नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार द्वारा 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से प्राथमिक जांच कराने की सिफारिश की है. अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी.
दिल्ली सरकार ने बस खरीद में भ्रष्टाचार के ‘आरोपों’ से इंकार किया है और भाजपा नीत केंद्र सरकार पर सीबीआई का इस्तेमाल कर उसे ‘परेशान’ करने का आरोप लगाया है.
दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) द्वारा की गयी इन बसों की खरीद के वार्षिक रखरखाव अनुबंध (एएमसी) में ‘भ्रष्टाचार’ का मामला इस साल मार्च में विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने उठाया था.
उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने एएमसी में प्रक्रियागत ‘खामियां’ पायी थीं और उसने उसे निरस्त करने की सिफारिश की थी.
अधिकारियों ने बताया कि जुलाई में उपराज्यपाल ने इस मामले को विचारार्थ गृह मंत्रालय के पास भेज दिया था.
गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव (केंद्र शासित) गोविंद मोहन ने 16 अगस्त को मुख्य सचिव विजय देव को पत्र लिखकर सीबीआई जांच की जानकारी दी.
गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया है, ‘मैं दिल्ली सरकार द्वारा एक हजार लो फ्लोर बसों की खरीद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार द्वारा मामले की विस्तृत जांच के लिए गठिन तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के सिलसिले में पत्र लिख रहा हूं.’
पत्र में कहा गया है, ‘मामले पर मंत्रालय में गौर किया गया और सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी से डीओपीटी से आग्रह किया गया है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा मामले में प्रारंभिक जांच के लिए आवश्यक कदम उठाए.’
विधानसभा में मामले को उठाने वाले दिल्ली भाजपा के विधायक विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया कि बस खरीद में हजारों करोड़ रुपये का ‘घोटाला’ है.
दिल्ली सरकार ने बयान जारी कर कहा कि इन आरोपों में ‘कोई सच्चाई नहीं है’ और एक समिति ने मामले की पहले ही गहन जांच की है जिसने सरकार को ‘क्लीनचिट’ दी है.
इसने कहा, ‘यह आम आदमी पार्टी के खिलाफ राजनीति से प्रेरित कदम है. भाजपा दिल्ली के लोगों को नई बसें प्राप्त करने से रोकना चाहती है. पहले भी केंद्र सरकार ने सीबीआई का इस्तेमाल कर दिल्ली सरकार को परेशान करने का प्रयास किया, लेकिन एक बार भी उनका प्रयास सफल नहीं हुआ क्योंकि इन आरोपों में कभी कोई सच्चाई नहीं थी.’
डीटीसी ने पिछले वर्ष एक हजार लो फ्लोर बसों की खरीद और उनके एएमसी के लिए दो अलग-अलग निविदाएं जारी की थी. खरीदने के लिए निविदा 850 करोड़ रुपये की थी जबकि 12 वर्षों के एएमसी के लिए राशि 3412 करोड़ रुपये थी.