नई दिल्ली: बीते पांच साल (2020 से 2024) में 610 प्राचीन धरोहरें छह अलग-अलग देशों से भारत वापस लाई गई हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा 559 धरोहरें अमेरिका से मिलीं, मोदी सरकार ने सोमवार को संसद में इस बारे में जानकारी दी.
इस दौरान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और तमिलनाडु से 7 प्राचीन मूर्तियां चोरी भी हुईं. हालांकि, इनमें से करीब आधी वस्तुएं कूटनीतिक माध्यमों से वापस लाई जा सकीं, लेकिन सरकार ने यह साफ नहीं किया कि ये मूर्तियां अब अपने मूल स्थानों पर लौटाई गई हैं या नहीं.
लोकसभा में टीडीपी सांसद पुट्टा महेश कुमार ने संस्कृति मंत्रालय से पूछा कि क्या पिछले 5 साल में भारतीय धरोहरों की चोरी पर कोई अध्ययन किया गया है और क्या इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कोई कदम उठाए गए हैं?
इसके जवाब में केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया, “सरकार लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और कार्यशालाएं आयोजित करती है. खास अवसरों पर विशेष कार्यक्रम भी किए जाते हैं.”
उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले संरक्षित स्मारकों, स्थलों और संग्रहालयों में होने वाली चोरी का रिकॉर्ड अपडेट रखता है.
चोरी हुई वस्तुओं में 2020 में कर्नाटक के सदाशिव मंदिर से तांबे का कलश, 2021 में आंध्र प्रदेश से नंदी की मूर्ति, 2021 में उत्तराखंड से शिवलिंग, 2021 में झारखंड से बुद्ध की दो भूमिस्पर्श मुद्रा में मूर्तियां, 2022 में कर्नाटक से गणपति की पत्थर की मूर्ति, 2022 में बिहार से विष्णु की मूर्ति, 2022 में तमिलनाडु से भी विष्णु की एक और मूर्ति शामिल है.
सरकार ने बताया कि 2020 से 2024 के बीच जो 610 धरोहरें मिली हैं, वो ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, थाईलैंड, यूके और अमेरिका से आई हैं. सबसे ज़्यादा 559 अमेरिका से, फिर 34 ऑस्ट्रेलिया से और 14 यूके से लौटीं.
2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से अब तक कुल 640 प्राचीन धरोहरें भारत लाई जा चुकी हैं, लेकिन इनमें से केवल दर्जनभर वस्तुएं ही अपने मूल राज्यों तक वापस पहुंच सकी हैं. 1947 से 2014 तक के बीच सिर्फ 13 ही मूर्तियां भारत वापस लाई गई थीं.
प्राचीन धरोहरों को वापस लाना मोदी सरकार की एक प्रमुख पहल रही है. दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, हर बार किसी मूर्ति की वापसी को बड़ी उपलब्धि के तौर पर दिखाया जाता है, लेकिन उनकी भारत में वापसी के बाद की कहानी उतनी आसान नहीं होती — कई बार उन्हें सही जगह नहीं मिलती या वे सरकारी गोदामों में पड़ी रह जाती हैं.
हालांकि, कुछ खास मूर्तियों को 2023 के G20 शिखर सम्मेलन के दौरान दिल्ली में ‘Glimpses of Return’ नाम की प्रदर्शनी में दिखाया गया था, जैसे कि —
12वीं सदी के ‘डांसिंग गणेश’, 11वीं सदी की संगमरमर से बनी ‘ब्रह्मा-ब्रह्माणी’ की मूर्ति.
ASI की संयुक्त महानिदेशक और प्रवक्ता नंदिनी साहू ने दिप्रिंट से कहा था, “इन मूर्तियों की वापसी हमारी संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रतीक है. ये दिखाती हैं कि विरासत हमेशा अपनी जड़ों की होती है. ये भारत की आत्मा के अंश हैं.”
2023 में पीएम मोदी ने कहा था, “दुनिया के किसी भी म्यूज़ियम में जो कलाकृतियां गलत तरीकें से ली गई हैं, उन्हें वापस किया जाना चाहिए. आज़ादी से पहले और बाद में भी हमारी मूर्तियां अनुचित तरीकों से विदेश पहुंचाई गईं, लेकिन अब भारत की बढ़ती साख के कारण कई देश हमारी विरासत हमें लौटा रहे हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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