नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि केवल भूमि की प्रकृति ही उसके बाजार मूल्य का निर्धारण करने वाला कारक नहीं है और इसे विकसित क्षेत्र एवं सड़क से निकटता सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के जुलाई 2017 के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें निचली वर्धा जलमग्न परियोजना से प्रभावित व्यक्ति के पुनर्वास के लिए अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे के रूप में 56,500 रुपये प्रति हेक्टेयर का आकलन किया गया था।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने संदर्भ अदालत द्वारा निर्धारित किए गए जमीन के बाजार मूल्य को रद्द करने में कानून की गलती की थी, जिसने मुआवजे को बढ़ाकर 1,95,853 रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘यह भूमि की प्रकृति नहीं है, जो अकेले भूमि के बाजार मूल्य का निर्धारण करती है। बाजार मूल्य का निर्धारण विकसित क्षेत्र और सड़क आदि से निकटता सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।’’
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ जमीन के मालिकों की याचिका पर शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा कि भूस्वामियों द्वारा दिए गए सबूतों के अनुसार, अधिग्रहीत भूमि सड़क से आधा किलोमीटर दूर है और विकसित आवासीय या वाणिज्यिक या संस्थागत क्षेत्र के पास है।
इसने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्त किया जाता है और संदर्भ न्यायालय के आदेश को बहाल किया जाता है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि परियोजना से प्रभावित व्यक्ति के पुनर्वास के लिए फरवरी 1999 में प्रकाशित भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत 2.42 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करने का इरादा था।
इसने उल्लेख किया कि विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने जुलाई 2000 में 56,500 रुपये की दर से मुआवजा दिया था।
भूस्वामियों ने कहा था कि अधिग्रहीत भूमि देवली नगर के आबादी वाले क्षेत्र के पास है, जिसमें शैक्षणिक संस्थान, बैंक, तहसील कार्यालय, अस्पताल जैसी सभी सुविधाएं हैं तथा यह देवली नगरपालिका क्षेत्र के भीतर स्थित है।
भाषा
नेत्रपाल दिलीप
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