नयी दिल्ली, दो फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को यााचिकाकर्ताओं ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद को बनाए रखने से बलात्कार कानून का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि यह एक विवाहित महिला के ना कहने का अधिकार छीन लेता है।
याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि यह अपवाद मनुष्यों के एक वर्ग यानी वयस्क पत्नियों के पतियों को बलात्कार के अपराध के दायरे से बाहर ले जाता है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने दलील दी कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद ने ‘‘विवाह की गोपनीयता को विवाह के भीतर एक व्यक्ति की गोपनीयता से ऊपर रखा है’’ जो कि अनुच्छेद 15 और 19(1) (ए) सहित एक विवाहित महिला को संविधान के तहत प्रदत्त कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
वकील ने तर्क दिया, ‘‘अपवाद एक महिला की यौन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करता है। एक महिला को यह कहने की अनुमति नहीं है कि वह अपने पति के साथ यौन संबंध बनाना चाहती है या नहीं। यह न केवल एक विवाहित महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है, बल्कि यह उसकी हां कहने की क्षमता को भी छीन लेता है। ऐसे में पत्नी की सहमति और इच्छा कोई मायने ही नहीं रखती।’’
उन्होंने कहा, ‘‘बलात्कार कानूनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं का बलात्कार न हो या दूसरे शब्दों में, कानून कहता है कि कोई भी पुरुष किसी महिला को उसकी इच्छा या सहमति के विरुद्ध उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। अपवाद को बनाए रखना बलात्कार कानून के उद्देश्य के लिए विनाशकारी और निरर्थक होगा… कोई पुरुष नहीं बल्कि एक महिला का पति ही उसे उसकी इच्छा या सहमति के विरुद्ध उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर कर सकता है।’’
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत पतियों को बलात्कार के अपराध के लिए मुकदमे से दी गई छूट को रद्द करने के लिए कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। इस मामले में ‘न्याय मित्र’ वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन और राजशेखर राव ने दलील दी है कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद असंवैधानिक है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई तीन फरवरी को जारी रहेगी।
भाषा आशीष उमा
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