रायपुर: राशन खत्म है, जमा-पूंजी खर्च हो चुकी है और ठेकेदार की बेरुखी से अब बाहर से आये लॉकडाउन में बेरोजगार हुए मजदूर की बची-खुची हिम्मत भी जवाब दे चुकी है. लॉकडाउन 2 के अंतिम दौर में इन मजदूरों को उत्तर प्रदेश में अपने गांव और घर के सिवाय जीने का कोई और सहारा नजर नहीं आया तो ये छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से अपनी साइकिल पर ही 800 किलोमीटर से भी अधिक दूर घर के लिए चल पड़े हैं. गर्मी से बचने के लिए रायपुर से 4.30 बजे सुबह निकलकर करीब 120 किलोमीटर का रास्ता तय कर 7.30 बजे बिलासपुर पहुंचे. इन मजदूरों का कहना था कि एक सप्ताह लगेगा लेकिन वे घर जरूर पहुंच जाएंगे.
दिप्रिंट ने रास्ते में चल रहे इन श्रमिकों से जब बात की तो उनका कहना था कि यदि रायपुर में कुछ दिन और रहते तो भूखे मरने की नौबत आ जाती.
‘पिछले दो महीनों से ठेकेदार ने हमें एक पैसा भी नही दिया है. कोई सुविधा भी नही मिली. जैसे-तैसे करके एक महीना काटा. जो जमा पूंजी थी वह राशन के इंतजाम में लग गयी. कहां जाएं यहां तो सिर छुपाने के लिए भी जगह नहीं है. घर नही जाएंगे तो भूखे मर जाएंगे’ कहना है बेरोजगार हो चुके उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले गणेश सिंह का जो पिछले तीन सालों से रायपुर स्थित आरती स्पंज आयरन कंपनी में क्रेन ऑपरेटर का काम करते थे और अब कंपनी बंद पड़ी है.
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कुछ ऐसा ही कहा आजमगढ़ के रमेश यादव ने. यादव का कहना था कि ‘हम ठेकेदार के आश्वासन पर फैक्ट्री के अन्दर ही रह रहे थे लेकिन उन्होंने कभी खाना तक नही दिया. ठेकेदार पहले काम दोबारा चालू होने का लगातार आश्वासन देता रहा कि लेकिन ऐसा नही हुआ. हमको जब यकीन हो गया की अब न तो काम चालू होगा और न ही ठेकेदार से पैसे मिलेंगे तब हमारे पास जो कुछ भी राशन बचा था उसे रास्ते के इस्तेमाल के लिए लेकर चल पड़े हैं.’
लॉकडाउन के दैरान क्या पुलिस का कोई डर नही है के सवाल पर रमेश ने कहा, ‘यदि पुलिस पकड़ेगी तो उनसे विनती करेंगे, नही छोड़ा तो जैसे वे कहेंगे वैसा ही करेंगे.’ यादव ने बताया कि आरती स्पंज आयरन एक बड़ी कंपनी थी जहां 600-700 के करीब श्रमिक कार्यरत थे लेकिन अब 30-35 मजदूर ही रह गए हैं, बाकि सब छोड़कर वहां से चले गए हैं.
आजमगढ़ के लिए साइकिल से निकले इसी कंपनी में गैस कटर का काम करने वाले ओमप्रकाश यादव ने बताया ‘ठेकेदार से बार-बार आग्रह करने के बाद भी उसने हमारा मेहनताना नहीं दिया तो हम क्या करते. खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. सरकार और कंपनी की तरफ से न पैसे मिले और न ही राशन. हमारे पास अब सिर्फ एक साइकिल और बैग के सिवाय कुछ नही बचा है. जिंदा रहने के लिए साइकिल से घर वापस जाने के सिवाय कोई चारा नही था.’
मऊ जिले के महाबलपुर क्षेत्र के रहने वाले और आरती स्पंज आयरन कंपनी के भट्ठी में काम करने वाले मुकेश चौहान कहते हैं,’ हमें 28 अप्रैल तक उम्मीद थी की शायद ठेकेदार हमारे कुछ पैसे दे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसी वजह से हमारी आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई. मैंने सोच था घरवालों के लिए कुछ लेकर जाऊंगा लेकिन लॉकडाउन में तो हमारे लिए ही खाने के लाले पड़ गए हैं.’
इन मजदूरों ने बताया कि उन्होंने ने अपनी व्यथा स्थानीय प्रधान को भी बताई और उनसे आग्रह किया कि ठेकेदार से उनका पैसा दिलवाएं लेकिन प्रधान ने भी कुछ नही किया.
मजदूरों का वापस जाना, झुठलाता सरकार का दावा
लॉकडाउन के अंतिम दौर में रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र से उत्तर प्रदेश अपने गांव वापस जा रहे इन मजदूरों की बातों से राज्य सरकार के इस दावे की भी पोल खुल गयी है कि प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भरपूर खाद्दान्न सामग्री मुहैया कराई गयी है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने मीडिया को हाल ही में बताया था प्रदेश में रह रहे सभी लोगों को, राशनकार्डधारी और जिनके पास कार्ड नही है दोनों वर्गों के ग्राहकों के लिए पीडीएस की दुकानों से राशन दिया गया है. इसके अलावा राज्य सरकार ने लगातार दावा किया है कि लॉकडाउन से प्रभावित लाखों बेरोजगार श्रमिकों को गैरसरकारी संस्थाओं की मदद से भोजन की व्यवस्था रोजाना करवाई जा रही है लेकिन इन मजदूरों ने साफ किया है कि उनके अपनी फैक्टरी छोड़कर जाने का कारण भी भोजन की व्यवस्था नही हो पाना है. इन्होंने ने बताया कि उनके मांगने पर भी कोई पैसे और भोजन देने को तैयार नही था.