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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशप्रवासी मजदूरों को 2020 के लॉकडाउन जैसे हालात होने का डर, कहा- काम बंद होने से घर जाने को मजबूर

प्रवासी मजदूरों को 2020 के लॉकडाउन जैसे हालात होने का डर, कहा- काम बंद होने से घर जाने को मजबूर

घर जाने के लिए अंतराज्यीय बस अड्डे पर पहुंचे मजदूरों ने कहा- वे दिहाड़ी मजदूर हैं, काम ना होने से क्या करें, हमारे गांव में भी काम नहीं इसीलिए वापस लौटे थे.

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नई दिल्ली : नेपाल की रहने वाली प्रवासी दैनिक मजदूर गीता कुमारी को आशंका है कि दिल्ली में छह दिनों का लॉकडाउन लगने से पिछले वर्ष जैसी स्थिति हो सकती है और उसके परिवार के पास काम और संसाधनों की जल्द ही कमी हो जाएगी.

कौशांबी बस डिपो पर अपने परिवार के साथ महानगर छोड़ने की प्रतीक्षा में बैठी कुमारी ने कहा, ‘हमें आशंका है कि यह पिछले वर्ष की तरह नहीं हो जाए. अगर लॉकडाउन बढ़ जाए तो क्या होगा? अगर लंबे के लिए समय निर्माण कार्य बंद हो जाएं तो क्या होगा? तब हम क्या खाएंगे? पिछली बार हमने स्थिति बेहतर होने की प्रतीक्षा की थी, लेकिन अंतत: घर जाना पड़ा था.’

उसने कहा, ‘मेरे परिवार में सात सदस्य हैं, जिसमें बुजुर्ग भी हैं. पिछले बार के लॉकडाउन के दौरान स्थिति खराब होने के बाद हम नेपाल चले गए थे. हम करीब चार-पांच महीने पहले लौटे थे. हम दैनिक मजदूर हैं और वर्तमान हालात के कारण हमारे पास काम नहीं है. हमारे गांव में भी काम नहीं है इसलिए हमें वापस आना पड़ा लेकिन यह निश्चित नहीं है कि कब लॉकडाउन और आगे के लिए बढ़ जाए.’

अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर पिछले वर्ष की तरह मजदूरों की भीड़ देखी जा सकती है, जहां अपने घर लौटने के लिए हजारों की संख्या में मजदूर इकट्ठा हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हफ्तेभर के लॉकडाउन करने की घोषणा करने और हाथ जोड़कर मजदूरों से दिल्ली नहीं छोड़ने की अपील के कुछ ही घंटे बाद हजारों की संख्या में मजदूर पलायन के लिए बेचैन हो गए. मुख्यमंत्री ने उनसे नहीं जाने की अपील करते हुए कहा था -‘मैं हूं ना.’

मुख्यमंत्री ने मजदूरों से अपील की कि दिल्ली नहीं छोड़ें और कहा कि कम समय का लॉकडाउन आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ सकती है. वर्तमान में लॉकडाउन के दौरान अंतरराज्यीय आवाजाही पर पाबंदियां नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले चंदन सिरोज ने कहा कि पिछले लॉकडाउन के दौरान वह ट्रक में अपने घर गए थे.

सिरोज ने कहा, ‘पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान हम करीब एक महीने से ज्यादा समय तक फंसे रहे. भोजन कोई मुद्दा नहीं था लेकिन हमें अपनी जिंदगी का भय था. ट्रक से हम जौनपुर पहुंचे.’

उन्होंने कहा, ‘हम करीब दो महीने पहले आए थे. सोमवार को हमने अपने नियोक्ता से कहा कि हम जौनपुर जा रहे हैं और उससे कुछ पैसे मांगे. उसने हम सबको केवल पांच-पांच सौ रुपये दिए. इस वर्ष वैसा नहीं रहेगा. कोई सहायता नहीं करेगा.’

लखनऊ के पास अकबरपुर के रहने वाले धर्मवीर सिंह (24) ने कहा कि घर लौटने के लिए बस की प्रतीक्षा में हूं.

दिलशाद गार्डन में ई-रिक्शा चलाने वाले दीपक कुमार ने कहा कि वह अपने गृह नगर अभी नहीं जा रहे हैं, लेकिन कम सवारी मिलने से खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है.

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