मुम्बई: ऐसे समय जब प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को, कथित मनी लॉण्डरिंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है, आईपीएस अधिकारी परम बीर सिंह ने, जिन्होंने सबसे पहले देशमुख पर आरोप लगाए थे, एक न्यायिक आयोग से कहा है कि वो न तो कोई सुबूत दिखाना चाहते हैं, और न ही कोई जिरह चाहते हैं.
दिप्रिंट को पता चला है कि सिंह ने इसी महीने अपने वकील के ज़रिए, चांदीवाल कमीशन से ये निवेदन 28 अक्तूबर को पैनल की सुनवाई से पहले किया.
महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार ने, रिटायर्ड जस्टिस केयू चांदीवाल के अंतर्गत ये एक सदस्यीय कमीशन, सिंह के उन दावों की जांच के लिए गठित किया था, कि देशमुख मुम्बई में एक जबरन वसूली रैकेट चलाते थे.
चांदीवाल आयोग के वकील शिरीष हीरे ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने (सिंह) अक्तूबर अंत में अपने वकील की मार्फत निवेदन पेश किया, जिसमें कहा गया था कि मैं न तो कोई सुबूत देना चाहता हूं, और न ही किसी से जिरह करना चाहता हूं. इसलिए वास्तव में कोई सुबूत नहीं हैं’.
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने आगे कहा, कि आयोग जिसकी अगली बैठक 22 नवंबर को होगी, इस बात पर निर्णय करेगा कि इस निवेदन के बाद, अब उसके पास क्या रास्ता बचता है.
परम बीर सिंह के आरोप
इस साल मार्च में, सिंह ने महाराष्ट्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, और राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी को एक बिना हस्ताक्षर किया पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख ने अपने अधिकारियों को, जिनमें अब निलंबित चल रहे पुलिस कर्मी सचिन वाझे भी थे, निर्देश दिया था कि मुम्बई के शराबख़ानों और रेस्टोरेंट्स से, हर महीने 100 करोड़ रुपए की वसूली की जाए.
प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने, जो इस केस की मनी लॉण्डरिंग के एंगल से जांच कर रहा है, 12 घंटे की पूछताछ के बाद सोमवार रात एनसीपी नेता को गिरफ्तार कर लिया, और 6 नवंबर तक उनकी कस्टडी हासिल कर ली है.
देशमुख के खिलाफ मनी लॉण्डरिंग केस की अपनी जांच के सिलसिले में, ईडी ने जुलाई में सिंह को भी एजेंसी के सामने पेश होने का नोटिस जारी किया था, लेकिन पूर्व मुम्बई पुलिस प्रमुख ने उसका जवाब नहीं दिया.
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चांदीवाल आयोग के प्रति सिंह का विरोध
सीएम ठाकरे को सिंह का विस्फोटक पत्र उसके तीन दिन बाद आया, जब आईपीएस अधिकारी का मुम्बई पुलिस कमिश्नर के हाई प्रोफाइल पद से तबादला कर दिया गया. उससे पहले उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुम्बई आवास एंटीलिया के बाहर मिले विस्फोटकों की जांच में, ख़ामियों के आरोप लगाए गए थे. सिंह को महानिदेशक होम गार्ड्स के अनाकर्षक पद पर रवाना कर दिया गया.
सीएम को पत्र लिखने के बाद सिंह ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें मांग की गई कि देशमुख के खिलाफ उनके आरोपों की, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराई जाए. हाईकोर्ट ने सीबीआई को एक प्रारंभिक जांच का आदेश दिया, जिसके बाद केंद्रीय एजेंसी ने केस में एक एफआईआर दर्ज कर ली, और ईडी ने भी मनी लॉण्डरिंग के आरोपों की जांच के लिए, एक एन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज कर ली.
मई में सिंह छुट्टी पर चले गए, और उसके बाद से उनका कोई पता नहीं है. हालांकि वो किसी जांच अथवा सरकारी अधिकारी के सामने पेश नहीं हुए हैं, लेकिन अगस्त में आईपीएस अधिकारी ने अपने वकील के ज़रिए, बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर करके चांदीवाल आयोग के कार्यक्षेत्र को चुनौती दी थी. उनका तर्क था कि बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही कार्यक्षेत्र तय कर चुका है, और उन्हें आयोग के समक्ष पेश होने के लिए मजबूर नहीं का जा सकता.
अधिवक्ता हीरे ने दिप्रिंट को बताया, कि अप्रैल में आईपीएस अधिकारी को आयोग के सामने पेश होकर, अपने तर्क रखने के लिए पहला नोटिस दिया गया था, जिसके बाद सिंह अपने वकील की मार्फत आयोग के समक्ष पेश हुए थे.
हीरे ने कहा, ‘हमने दो पतों पर नोटिस भेजे- होम गार्ड्स का कार्यालय, और उनका मुम्बई पता. कार्यालय ने ये कहते हुए नोटिस को नहीं लिया, कि उनके पास ऐसा कोई निर्देश नहीं है, इसलिए हमने उसे परम बीर सिंह को ईमेल कर दिया. नोटिस की बाक़ायदा तामील हुई; सिंह अपने वकील के ज़रिए पेश हुए और अपना जवाब दाख़िल किया, जो काफी हद तक सीएम को लिखे उनके पत्र पर आधारित था’.
हीरे ने आगे कहा कि उसके बाद आयोग ने तीन मौक़ों पर, सिंह के आख़िरी ज्ञात पतों पर समन जारी किए- मुम्बई में उनका घर, होम गार्ड्स ऑफिस, और उनका चंडीगढ़ आवास- जिसके बाद आयोग ने उन पर जुर्माना लगाना शुरू कर दिया.
कमीशन के वकील ने कहा, ‘मैंने निवेदन किया कि किसी ऊंचे स्तर से ज़मानती वॉरंट जारी किया जाए, इसलिए उसे डीजीपी के ज़रिए भेजा गया. डीजीपी ने सीआईडी की एक स्पेशल टीम बनाई. टीम को चंडीगढ़ में एक और पता मिला. सभी ज्ञात पतों पर वॉरंट भेजे गए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, इसलिए एक दूसरा ज़मानती वॉरंट जारी किया गया’. वकील ने आगे कहा कि दूसरे वॉरंट के बाद, सिंह ने कोई और सुबूत न देने के बारे में लिखकर निवेदन भेज दिया.
समन्स, गिरफ्तारी वॉरंट्स के बावजूद सिंह का कोई पता नहीं
जबरन वसूली के आरोपों को लेकर सिंह के खिलाफ, मुम्बई और ठाणे में कई एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन उन्होंने दोनों शहरों में पुलिस की ओर से जारी समन का कोई जवाब नहीं दिया है.
अभी तक, सिंह के खिलाफ महाराष्ट्र में दो ग़ैर-ज़मानती वॉरंट हैं, एक मुम्बई एस्प्लेनेड कोर्ट से, और दूसरा एक ठाणे कोर्ट से. जुलाई में, ठाणे पुलिस ने सिंह को देश छोड़कर जाने से रोकने के लिए, एक लुक-आउट नोटिस जारी किया.
चांदीवाल आयोग के कामकाज से जुड़े एक क़रीबी सूत्र ने कहा, कि कई बार नोटिस जारी होने के बावजूद कमीशन के सामने पेश न होने पर, पैनल ने उन पर जुर्माना लगाया था, और उन्हें जुर्माना राशि को सीएम कोविड राहत कोष में जमा कराने का आदेश दिया था.
सूत्र ने कहा, ‘हम जानते हैं कि वो राशि नक़द जमा की गई है. इसका मतलब है कि यहां पर कोई है, जो परम बीर सिंह के संपर्क में है, और उनकी ओर से काम कर रहा है. अगर सरकार वास्तव में चाहे, तो एंट्रीज़ पर नज़र डालकर उस आदमी का पता लगा सकती है.
इसी महीने, महाराष्ट्र सरकार ने औपचारिक तौर पर, सिंह को भगोड़ा घोषित करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी, और उनका पता लगाने में इंटेलिजेंस ब्यूरो से भी सहायता मांगी.
अनाधिकारिक रूप से सरकारी और सियासी हलक़ों में बातें चल रही हैं, कि उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किए जाने से पहले ही, सिंह शायद भारत छोड़कर रूस या बेल्जियम निकल गए.
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