श्रीनगर/पुलवामा : संतोष बैठे श्रीनगर के लाल चौक स्थित अबीगुज़र इलाके में एक निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार पर सैंडपेपर रगड़ने में लगे हैं. काम को जल्दी से पूरा करने के लिए, वह राजमिस्त्री अमित कुमार को सीमेंट-गिट्टी का मसाला तैयार करने का निर्देश देते हैं. अपने सहयोगियों को काम में तेजी लाने के लिए इशारा करते हुए वे दिप्रिंट को बताते हैं कि ‘हमें आज ही इस दीवार का काम खत्म करना है और कल से गुंबद पर काम शुरू करना है.’
वह बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बलिया गांव के एक निर्माण कार्य वाले कामगार हैं. वह पिछले एक महीने से उसी जगह के मूल निवासी आठ अन्य लोगों के साथ काम कर रहें है, ताकि सर्दी के जोर पकड़ने से पहले जितनी जल्दी हो सके मस्जिद को पूरा किया जा सके.
यह परियोजना पिछले महीने कुछ समय के लिए रुक से गयी थी जब बैठे और उनके सहयोगियों को कुछ दिनों के अंतराल में आतंकवादियों द्वारा प्रवासी मजदूरों और कश्मीरियों सहित 11 नागरिकों की हत्या के बाद कुछ दिनों के लिए काम बंद करना पड़ा था.
आतंकियों की गोली का शिकार होने के डर ने उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड के कई कामगारों को – जो विभिन्न निर्माण स्थलों पर, इमारती लकड़ी उद्योग में, खेतों और फलों के बागों में, कशीदाकारी, नाई और फेरीवाले के रूप में काम करते हैं और इस तरह कश्मीर की अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं – घाटी से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया था.
इस वहज से घाटी के कई हिस्सों में औद्योगिक, कृषि और निर्माण कार्य ठप हो गए थे. परन्तु, कुछ ही हफ्तों के भीतर कई लोग अपने-अपने नियोक्ताओं और प्रशासन द्वारा सुरक्षा का आश्वासन दिए जाने के बाद लौट आए हैं.
कुछ और लोग जो यहां से जाने की योजना बना रहे थे, उन्होंने अब इस विचार को त्याग दिया है. इस बीच, जो लोग बाहर चले गए थे उनमें से कई के कड़ी सर्दी के बीत जाने के बाद फरवरी में वापस लौटने की संभावना है.
कश्मीर घाटी में प्रवासी मजदूर आमतौर पर फरवरी के मध्य से दिसंबर के मध्य तक में काम करते हैं. उनमें से ज्यादातर सीजन के अंत में अपने घरों के लिए निकल जाते हैं क्योंकि तब बर्फ़ पड़ने लगती है और उद्योगों में उत्पादन इकाइयां बंद हो जाती हैं.
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‘वे हमसे कहते हैं कि वे फिर लौट के आएंगे’
बैठे ने कहा कि उनके गांव से फोन आ रहे हैं क्योंकि सुरक्षा सम्बन्धी खतरे को देखते हुए कई मजदूर अब वापस लौटना चाहते हैं. उनमें से कुछ अपने नियोक्ताओं से यह भी कह रहे हैं कि वे उनके लिए फ्लाइट के टिकट बुक करवा दें.
बैठे कहते हैं, ‘बहुत से लोग जो काफी डरे हुए थे, अपने गांव के लिए निकल गए. कई लोग तो काम की तलाश में जम्मू भी गए. अब हमें यह पूछने के लिए बार-बार फोन आते हैं कि क्या उन्हें वापस लौटना चाहिए. कई जो जम्मू गए थे वे सब वापस आ गए हैं, अन्य कई जो अपने घर वापस चले गए थे वे भी लौट आए हैं क्योंकि उनके घर पर आय का कोई स्रोत नहीं है.’
बैठे के अनुसार, उनके वहां बने रहने के फैसले ने ‘कई दूसरे लोगों को भी विश्वास दिलाया है.’ वे कहते हैं, ‘जो अभी तक नहीं लौटे हैं वे फरवरी में वापस आ जाएंगे क्योंकि अगले 10-15 दिनों में वैसे भी सभी काम ठप हो जाएंगे.’
पुलवामा के लित्तर में, एक बढ़ई सगीर अहमद, जिसकी 16 अक्टूबर को पास की ही एक जगह में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, की मौत से लगे सदमे के कम होने के बाद स्थानीय फर्नीचर बनाने वाली इकाई में काम फिर से शुरू हो गया है.
पश्चिम बंगाल के एक फर्नीचर निर्माता मंगोल किस्कू, जो एक साल पहले कश्मीर आए थे और पुलवामा में एक प्लाईवुड वाले कारखाने में काम करते हैं, ने कहा कि वह पहले ‘स्थिति का आकलन’ करने के लिए रुक गए थे. वे कहते हैं, ‘यह कश्मीर है, यहां यह सब होता रहता है. हमने अपने घरों से बाहर निकलना बंद कर दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही सब कुछ सामान्य हो गया. मेरे कुछ दोस्त लौट आए हैं, सर्दी के बाद बाकी सब भी आ जायेंगे.’
एमके चौक, जिसे श्रीनगर शहर में लेबर चौक के रूप में भी जाना जाता है, इन दिनों सुबह-सुबह होने वाली चहल-पहल से गुलजार रहता है, हालांकि यहां का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
काम की तलाश में सभी प्रवासी मजदूर सुबह यहां इकट्ठा होते हैं और नियोक्ताओं द्वारा उनसे सीधे संपर्क किया जाता है. उनमें से कई इसी चौक से काम पर जाने के लिए बसें पकड़ते हैं.
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काम फिर से शुरू हो गया है और दहशत थम गई है, उद्योग जगत का दावा
कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष शेख आशिक के मुताबिक, अब दहशत शांत हो गई है. उनका कहना है कि जब भी हिंसा की ऐसी घटनाएं होती हैं तो मजदूरों का पलायन होता है लेकिन जल्द ही चीजें ठीक हो जाती हैं.
आशिक कहते हैं, ‘इस बार, जब आम नागरिकों की ये हत्याएं हुईं, तो काफी दहशत फैल गई और इनमें से कुछ प्रवासी मजदूर वापस जाने लगे. लेकिन नियोक्ताओं द्वारा उनके आवास, सुरक्षा और भोजन का ध्यान रखने का आश्वासन दिए जाने के बाद जल्द ही यह दौर थम भी गया.’
उनका कहना है, ‘हालात अब काफी बेहतर हैं. अधिकांश क्षेत्रों में काम फिर से शुरू हो गया है. बहुत से लोग जो वापस चले गए हैं वे भी अब लौटने को तैयार हैं लेकिन वे ऐसा फरवरी में ही करेंगे क्योंकि वैसे भी सर्दियों में ये सभी प्रवासी मजदूर घर वापस चले जाते हैं. सर्दियों में ज्यादातर उद्योग काम नहीं करते हैं. अब फरवरी के मध्य में ही फिर से काम शुरू होगा.’
न्यू कश्मीर फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद ने बताया कि मजदूरों को उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिए जाने के बाद जल्द ही काम फिर से शुरू हो गया था.
बशीर कहते हैं, ‘हर किसी को अपनी रोजी-रोटी कमानी होती है. वे जाएंगे कहां? सालों से वे यहीं काम कर रहे हैं. उनमें से कई हमारे आश्वासन के बाद यहीं रुक गए, लेकिन जो वापस चले गए वे भी लौटना चाहते हैं. कई तो वापस आ भी गए हैं और बाकी जाड़ों के मौसम के बाद वापस आ जाएंगे.’
यहां के ‘लोगों’ और ‘कमाई’ की वजह से रुक गए
निर्माण स्थलों, बुनाई और कढ़ाई इकाइयों, दुकानों और यहां तक कि फेरीवालों के रूप में काम कर रहे कई लोग अपने नियोक्ताओं और अन्य स्थानीय निवासियों को उनके द्वारा दिए गए आश्वासन और समर्थन के लिए धन्यवाद देते हैं. उनका कहना है कि वे घाटी में अन्य स्थानों की तुलना में अधिक कमाते हैं.
पश्चिम चंपारण निवासी और निर्माण कार्य वाले मजदूर अमित प्रसाद ने कहा, ‘अक्टूबर में, स्थिति बहुत खराब थी. लेकिन यहां के लोग काफी सहयोगी और मददगार किस्म के हैं. चूंकि प्रशासन भी सहायक बना हुआ है और हमें यहां बहुत अच्छा पैसा मिलता है, हमें खुशी है कि हम वापस रुक गए. हमारे वे सभी दोस्त जो चले गए थे वे भी कह रहे हैं कि वे अगले सीजन में वापस आ जाएंगे. बस कुछ ही दिन थे जब लोग वापस गए. उसके बाद से कोई नहीं गया.’
बलिया के रहने वाले अमित कुमार ने कहा कि उनके नियोक्ता ने उनके ठहरने के लिए एक कमरे की व्यवस्था करने की भी पेशकश की थी.
उन्होंने कहा, ‘यहां के लोग बहुत अच्छे हैं. वे हमें खाना खिलाते हैं और हमारी सुरक्षा भी करते हैं. चूंकि स्थानीय निवासी हमारा समर्थन करते हैं, इसलिए हम भी पीछे नहीं हटेंगे. वास्तव में, हमारे नियोक्ता ने हमें बताया कि हमें घर से बाहर नहीं जाना है. हमसे कहा गया कि हमें शाम को बाहर नहीं निकलना चाहिए और हमें सब कुछ उपलब्ध कराया जाएगा.’
पश्चिम चंपारण के एक अन्य निर्माण मजदूर रमाकांत स्थानीय पुलिस द्वारा उन्हें रुकने के लिए मनाए जाने से पहले अपना बोरिया-बिस्तर सिमट जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद क्षेत्र के स्टेशन हाउस ऑफिसर से ‘उनसे परामर्श करने’ के लिए मुलाकात की.
वे कहते हैं, ‘उन हत्याओं के बाद, मैंने वापस जाने का फैसला कर लिया था. मैं यहां बहुत से लोगों को जानता हूं. मैंने यहां प्रशासन एवं पुलिस को फोन किया और उन्होंने मुझे ज्यादा परेशान नहीं होने को कहा. उन्होंने मुझे यह कह के आश्वासन दिया कि अगर आपको डर लगता है, तो हमारे साथ रहने आ जाएं. उन आश्वासनों के बाद मैंने और मेरे दोस्तों ने रुकने का फैसला किया.‘
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