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Thursday, 25 April, 2024
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इतिहास में ब्राह्मणवाद का तड़का? शिवाजी के ‘गुरु’ पर टिप्पणी कर कोश्यारी ने क्यों खड़ा किया विवाद

एमवीए घटक दलों का कहना है कि राज्यपाल की यह टिप्पणी, कि समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के गुरु थे, इतिहास को बदलने का एक प्रयास है. शिक्षाविदों का कहना है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है जो कोश्यारी के बयान का समर्थन करता हो.

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मुंबई: महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, जिनका महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के साथ टकराव का एक इतिहास रहा है. अब महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच इनकी एक बार फिर ठन गई हैं. इस बार विवाद की वजह बनी है मराठा योद्धा राजा छत्रपति शिवाजी के बारे में की गई कोश्यारी की एक टिप्पणी.

कोश्यारी ने रविवार को औरंगाबाद में एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के ‘गुरु’ थे, यह कहकर उन्होंने न केवल एमवीए घटकों, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य उदयनराजे भोसले—जो कि प्रत्यक्ष तौर पर शिवाजी के वंशज हैं—उनको भी आक्रोशित कर दिया.

एमवीए घटकों के साथ-साथ कई मराठा संगठनों ने उनकी इस टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कोश्यारी को राज्यपाल पद से हटाने की मांग तक कर डाली. उनका कहना है कि यह इतिहास को बदलने का कुत्सित प्रयास है और दावा किया कि छत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई ही उनकी असली गुरु थीं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सांसद सुप्रिया सुले ने बांबे हाईकोर्ट के एक आदेश को ट्वीट किया, जिसमें कहा गया था, ‘यह दर्शाने के लिए कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि शिवाजी महाराज रामदास से मिले थे या फिर वह रामदास को अपना गुरु मानते थे.’ सुप्रिया ने एनसीपी सुप्रीमो और अपने पिता शरद पवार की एक पुरानी वीडियो क्लिप भी साझा की, जिसमें वह बता रहे थे कि समर्थ रामदास के छत्रपति शिवाजी के गुरु होने के दावे किस तरह एकदम निराधार हैं.

इतिहासकारों और राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी दिप्रिंट से कहा कि यह विवाद सदियों पुराना है और ऐतिहासिक से ज्यादा राजनीतिक है. उनका यह भी कहना है कि यह सारा विवाद समाज के कुछ वर्गों द्वारा इतिहास को ब्राह्मणवादी नैरेटिव के साथ जोड़ने की प्रवृत्ति से उपजा है.

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‘उच्च जातियों के पूर्वाग्रह ने जमा रखी हैं गहरी जड़ें’

सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और इतिहास विभाग की प्रमुख श्रद्धा कुंभोजकर ने दिप्रिंट को बताया कि ‘बहुजन समाज के बारे में गहरे पूर्वाग्रह’ के कारण ही कोश्यारी की टिप्पणी पर विवाद उठा है.

कुंभोजकर ने कहा, ‘इस सामाजिक पूर्वाग्रह ने बहुत गहरी जड़ें जमा रखी हैं कि बहुजन समाज के लोग खुद कुछ करने में सक्षम ही नहीं हैं और इसके पीछे कोई ब्राह्मणवादी हाथ होना जरूरी है. इसलिए, उच्च जातियों के लोग या उच्च जातियों के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों पर मुहर लगवाने के इच्छुक लोग इस तरह के नैरेटिव को आगे बढ़ाते रहते हैं.

इतिहासकारों का यह भी कहना है कि यह दर्शाने वाला कोई वैध ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है कि समर्थ रामदास शिवाजी के गुरु थे, जैसा कोश्यारी ने दावा किया है.

कोल्हापुर के इतिहासकार इंद्रजीत सावंत ने दिप्रिंट को बताया, ‘छत्रपति शिवाजी के शासनकाल में रामदास स्वामी एक संत थे और इतिहास में ऐसे संतों के कम से कम 12 नाम उपलब्ध हैं जिन्हें छत्रपति ने दान या उपहार दिया था. यह दर्शाने वाला कोई वैध दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने सीधे तौर पर रामदास स्वामी की मदद की थी. पूर्व में शोधकर्ताओं ने कहा है कि उपलब्ध दस्तावेज यही कहते हैं कि ऐतिहासिक रूप से इसका कोई मान्य प्रमाण नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है कि रामदास ने छत्रपति शिवाजी महाराज को प्रशिक्षित किया था और इसके बाद ही उन्होंने अपना साम्राज्य स्थापित किया था. ये एक बहुत पुराना विवाद है, और इसके शुरू होने की एक वजह है कि एक समुदाय विशेष के लोग यह मानने को तैयार ही नहीं है कि शिवाजी महाराज अपने-आप में एक अहम व्यक्तित्व रखते थे. वे यही बात साबित करना चाहते हैं कि उन्होंने कुछ भी हासिल किया था, उसके लिए एक विशेष समुदाय के किसी व्यक्ति ने उन्हें तैयार किया था. इसीलिए, लोग सालों से इस अंतर को भरने के लिए कुछ पात्रों को सामने रख रहे हैं.’

एक तीसरे इतिहासकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बाबासाहेब पुरंदरे जैसे लेखकों का दावा है कि दादोजी कोंडदेव छत्रपति शिवाजी के गुरु थे, लेकिन उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाण ‘यही स्पष्ट करते हैं कि कोंडदेव छत्रपति शिवाजी के कार्यवाहक थे.’

तीसरे इतिहासकार ने कहा, ‘कोश्यारी ने जो कहा वह गलत था. टी.एस. शेजवलकर और वी.एस. बेंद्रे ने जैसे कई इतिहासकारों ने पूर्व में लिखा है कि समर्थ रामदास स्वामी और छत्रपति शिवाजी के बीच संबंध स्थापित करने की कोई जरूरत नहीं है, खासकर जब इतिहास इस पर कोई रोशनी नहीं डालता है.’

‘कोश्यारी की टिप्पणी भाजपा, आरएसएस की ही लाइन पर’

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई कहते हैं कि भाजपा और उसके वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने हमेशा इतिहास के उस पहलू का समर्थन किया है जो उच्च जाति के चश्मे से देखा जाता है.

देसाई ने कहा, ‘राज्यपाल ने वही कहा जो भाजपा और आरएसएस का नजरिया रहा है. छत्रपति शिवाजी के बारे में अपने लेखन को लेकर मराठा समुदाय के बीच विवादास्पद रहे इतिहासकार बाबासाहेब पुरंदरे को भाजपा का राजनीतिक संरक्षण हासिल था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाबासाहेब पुरंदरे के निधन के बाद संवेदना जताने के लिए पुणे में उनके परिवार से मुलाकात की थी.’

2015 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने पुरंदरे को ‘महाराष्ट्र भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था, जिसकी मराठा समुदाय के विभिन्न वर्गों ने आलोचना की थी.

देसाई ने कहा कि समय-समय पर इसे लेकर होने वाले विवाद एनसीपी जैसी पार्टियों के लिए मददगार साबित होते हैं, जिसका परंपरागत रूप से एक बड़ा मराठा जनाधार हैं, और इससे इसके वोट बैंक को भी मजबूती मिलती है.

देसाई ने कहा, ‘2004 में लेखक जेम्स लाइन की एक किताब पर प्रतिबंध को लेकर विवाद चुनावी मुद्दा बन गया था और एनसीपी को समर्थन बढ़ाने में मदद मिली थी. इसी तरह, कोश्यारी की टिप्पणी पर एनसीपी की कड़ी प्रतिक्रिया ऐसे समय में पार्टी के लिए मददगार साबित होगी जब सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण कानून का बचाव करने में एमवीए सरकार की अक्षमता को लेकर मराठा समुदाय के भीतर असंतोष है.’

2004 में महाराष्ट्र में लेखक जेम्स लाइन की लिखी किताब शिवाजी: हिंदू किंग इन इस्लामिक इंडिया को लेकर राज्यभर में विरोध प्रदर्शन के बाद कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. विरोध प्रदर्शन के दौरान पुणे स्थित भंडारकर इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल रिसर्च को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था क्योंकि संस्थान के शोधकर्ताओं ने जेम्स लाइन का सहयोग किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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