नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने कहा है कि केंद्र सरकार को पाम ऑयल (ताड़ के तेल) की खेती को हतोत्साहित करना चाहिए और साथ ही सस्ते पाम ऑयल के आयात को कम किया जाना चाहिए.
इसके अनुसार सरसों की खेती पर जोर दिया जाना चाहिए, जो कि पाम ऑयल की तुलना में एक स्वदेशी, पानी की कम खपत वाली फसल है. इसने कहा कि खाद्य तेल उद्योग में ‘आत्मनिर्भर भारत’ कार्यक्रम के सफल होने के लिए पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भारतीय तिलहन पर अधिक निर्भर होना चाहिए.
ये बयान 25 से 27 फरवरी के बीच भोपाल में आयोजित बीकेएस के राष्ट्रीय सम्मेलन में दिए गए.
पिछले साल नवंबर में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने के फैसले के बाद आयोजित अपने पहले सम्मेलन में, बीकेएस ने पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में पाम ऑयल की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 11,000 करोड़ रुपये के नियोजित व्यय पर भी चिंता व्यक्त की. बीकेएस ने कहा कि यह कदम स्थानीय तिलहन की खेती के लिए विनाशकारी होगा.
बीकेएस के अध्यक्ष बद्री नारायण चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हर साल हम इंडोनेशिया और मलेशिया से भारी मात्रा में पाम ऑयल आयात करते हैं, जो कि सरकारी खजाने पर एक बोझ जैसा है. सरसों की खेती और इसकी कीमत पर इसका काफी अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है.‘
उन्होंने आगे कहा, ‘सरसों को कम पानी की आवश्यकता होती है और यह अधिक स्वास्थ्यप्रद भी होता है. हम खाद्य तेल सुरक्षा और आत्मानिर्भर भारत के बारे में बात करते हैं … सस्ते रिफाइंड पाम ऑयल के आयात को प्रतिबंधित किए बिना और सरसों की अधिक खेती का समर्थन किए बिना, ये चीजें संभव नहीं होंगीं.’
आरएसएस से सम्बद्ध इस संगठन ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के कार्यान्वयन के लिए एक समिति के तत्काल गठन की भी मांग की, जिसका वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल कृषि कानूनों को वापस लेते हुए दिए गए अपने भाषण में किया था.
इसने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में पहला कदम एमएसपी को लागू करना है.
सरसों के तेल में सम्मिश्रण पर प्रतिबंध लगे
चौधरी ने कहा कि घरेलू खपत के लिए उपलब्ध सस्ते आयातित तेल ने तिलहन की खेती में मंदी और किसानों के लिए कम कीमत की प्राप्ति वाली प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया है.
सरसों के तेल में (किसी भी अन्य खाद्य तेल के साथ) 20 प्रतिशत तक के सम्मिश्रण की अनुमति देने से कई क्षेत्रों में इस फसल की खेती में कमी हुई है. इस कारगुजारी के खिलाफ हमारे आंदोलन के बाद, सरकार ने पिछले साल सरसों के तेल के सम्मिश्रण पर प्रतिबंध लगा दिया था.
उन्होंने दावा किया कि इस प्रतिबंध से सरसों की खेती में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इस वर्ष इसकी बेहतर कीमत भी मिली है.
सरकार की ‘गलत दिशा वाली नीति’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में पाम ऑयल की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किया जाने वाला 11,000 करोड़ रुपये का प्रस्तावित खर्च महाविनाशकारी होगा. इसका इरादा तो इसकी आयात लागत में कटौती करना है, लेकिन यह बेतुकी बात है.‘
उन्होंने कहा, ‘पूर्वोत्तर में पारंपरिक खान-पान का स्वरूप बांस, अनानास और सरसों की खेती का समर्थन करते हैं, लेकिन … पाम ऑयल की खेती को प्रोत्साहित करने से पारंपरिक खेती नष्ट हो जाएगी.’
चौधरी ने यह भी बताया कि पाम ऑयल की खेती ने ‘दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले वनों को नष्ट कर दिया है, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को बढ़ाया है तथा लुप्तप्राय बीजों एवं उनकी खेती को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है’.
अफ़्रीकी मूल वाले पाम ऑयल को औपनिवेशिक काल के दौरान दक्षिण-पूर्व एशिया में लाया गया था. आज के दिन मलेशिया और इंडोनेशिया कुल मिलाकर दुनिया के 85 प्रतिशत पाम ऑयल का उत्पादन करते हैं.
विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि पाम ऑयल का अंधाधुंध उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि इसमें अच्छे वसा (गुड फैट्स) की मात्रा कम होती है. चिप्स से लेकर पिज्जा तक, सभी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सस्ते उत्पादन के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.
भारत हर साल लगभग 15 लाख टन रिफाइंड पाम ऑयल और सत्तर लाख टन कच्चे पाम ऑयल का आयात करता है, जो देश के कुल खाद्य तेल के आयात का 60 प्रतिशत है.
साल 2021 में भारत ने 1.17 लाख करोड़ रुपये के खाद्य तेल का आयात किया. इसमें से 69.174 करोड़ रुपये पाम ऑयल आयात पर खर्च किए गए.
तिलहन और पाम ऑयल पर सरकार के राष्ट्रीय मिशन (नेशनल मिशन ऑन ऑयल सीड्स एंड ऑयल पाम) के तहत पाम ऑयल की खेती के रकबे को 2025-26 तक एक मिलियन हेक्टेयर और 2029-30 तक 1.7-1.8 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ाने की योजना है.
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‘छोटे किसानों की सुरक्षा के लिए एमएसपी ही एकमात्र रास्ता’
विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद आयोजित अपने पहले सम्मेलन में, बीकेएस ने केंद्र सरकार से एमएसपी को पूरी तरह से लागू करने के लिए तुरंत एक समिति गठित करने का आग्रह किया. इसने कहा कि छोटे और सीमांत किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का यही एकमात्र तरीका है.
बीकेएस के संगठन महासचिव दिनेश कुलकर्णी ने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पहले कहा था कि पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण इस काम में देरी हुई है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम 10 मार्च का इंतजार कर रहे हैं..सरकार को इस समिति का गठन करना चाहिए और एमएसपी को समयबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए.’
‘ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहे हैं उर्वरक’
एमएसपी और पाम ऑयल के अलावा, बीकेएस ने जलवायु परिवर्तन पर रासायनिक उर्वरकों के व्यापक प्रभाव के बारे में भी बात की.
चौधरी ने कहा, ‘वाहनों और अन्य स्रोतों से होने वाला प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग में 40 प्रतिशत योगदान देता है, लेकिन कृषि क्षेत्र का इसमें 60 प्रतिशत योगदान है. रासायनिक उर्वरक न केवल नाइट्रोजन पर निर्भरता बढ़ाकर खेती के प्राकृतिक तरीके को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि इससे मिट्टी की उर्वरता भी ख़त्म हो रही है तथा पानी की आवश्यकता बढ़ रही है. यह अधिक ग्लोबल वार्मिंग भी पैदा कर रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘रासायनिक उर्वरकों की खपत को बढ़ावा देने के लिए अलग से एक लॉबी काम कर रही है, लेकिन किसी न किसी बिंदु पर हमें इसके विकल्प के बारे में सोचना ही होगा.’
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