसर ने कहा कि सिन्हा किशोर कुमार के प्रशंसक हैं और अक्सर उनके गीत गुनगुनाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘पिछले महीने उन्होंने मुझे बताया कि लॉकडाउन ने उन्हें इतना समय दिया है कि उन्होंने रामचरितमानस और संस्कृत के चार अध्याय को दो बार पढ़ा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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