कौशांबी: नई-नई मां बनी, सर्वाइवर को रोटियां खाने की तल्ब है लेकिन उसे चावल खा कर ही तसल्ली करनी पड़ती है क्योंकि उसके परिवार को राशन में गेहूं मिलता है और उसे पिसवान इन्हें महंगा पड़ता है. सर्वाइवर जन्म देने के बजाय अबॉर्शन को चुनती, लेकिन वहां भी फैसला लेना उसके हाथ में नहीं था. वो महज 13 साल की है, एक बलात्कार पीड़िता है, और उसका परिवार इस बात से डरा हुआ है कि अगर बच्चे को रखना पड़ा तो समाज उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा.
वो खुद एक बच्ची है और उसने पिछले साल 13 दिसंबर को प्रीमैच्योर डिलीवरी की है लड़की अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है. बच्चा अभी अस्पताल में है. एक स्थानीय शुभचिंतक द्वारा दान की गई एक पतली ग्रे रंग की हुडी पहने हुए, वह उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में अपने गांव में अलाव के सामने अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ मंडराते समय ठंड से कपकपाती है.
13 लोगों के परिवार के पास कच्चे घर में ठंड से बचने के लिए अलाव ही एकमात्र स्रोत है. बिजली नहीं है और वे कड़ाके की ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े और जूते तक खरीदने के सक्षम नहीं हैं.
लड़की कहती है कि पिछले साल गर्मियों में अच्छी तरह से परिचित “चाचा” ने उस पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. उसकी उम्र 45-50 साल है, वो उसी पासी (दलित) समुदाय से ताल्लुक रखता है जिससे उसका परिवार है.वो अपनी चार बेटियों सहित अपने परिवार के साथ कुछ घर दूर ही रहता है.
वो सहमी आवाज में रुक-रुक कर दिप्रिंट से बात करते हुए कहती है, ‘पांच रुपए और टॉफ़ी देने के बहाने वह मुझे अपने घर बुलाया करता था. फिर वह मुझसे मेरे कपड़े उतारने के लिए कहता था.’
वो आगे याद करते हुए कहती है, ‘जब मैंने मना किया तो वह जबरदस्ती मेरे कपड़े उतार देता था और मेरे साथ गलत काम करता था. इसके बाद वह मुझसे कहता था कि अगर मैंने किसी को बताया तो वह मेरे माता-पिता को मार देगा.’
छठी कक्षा की छात्रा डर के मारे बार-बार होने वाले ‘बलात्कार’ पर चुप्पी साधे रही. लेकिन पिछले अगस्त के पहले हफ्ते में उसके पेट में तेज दर्द हुआ. उसका परिवार उसे एक डॉक्टर के पास ले गया और अल्ट्रासाउंड किया गया तो पता चला कि वह गर्भवती है. तभी उसने अपने माता-पिता को बताया कि उनका भरोसेमंद पड़ोसी शिवमूरत पासी उसके साथ दुष्कर्म करता था.
उसके भूमिहीन मजदूर पिता ने दावा किया कि शिवमूर्त को सजा दिलाने के मकसद से वह शिकायत दर्ज कराने के लिए तुरंत चरवा पुलिस स्टेशन गए, लेकिन पहले तो उन्हें ‘भगाया’ दिया गया. इसके बाद, उन्होंने बताया कि एक स्थानीय पत्रकार ने कौशांबी के पुलिस अधीक्षक (एसपी) हेमराज मीणा को मामले से अवगत कराया और उनके निर्देश पर, 8 अगस्त को एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई. लड़की का मेडिको-लीगल टेस्ट भी कराया गया.
केस डायरी के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, पीड़िता उस समय 18 सप्ताह और दो दिन की गर्भवती पाई गई थी.
जब दिप्रिंट ने चरवा पुलिस थाने के इंस्पेक्टर आलोक कुमार से पूछा कि तुरंत प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई, तो उन्होंने आरोप को ‘निराधार’ बताया.
10 अगस्त को, पुलिस ने शिवमुरत को विभिन्न भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया, जिसमें 376 (3) (16 साल से कम उम्र की महिला से बलात्कार) और 511 (आजीवन या अन्य कारावास के साथ दंडनीय अपराध करना) शामिल हैं. साथ ही, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों के तहत भी मामला दर्ज किया गया.
जहां तक परिवार की बात है, न्याय का पहिया घूमने लगा था, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि घड़ी की सुई भी चल रही है और अबॉर्शन करवाना जल्द ही एक असंभव कवायद साबित होगी.
यह भी पढ़ें: खत्म होने के बावजूद आज भी कैसे शाहीन बाग की महिलाओं ने जिंदा रखा है आंदोलन
गर्भपात के लिए एक हारी हुई लड़ाई
2021 में, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम में संशोधन ने बलात्कार पीड़ितों और नाबालिगों सहित महिलाओं की कुछ श्रेणियों के लिए भारत में गर्भपात की सीमा को 20 से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया.
इसके अलावा, यौन हिंसा की सर्वाइवर के लिए केंद्र सरकार के चिकित्सा-कानूनी दिशानिर्देश निर्धारित करते हैं कि अगर कोई महिला हमले से उत्पन्न गर्भावस्था की रिपोर्ट करती है, तो ‘उसे गर्भपात कराने का विकल्प दिया जाना चाहिए, और एमटीपी के लिए प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए.’
हालांकि, पीड़िता के पिता ने कहा कि उन्हें गर्भपात पर 24 सप्ताह की सीमा के बारे में जानकारी नहीं थी. वो पहले अबॉर्शन कराने के लिए एक निजी अस्पताल में गए थे, उनके पास इसका भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे और इसी में अधिक समय निकल गया.
28 सितंबर को, लड़की की तबीयत बिगड़ने पर, उसके पिता ने उसे अपने गांव से लगभग 35 किमी दूर मंझनपुर के सरकारी कौशाम्बी जिला अस्पताल में भर्ती कराया.
जब उसने डॉक्टरों से वहां गर्भपात करने के लिए कहा, तो उन्होंने उसे बताया कि गर्भावस्था 24 हफ्ते से अधिक हो गई है और ऐसा करने के लिए उसे अदालत के आदेश की ज़रूरत होगी.
इसके बाद उन्होंने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां जज ने 15 अक्टूबर को कौशांबी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को डॉक्टरों का एक बोर्ड गठित करने और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया.
2 नवंबर को जब तक सीएमओ ने जवाब दिया, तब तक 13 वर्षीय लड़की अपनी गर्भावस्था के 30 सप्ताह गुजार चुकी थी. डॉक्टर्स की कमिटी ने निष्कर्ष निकाला था कि जिला अस्पताल गर्भपात करने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि गर्भावस्था अंतिम चरण में थी और इस प्रक्रिया से उसके जीवन को खतरा हो सकता था. हालांकि, उन्होंने सिफारिश की कि पीड़िता को प्रयागराज के स्वरूप रानी अस्पताल में रेफर किया जाना चाहिए, जैसा कि दिप्रिंट ने अदालती दस्तावेजों में देखा है.
लड़की के पिता ने कहा कि वो गरीब होने के कारण स्वरूप रानी अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते हैं.
इस बीच, पॉक्सो अदालत के विशेष न्यायाधीश अरविंद कुमार गर्भपात की अनुमति पर सुनवाी कर रहे थे. हालांकि कोर्ट ने इस आधार पर इजाजत देने से इंकार कर दिया कि बच्ची के लिए अबॉर्शन जानलेवा हो सकता है. अदालत ने 2 नवंबर को ही फैसला सुनाया था.
यह भारत में एक मुद्दा है कि डॉक्टर्स नाबालिग बलात्कार पीड़ितों का गर्भपात करने के लिए हमेशा तैयार नहीं होते हैं, जिसका मतलब है कि परिवारों को अक्सर दर-दर भटकना पड़ता है और अदालत का रुख करना पड़ता है. कुछ मामलों में, गर्भपात कराने के लिए प्रक्रिया में ही बहुत देर हो जाती है.
बता दें कि, 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के मामले भी अदालतों में सुने गए हैं. मिसाल के तौर पर, पिछले साल जुलाई में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी. अदालत ने कहा थी कि ‘इतनी कम उम्र में मातृत्व का आवरण’ करने से सिर्फ “मानसिक और शारीरिक आघात” बढ़ेगा. जिससे वो पहले ही गुजर चुकी थी.
मेडिकल बोर्ड की राय का विरोध करते हुए कि गर्भपात नहीं किया जाना चाहिए, अदालत ने कहा था कि ‘असाधारण स्थितियों’ में, अदालत ‘संविधान द्वारा प्रदत्त अपनी असाधारण शक्तियों को लागू कर सकती है, जहां [एमटीपी] अधिनियम के प्रावधानों का कड़ाई से अर्थ निकाला जा सकता है. गर्भपात की स्वीकृति नहीं देता.’ इसमें कहा गया है: ‘अगर कोई मामला उस श्रेणी में आ सकता है, तो यह है.’
यह भी पढ़ें: ‘कानूनी तौर पर फैसला गलत है’- ‘लव जिहाद’ के तहत भारत की पहली सजा में फंसे हैं कई दांव-पेंच
‘अनचाहा’
लगभग तीन महीने तक, लड़की और उसके पिता इस उम्मीद में जिला अस्पताल में रहे कि गर्भपात हो जाएगा.
सर्वाइवर ने आरोप लगाया कि कुछ स्टाफ सदस्य ने उसके साथ बदसलूकी की था. ‘वे हमसे कहते थे, ‘जाओ यहां से, यह तुम्हारा घर नहीं है. पहले अपना कोर्ट का मामला निपटाओ.’
उसने आगे दावा किया, ‘वे मुझे खाने के लिए केवल थोड़ा सा चावल देते थे. मेरे पापा समोसा खाकर ही गुजारा करते थे. कभी-कभी, वह तीन या चार दिन बिना खाना खाए रहे हैं. बाद में सीएमओ के आदेश पर उन्हें खाना दिया जाने लगा.’
यह इंतजार 13 दिसंबर 2022 को खत्म हुआ जब पीड़िता ने कुछ हफ्ते पहले ही बच्चे को जन्म दे दिया. उसकी मां ने कहा कि उसके वजाइना में टांके लगे हैं जिसके कारण उसे बैठने में काफी समस्या होती है. साथ ही उसके पीठ में भी दर्द रहता है.
जहां तक बच्चे का सवाल है, उसका वजन बहुत कम था और वह अभी भी अस्पताल में है, जहां पीड़िता के परिवार के सदस्यों का आरोप है कि उसे ठीक से नहीं खिलाया जा रहा था.
एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वार्ड में भर्ती अन्य नवजात शिशुओं का बचा हुआ दूध कभी-कभी इस बच्चे को दिया जाता है. यहां तक कि कुछ स्टाफ मेंबर अपने निजी पैसों से उसके लिए दूध की व्यवस्था करते हैं.
इन आरोपों के बारे में पूछे जाने पर जिला अस्पताल के मुख्य अधीक्षक डॉ. दीपक सेठ ने कहा कि अस्पताल में बच्चे का इलाज अन्य शिशुओं की तरह ही किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार बच्चे का इलाज किया जा रहा है. वह प्रीमेच्योर पैदा हुआ था, इसलिए उसे इंटेंसिव केयर में रखा गया है. कपड़े, दूध और बाक़ी सामान सरकारी फंड से ही खर्च किए जा रहे हैं.’
तबीयत में सुधार के बाद बच्चा कहां जाएगा अभी पता नहीं चल पाया है.
पीड़िता और उसका परिवार पहले से ही झेल रहे सामाजिक बहिष्कार के कारण उसे नहीं रखना चाहते हैं.
सर्वाइवर की मां रोते हुए कहती हैं, ‘लोग हमसे दूर भागते हैं अगर हम उस बच्चे को अपने पास रखेंगे तो हमारी लड़कियों से कौन शादी करेगा?’
अस्पताल के कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही कोई स्वेच्छा से उस बच्चे को गोद ले लेगा. सेठ ने कहा कि इलाज के बाद बच्चे को एनजीओ चाइल्डलाइन को सौंप दिया जाएगा.
अस्पताल के आईसीयू में कई शिशु पालने में थे. सर्वाइवर के बच्चे का वजन लगभग 1 किलो और सात सौ ग्राम है. छोटे-छोटे हाथ उसके चेहरे के करीब थे और वो एक रंगीन कंबल में लिपटे हुए तेज आवाज में रो रहा था. अस्पताल का स्टाफ आ कर उसे चुप कराने की कोशिश करता है. उसका अभी कोई नाम नहीं है.
यह भी पढ़ें: ‘हम सब बेरोजगार हो जाएंगे,’ फ्लैग कोड में बदलाव का कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्ता संघ करता रहेगा विरोध
मायूसी और ‘अपहरण’
सर्वाइवर और उसका परिवार गांव में अपने जीवन के बिखरे टुकड़ों को समेटने की कोशिश कर रहा है, जहां वे भय और सामाजिक स्टिग्मा के साए में जी रहे हैं.
‘गांव में लोग हमें ताने मारते हैं. वे हम पर हंसते हैं. हमारे साथ हुई घटना के बारे में चार गांवों के लोग जानते हैं.’
परिवार को इस बात की भी शंका है कि आरोपी शिवमूरत उन से बदला लेने के लिए उन्हें परेशान कर सकता है, खासकर अगर वह जमानत पर रिहा हुआ है. पुलिस का कहना है कि इसी वजह से ‘मनगढ़ंत’ अपहरण का एक विचित्र मामला सामने आया.
3 जनवरी को पीड़िता के पिता शिवमूरत की जमानत की सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेश होने वाले थे. उसी दिन, पीड़िता की मां को फोन आया कि उसके पति को अदालत जाते समय शिवमूरत के जानकारों ने ‘अपहरण’ कर लिया है. इसके बाद उसने पुलिस को सूचना दी. हालांकि, पुलिस ने कहा कि अपहरण, अपहरण नहीं था.
चरवा थाने के निरीक्षक आलोक कुमार ने कहा, ‘हमें शिकायत मिली थी कि पीड़िता के पिता लापता हो गए हैं.’ ‘हमने तीन टीमों का गठन किया और उसकी तलाश की और आखिर में उसे लखनऊ के चारबाग से बरामद किया गया. उसने हमें बताया कि उसे कुछ लोगों ने बरगलाया था जिसके कारण उसने अपने अपहरण की कहानी गढ़ी.’
इस बारे में पूछे जाने पर, पीड़िता के पिता ने स्वीकार किया कि उन्होंने दूसरे लोगों की सलाह मान कर इस तरह का काम किया है. उन्हें कहा गया था कि अगर वो अपहरण का नाटक करके इसका दोष पासी पर डाल देंगे तो उसे जमानत मिलना आसान नहीं होगा.
परिवार अपना घर बेचना चाहता है और गांव से बाहर जाना चाहता है, लेकिन उनके पास मुश्किल से इतना पैसा होता है कि वे एक साथ दो वक्त की रोटी जुटा सकें.
2015 में, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिंसा की शिकार महिलाओं और लड़कियों को 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता देने के लिए रानी लक्ष्मी बाई महिला एवं बाल सम्मान कोष नाम की एक योजना शुरू की थी.
हालांकि, 13 साल की बच्ची और उसके परिवार ने कहा कि उन्हें सरकार से किसी तरह का मुआवजा नहीं मिला है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, संयोग से, भारत में नाबालिग लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा की सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई हैं.
2021 में, मध्य प्रदेश (3,522), महाराष्ट्र (3,480), तमिलनाडु (3,435), उत्तर प्रदेश (2,749), और कर्नाटक (2,093) में ऐसे मामलों की सबसे अधिक संख्या के साथ, पूरे भारत में 33,000 से अधिक बच्चियों के साथ बलात्कार हुआ. 2020 में, 6,898 पॉक्सो मामलों के साथ यूपी शीर्ष पर था, जिनमें से 3,881 यौन उत्पीड़न या लड़कियों के यौन उत्पीड़न से संबंधित थे.
यह भी पढ़ें: SC से छत्तीसगढ़ के ‘फर्जी एनकाउंटर’ की जांच अपील खारिज होने पर हिमांशु कुमार ने कहा- जुर्माना नहीं, जेल भरेंगे
‘स्कूल वापस जाना चाहते हैं’
ग्रामीणों के मुताबिक शिवमूरत की गिरफ्तारी के बाद से पूरे इलाके में दहशत फैल गई है. कुछ ने पूछा कि अगर शिवमुरत जैसा चार बेटियों का पिता ऐसा अपराध कर सकता है तो किस पर भरोसा किया जाए.
कमालपुर निवासी शिव कुमार ने कहा, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा. हमने कभी नहीं सोचा था कि शिवमूरत ऐसा कुछ कर देंगे. आज इस घटना से गांव में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर डर फैल गया है. हम अब अपनी लड़कियों और महिलाओं को घर से बाहर भेजने से डरते हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं.’
ग्रामीणों ने दावा किया कि आरोपी फिलहाल मंझनपुर जेल में बंद है और उसका परिवार घर पर ताला लगाकर दिल्ली भाग गया है.
हालांकि, सर्वाइवर ताला और चाबी में कैद नहीं रहना चाहती है. बलात्कार का मामला दर्ज होने के बाद से वह स्कूल नहीं गई है लेकिन सर्दियों की छुट्टियों के बाद वो फिर से स्कूल जाने की योजना बना रही है.
वह अपने बच्चे के बारे में बात नहीं करती लेकिन वह अपने भविष्य को लेकर बहुत स्पष्ट है.
वो कहती है, ‘मैं बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहती हूं और शिवमूरत जैसे लोगों को जेल में डालना चाहता हूं. मैं अपने छोटे भाई-बहनों को भी पढ़ाना चाहती हूं.’
उसके पिता ने कहा कि जब भी वह निराश होते हैं तो वह उन्हें समझाती है: ‘वही मुझे सांत्वना देती है और कहती है कि हमें न्याय ज़रूर मिलेगा.’
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘मारना ही है तो मुझे, बच्चों और खालिद को एक ही बार में मार दो’- ‘राजनीतिक कैदियों’ के परिवारों को क्या झेलना पड़ता है