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Thursday, 31 October, 2024
होमदेशइस कारण मोदी सरकार फ्लिपकार्ट और अमेज़न को भारी छूट देने पर सज़ा देना चाहती है

इस कारण मोदी सरकार फ्लिपकार्ट और अमेज़न को भारी छूट देने पर सज़ा देना चाहती है

ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़न और फ्लिपकॉर्ट की दिवाली सेल हर साल हजारों ग्राहकों को आकर्षित करती है.

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नई दिल्ली: अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां दिवाली के मौके पर अलग-अलग सामानों पर ढेर सारी छूट देती हैं. 2,199 रुपए की घड़ी 247 रुपए में मिल रही है. 32,995 रुपए की कीमत का एयर-प्यूरीफायर 23,999 का मिल रहा है. ब्रांडेड जूतों पर 60-80 प्रतिशत की छूट मिल रही है. 9,995 रुपए का इनवर्टर 4,499 रुपए का मिल रहा है.

इस तरह की सेल्स डील अब सरकार की नजर में है. सामानों की कीमतों में अप्रत्याशित छूट एक विवादित बिजनेस माना जा रहा है.

पिछले हफ्ते केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आश्वासन दिया था कि अगर अमेजन और फ्लिपकार्ट इस तरह के प्रैक्टिस के लिए दोषी पाई जाती है तो इनपर कार्रवाई की जाएगी. माना जा रहा है कि दोनों कंपनियों ने त्योहार के मौसम में लगी सेल में लगभग 33 बिलियन डॉलर की कमाई की है.

रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने दोनों ई-कॉमर्स कंपनियों को विस्तृत सवाल भेजे हैं. दोनों अमेरिका की कंपनी है.

गोयल ने कहा था, ‘ई-कॉमर्स कंपनियों के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो सामानों पर भारी छूट दें. सामानों को सस्ता बेचने से रिटेल सेक्टर को काफी नुकसान हो रहा है. ऐसा नहीं होने दिया जाएगा.’

हालांकि सरकार अभी कंपनियों की तरफ से जवाब आने का इंतजार कर रही है. दिप्रिंट उन कानूनों को समझा रहा है जिसका ये वेबसाइट उल्लंघन करते हैं.

प्रीडेटरी प्राइसिंग (सामानों को सस्ते दामों पर बेचना) क्या है

अमेजन अमेरिकी कंपनी है और फ्लिपकार्ट की स्थापना एक भारतीय ने की थी जिसका अभी ज्यादातर हिस्सा अमेरिकन कंपनी वालमॉर्ट के पास है.


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दोनों ही कंपनियां मार्केटप्लेस मॉडल ऑफ ई-काॉमर्स के अनुसार चलती हैं. जिसमें दुकानदारों और खरीददारों को जोड़ा जाता है. इसमें ई-कॉमर्स कंपनियां अपना सामान नहीं बेचती हैं. यह एकमात्र तरीका है जिसमें ई-कॉमर्स कंपनियों को भारत में विदेशी निवेश की इजाजत है.

इस फरवरी में एफडीआई नियमों के तहत, उन्हें कुछ वस्तुओं की विशेष बिक्री के लिए निजी कंपनियों के साथ हड़ताली अनुबंधों से रोक दिया जाता है, उदाहरण के लिए, वनप्लस-अमेज़ॅन साझेदारी और छूट की पेशकश.

दूसरे ई-कॉमर्स कंपनियों के अलावा अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर अक्सर प्रीडेटरी प्राइसिंग का आरोप लगता रहा है.

नए एफडीआई नियमों के पहले इन प्लेटफॉर्म्स पर आरोप लगते थे कि यह थोक में छूट में सामान खरीदते हैं और सस्ते दाम में उन्हें बेचते हैं.

इसके बाद अमेजन पे और फ्री कैशबेक, डिलिवरी फ्री जैसे ऑफर के तहत सामानों की कीमतों में और भी कमी आ जाती है.

नए एफडीआई नियमों के तहत दिशानिर्देश दिए गए हैं कि ई-कॉमर्स कंपनियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष किसी भी तरह से सामानों की कीमतों को प्रभावित नहीं कर सकती है.

यह भी कहा गया है कि यह कंपनियां व्यापार करने के लिए एक जैसा माहौल बनाए. इसके लिए कैशबेक और डिलिवरी फ्री जैसी सुविधा सभी वैंडर्स को दिए जाने की बात कही गई है.

नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अपने व्यापार संरचनाओं को पुन: स्थापित करने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों की आवश्यकता है. पीडब्ल्यूसी द्वारा एक मसौदा विश्लेषण, वास्तव में, भविष्यवाणी की कि संशोधित नीति 2022 तक ऑनलाइन बिक्री में 46 बिलियन डॉलर की गिरावट का कारण बन सकती है.

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों के दाम मुकाबला बढ़ाने के लिए है न कि यह एफडीआई की समस्या है.

भारत बेस्ड लॉ फर्म ट्रीलीगल में काम कर रहे निखिल नरेंद्रन ने कहा, कीमतों में भारी छूट मिलना गलत नहीं है. यह ग्राहकों के लिए हानिकारक नहीं है. फ्री मार्केट, नवोन्मेष से ग्राहक को फायदा मिलता है.

कम्पटीशन कमिशन ऑफ इंडिया (सीसीआई)

नई एफडीआई पॉलिसी लागू होने से पहले कॉम्पीटीशन कमिशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) प्रतिस्पर्धातमक गतिविधियों पर नजर रखती थी.


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आशीष अहूजा वर्सिस स्नैपडील.कॉम मामले में सीसीआई ने माना कि ई-कॉमर्स का बाजार छूट और स्पेशल डील पर ही फलता-फूलता है.

तब उसने यह फैसला सुनाया था कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 की धारा 4 में प्रीडेटरी प्राइसिंग के निर्धारण पर प्रतिबंध है, क्योंकि छूट की पेशकश अवैध नहीं होगी क्योंकि स्नैपडील संबंधित बाजार में ‘प्रमुख खिलाड़ी’ नहीं था.

एक बाजार खिलाड़ी को एक प्रमुख स्थिति का आनंद लेते हुए तब माना जाता है जब वह एकतरफा फैसले लेने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों, ग्राहकों और अन्य लोगों से स्वतंत्र कार्य कर सकता है.

प्रीडेटरी प्राइसिंग पर उठ रहे विवादों पर ई-कॉमर्स उद्योग के लिए सीसीआई सॉफ्ट पॉलिसी एडवाइजरी जारी करने की योजना बना रहा है.

आयोग ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे मोबाइल फोन, किराने, भोजन, इलेक्ट्रॉनिक(विद्युत उपकरण), जीवन शैली और होटल के लिए माल और सेवाओं में बाजार सहभागियों से जानकारी और जानकारी इकट्ठा करने के लिए ई-कॉमर्स पर एक अध्ययन शुरू किया है.

सीसीआई के चेयरपर्सन अशोक कुमार गुप्ता ने पिछले महीने द इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि गहरी छूट एक व्यवसाय को ‘अविश्वसनीय’ बनाती है क्योंकि यह उपभोक्ता की नज़र में उत्पादों और सेवाओं के मूल्य को कम करता है.

ब्रिक-एंड-मोर्टार रिटेलर्स लॉबी और ऑल इंडिया ट्रेडर्स के कन्फेडरेशन (कैट) द्वारा लिखित शिकायतों के बाद, सीसीआई ने भी गोयल से कहा कि वह इन भारी छूटों पर कड़ी नजर रखेगा.

ई-कॉमर्स पॉलिसी ड्राफ्ट

प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड ने फरवरी में ई-कॉमर्स पॉलिसी का ड्राफ्ट जारी किया था. लेकिन इसका मुख्य ध्यान लीगल और तकनीक फ्रेमवर्क से जुडा़ था.

नीति में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को व्यावसायिक रणनीतियों को अपनाने से रोकने का प्रस्ताव किया था जो कि एक या कुछ विक्रेताओं, व्यापारियों का पक्ष लेते हैं, और 2020 में अधिक व्यापक संस्करण की उम्मीद की जाती है. हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि एफडीआई नियमों में कोई बदलाव नहीं होगा.


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इस साल अगस्त में कंस्यूमर अफेयर्स मंत्रालय ने ई-कॉमर्स गाइडलाइंस ऑर कंस्यूमर प्रोटेक्शन 2019 जारी किया था. इसका मकसद ऑनलाइन ग्राहकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना था. इसके तहत कंपनियों को सामानों की कीमतों से प्रभावित न करना था और एक जैसा माहौल देना था.

हालांकि अमेरिकी सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए बने नए एफडीआई नियमों को लेकर आपत्ति जताई है और इसे द्विपक्षीय मुद्दा बनाया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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