scorecardresearch
Monday, 9 December, 2024
होमएजुकेशनMERITE: इंजीनियरिंग की शिक्षा में सुधार के लिए मोदी सरकार की पंचवर्षीय, 20 सूत्रीय कार्य योजना

MERITE: इंजीनियरिंग की शिक्षा में सुधार के लिए मोदी सरकार की पंचवर्षीय, 20 सूत्रीय कार्य योजना

यह योजना सामाजिक रूप से कमजोर समूहों और कॉलेजों को लक्षित करेगी, जिनके पास पर्याप्त शैक्षणिक और ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: केंद्र सरकार के पास अगले पांच वर्षों में क्रियान्वित होने वाली और भारत में तकनीकी शिक्षा कॉलेजों में शिक्षा और स्नातकों की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक 20 सूत्री कार्य योजना तैयार है.

तकनीकी शिक्षा में बहुविषयक शिक्षा और अनुसंधान सुधार (मल्टीडिसप्लीनरी एजुकेशन एंड रिसर्च इम्प्रूवमेंट इन टेक्निकल एजुकेशन – मेरिटे) नामक यह कार्यक्रम एक विश्व बैंक समर्थित योजना है, जिसे शिक्षा मंत्रालय और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित (फंड) किया जाना है और इसे अगले पांच वर्षों, सत्र 2022-23 से 2027-28 तक, में लागू किया जाना है.

यह योजना सामाजिक रूप से कमजोर समूहों और कॉलेजों को लक्षित करेगी, जिनके पास पर्याप्त शैक्षणिक और ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.

मेरिटे, टेक्निकल एजुकेशन क्वालिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम (टेकिप), जिसके तहत सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों को पढ़ाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईटी) के स्नातकों की सेवाओं का उपयोग किया था, से आगे की एक योजना है.


यह भी पढ़ें: टेक्निकल रेग्युलेटर ने यूनिवर्सिटी, कॉलेजों से वैदिक बोर्ड के छात्रों को मान्यता और एडमिशन देने को कहा


शिक्षा मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में मेरिटे परियोजना का एक विस्तृत दस्तावेज जारी किया था जिसमें बताया गया था कि कैसे इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा और इसके अपेक्षित नतीजे क्या होंगे.

अनुमान के मुताबिक, इस परियोजना की वजह से पांच साल की अवधि के अंत तक 12 से 14 लाख स्नातक छात्रों, एक लाख से अधिक स्नातकोत्तर छात्रों और 14,000 से 15,000 संकाय सदस्यों को लाभ होने की उम्मीद है.

‘कौशल और उद्यमिता क्षमताओं को मजबूत करके इंजीनियरिंग स्नातकों की रोजगार क्षमता में सुधार’, ‘तकनीकी शिक्षा तक समान पहुंच बढ़ाना, महिलाओं और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित समूहों पर ध्यान केंद्रित करना और महिला करियर को मजबूत करना’ तथा ‘बहु-विषयक संस्थानों और कार्यक्रमों का समर्थन करके पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाना’ आदि इस योजना के नीति दस्तावेज़ (पालिसी डॉक्युमेंट) में सूचीबद्ध कुछ उद्देश्य हैं.

इस योजना में भाग लेने वाले संस्थानों के शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित होने की उम्मीद है जो अविकसित सुविधाओं, अपर्याप्त क्षमताओं और उनके अनुसंधान व नवाचार को सीमित करने वाले कमजोर स्तर के प्रोत्साहन, जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं.

दस्तावेज़ के अनुसार, 20-सूत्रीय कार्यान्वयन योजना को तीन हिस्सों में बांटा गया है – छात्रों के लिए, संकाय सदस्यों के लिए और संस्थानों के लिए व इन तीनों के संबंध में किए जाने वाले कई उपायों को भी सूचीबद्ध किया गया है.

छात्रों के लिए शामिल किए गए उपायों के तहत, संस्थानों को ‘कमजोर समूहों से संबंधित छात्रों में शैक्षणिक कमजोरियों की पहचान करनी चाहिए और उनके लिए सुधारात्मक उपाय शुरू करने चाहिए.’ छात्रों को प्रत्येक सेमेस्टर की शुरुआत में इस बात की पहचान के लिए एक परीक्षा देनी चाहिए कि उन्हें किस तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता है और उनके लिए किस तरह के सुधारात्मक कक्षाएं और ब्रिज कोर्सेस (जानकारी के अंतर् को काम करने वाले पाठ्यक्रम) पेश किए जा सकते हैं. संस्थानों को छात्रों के संवाद कौशल और सॉफ्ट-कौशल को बढ़ाने पर काम करना चाहिए और उन्हें 6-8 छात्रों के सहपाठी समूहों में अध्ययन करना चाहिए ताकि वे एक दूसरे से सीख सकें.

दस्तावेज़ में कहा गया है कि छात्रों को बेहतर प्लेसमेंट प्राप्त करने और ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) जैसे एग्जिट एग्जाम पास करने के लिए प्रशिक्षण से भी गुजरना चाहिए. संस्थानों को कक्षा के बाद छात्रों के लिए विशेष सत्र आयोजित करने के लिए कहा गया है, जिससे उन्हें अपने तकनीकी और सॉफ्ट स्किल्स को सुधारने और साक्षात्कार एवं उच्च अध्ययन के लिए तैयार करने में मदद मिलेगी. संस्थानों को बेहतर समझ के लिए छात्रों को मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भी कहा गया है.

संकाय सदस्यों के मामले में, यह दस्तावेज कम अहर्ता वाले शिक्षकों के प्रशिक्षण का प्रावधान करने, उन्हें अपने कौशल को अपग्रेड करने में मदद करने और शिक्षकों के मूल्यांकन के लिए एक सुव्यवस्थित मूल्यांकन तंत्र विकसित किये जाने के लिया कहता है.

संस्थानों के लिए, यह योजना ‘ज्ञान के आदान-प्रदान में सुधार के लिए अन्य संस्थानों के साथ वार्षिक ज्ञान-साझा करने वाली कार्यशालाएं (नॉलेज-शेयरिंग वर्कशॉप्स) आयोजित करने,’ ‘संस्थानों के डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार लाने’ और संस्थान द्वारा चलाई जा रही विभिन्न छात्रवृत्ति और योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहती है. संस्थानों को ‘महिलाओं सहित कमजोर वर्ग के छात्रों के प्रशिक्षण/इंटर्नशिप/प्लेसमेंट के लिए विशेष प्रयास’ करने के लिए भी कहा गया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: देश में विदेशी छात्रों की संख्या पिछले सात सालों में 42% बढ़ी, ज्यादातर बच्चे नेपाल और अफगानिस्तान से


 

share & View comments