scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमदेशNDPS एक्ट में बदलाव करने जा रही है मोदी सरकार, कम मात्रा में ड्रग्स रखना नहीं रहेगा अपराध

NDPS एक्ट में बदलाव करने जा रही है मोदी सरकार, कम मात्रा में ड्रग्स रखना नहीं रहेगा अपराध

विभिन्न मंत्रालयों की सिफारिशों पर विचार करके, उन्हें एक संधोधन बिल के मसौदे में शामिल किया जा सकता है, जिसे संसद के आगामी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.

Text Size:

नई दिल्ली: ड्रग दुरुपयोग के पीड़ितों को लत से बाहर आने में सहायता करने के लिए, नरेंद्र मोदी सरकार इस दिशा में काम कर रही है, कि बहुत कम मात्रा में ड्रग्स के निजी सेवन को, जिनमें भांग, तथा नशीले और मनःप्रभावी पदार्थ शामिल हैं, अपराध नहीं माना जाएगा.

इस मामले में सिफारिशें 10 नवंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक उच्च-स्तरीय बैठक में तय की गईं, जिसमें राजस्व विभाग, गृह विभाग, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सामाजिक न्याय मंत्रालय, और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी शामिल थे.

सूत्रों ने बताया कि विभिन्न मंत्रालयों द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करके, उन्हें एक संधोधन बिल के मसौदे में शामिल किया जा सकता है, जिसे संसद के आगामी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.

प्रस्ताव में निजी उपभोग को अपराध के दायरे से बाहर रखा जाएगा, जिसके लिए नारकोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज़ (एनडीपीएस) एक्ट, 1985, की धारा 39 और उससे जुड़ी हुई धाराओं 15,17,18, 20, 21 और 22 में संशोधन किए जाएंगे, जिनका संबंध ड्रग्स की ख़रीद, उपभोग, और फाइनेंसिंग से है.

गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया, ‘एक मीटिंग हुई थी जिसमें सभी प्रमुख हितधारकों ने प्रस्तावों पर विस्तार से चर्चा की. इसके पीछे विचार ये है कि एक्ट में सुधार किया जाए, और स्वास्थ्य लाभ को प्रोत्साहन दिया जाए. सभी प्रस्तावों पर तो सहमति नहीं हुई, लेकिन एक आम राय बन गई है.’

प्रस्ताव में क्या है

सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से पेश प्रस्ताव के अनुसार, एक्ट में न सिर्फ ‘उपभोग’ की जगह ‘निजी उपभोग के अलावा (कम मात्रा में)’ पर बात की जानी चाहिए, बल्कि ‘व्यसनी’ या ‘लती’ शब्द को हटाकर, उसकी जगह ‘सब्सटेंस यूज़ डिस्ऑर्डर वाले व्यक्ति’ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

सरकार के सूत्रों ने बताया कि सरकार इसमें स्पष्ट भेद करेगी कि कोई व्यक्ति जो ड्रग रखता है, या उसका निजी उपभोग करता है, वो बहुत कम मात्रा में है, या फिर व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए है.

एनसीबी के एक सूत्र ने कहा, ‘इससे निजी उपभोग को अपराध के दायरे से बाहर रखने में मदद मिलेगी और अदालतों को कम मात्रा के साथ पकड़े गए लोगों के साथ, नर्म रवैया अपनाने में सहायता रहेगी.’

ये सुझाव दिया गया कि ‘रखना’ शब्द की जगह ‘कम मात्रा से अधिक रखता है’ का इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि स्पष्ट हो जाए कि किसी व्यक्ति के पास ड्रग्स की मात्रा मध्यवर्ती है या व्यवसायिक है. साथ ही, ‘इस्तेमाल’ की जगह ‘निजी उपभोग के अलावा दूसरे इस्तेमाल’ शब्द प्रयोग किए जाने चाहिए.

एक एनसीबी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार इसमें स्पष्ट भेद करेगी कि कोई व्यक्ति जो ड्रग रखता है, या उसका निजी उपभोग करता है, वो बहुत कम मात्रा में है या फिर व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए है. इससे निजी उपभोग को अपराध के दायरे से बाहर रखने में मदद मिलेगी, और अदालतों को कम मात्रा के साथ पकड़े गए लोगों के साथ, नर्म रवैया अपनाने में सहायता रहेगी’.

ये विषय कुछ हालिया मामलों के बाद उठाया गया, जिनमें रिया चक्रबर्ती और आर्यन ख़ान शामिल थे- जिन दोनों पर ड्रग्स के उपभोग के आरोप लगाए गए थे.

‘अपराध न मानना एक महत्वपूर्ण क़दम’

पॉपी स्ट्रॉ, अफीम, भांग, मनःप्रभावी पदार्थ, और दूसरी ड्रग्स तथा नार्कोटिक्स के मामले में, जहां उल्लंघन में बहुत कम मात्रा शामिल है, और उसे केवल निजी उपभोग के लिए रखा गया है, वहां सुझाव दिया जाता है कि सरकार द्वारा चालित या समर्थित, स्वास्थ्य लाभ या नशामुक्ति केंद्र को प्रोत्साहन दिया जाए.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ड्रग को अपराध न मानना, एक ऐसी तर्क संगत ड्रग नीति की ओर बढ़ने में महत्वपूर्ण क़दम है, जो विज्ञान और जन स्वास्थ्य को दंड और क़ैद से पहले रखती है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘यूएन ने निजी इस्तेमाल के लिए कम मात्रा में ड्रग रखने को, अपराध नहीं मानने का समर्थन किया है. दुनिया के 28 देशों ने ड्रग रखने को अपराध न मानते हुए, उसकी जगह जुर्माने तथा शिक्षा व सामाजिक केंद्रों पर भेजने जैसे क़दम उठाए हैं. इससे स्वास्थ्य देखभाल, नुक़सान में कमी, तथा क़ानूनी सेवाओं का लाभ उठाने की लोगों की झिझक में कमी आई है’.

‘लती’ शब्द को हटाना

ड्रग्स की ख़रीद की बात करते हुए एक प्रस्ताव दिया गया है कि बेहतर स्पष्टता के लिए ‘किसी भी गतिविधि में डीलिंग में’ की जगह डील शब्द इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने विचाराधीन प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए कहा, ‘किसी भी गतिविधि में डीलिंग की व्याख्या बहुत व्यापक होती है, और इसमें वो सभी गतिविधियां आ जाती हैं, जो व्यावसायिक नेचर की नहीं हैं.’

प्रस्ताव के अनुसार, ‘डीलिंग इन की जगह ‘डील’ शब्द रखा जा सकता है, क्योंकि इसका एक ख़ास अर्थ होता है ‘व्यवसाय करना- विशेष रूप से ख़रीदना और बेंचना. इससे इस शब्द से जुड़ी अस्पष्टता ख़त्म हो जाएगी’.

प्रस्ताव में एक बड़ा बदलाव है ‘लती’ शब्द को हटाना और उसकी जगह ‘सब्सटेंस यूज़ डिस्ऑर्डर वाले व्यक्ति’ की परिभाषा को जोड़ना. इसका औचित्य ये है कि व्यसनी या व्यसन, नशीले पदार्थों के दुरुपयोग का सबसे गंभीर रूप है, जिसका एक नकारात्मक अर्थ होता है, और इस्तेमाल करने वाले की वैसी ही छवि बनती है.

इसमें कहा गया है कि उसकी बजाय, ‘सब्सटेंस यूज़ डिस्ऑर्डर वाले व्यक्ति’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे इस विकार से जुड़े कलंक को कम करने में मदद मिल सकती है, और लोगों के इलाज के लिए आगे आने में सहायता मिल सकती है’.

नशामुक्ति के लिए अनिवार्य उपचार

प्रस्ताव के अनुसार, जिस पर विचार चल रहा है, ऐसे मामलों में जहां कोई व्यक्ति कोई नशीला या मनःप्रभावी पदार्थ रखते, या सेवन करते पाया गया है, उसे जांच के लिए अनिवार्य रूप से सबसे नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया जाएगा, तथा 30 दिन तक नशा मुक्ति उपचार किया जाएगा.

फिलहाल, नशा मुक्ति के लिए चिकित्सा उपचार कराना स्वैच्छिक होता है.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘ऐसे व्यक्ति की नशा मुक्ति के लिए, चिकित्सा उपचार अनिवार्य होना चाहिए, जो कम मात्रा में नशीले पदार्थों से जुड़ा रहा है. इससे स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया में सहायता मिलेगी, और व्यक्ति की ऊर्जा ज़्यादा उपयोगी गतिविधियों में लगाई जा सकेगी, और उसे संभावित रूप से नशीले पदार्थों की आदत से दूर किया जा सकेगा’.

उसमें आगे कहा गया, ‘एक न्यूनतम अवधि तय की जानी चाहिए, जिससे कि कोई व्यक्ति शराब आदि की लत के इलाज के पूरे चक्र से गुज़र सके, जो 20-21 दिन का होता है.’

ये भी सुझाव दिया गया कि धारा 27(बी)- जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से उपचार नहीं कराता, तो उसकी सज़ा जुर्माना होगी जो 10,000 रुपए और साथ में किसी सरकार-समर्थित या चालित केंद्र में, एक साल तक अनिवार्य सामाजिक कार्य तक हो सकती है- पूरी तरह से हटा दी जाएगी.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘ऐसा इसलिए है कि सरकार ज़रूरतमंद लोगों के इलाज को स्वैच्छिक की बजाय अनिवार्य बनाकर, एक्ट में सुधार करना चाहती है. एक आम प्रथा है कि किसी व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित नशा मुक्ति केंद्र में दाख़िल करने से पहले, उसे सलाह दी जाती है और उसकी सहमति ली जाती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः क्रूज़ ड्रग केस में चश्मदीद प्रभाकर सैल NCB की सतर्कता टीम के सामने पेश हुए


 

share & View comments