रायपुर: छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार 55 वर्षीय नक्सली राउलू श्रीनिवास उर्फ श्रीनू उर्फ नरेंद्र उर्फ संतोष उर्फ राउला उर्फ श्रीनिवास उर्फ कुंटा जिसकी मृत्यु तीन दिन पहले बस्तर के जंगल में हृदयाघात से हो गयी थी, महज 18 साल की उम्र में ही सीपीआई (माओवादी) कैडर का एक सक्रिय सदस्य बन गया था.
रमन्ना एक दो नहीं बल्कि कई बड़े हमलों में शामिल रहा था. उसके खिलाफ बस्तर में 1989 से 2015 के दौरान करीब 150 सुरक्षा बलों की हत्या एवं लूट के 32 गंभीर आपराधिक प्रकरण लंबित हैं. इनमें 6 मई 2010 को सुकमा जिले के तालमेटला पहाड़ी जंगल नक्सली हमले में 76 सुरक्षाबलों का नरसंहार और इसी जिले के रेंगड़गट्टा गांव में जुलाई 2007 में हुए हमले में 23 जवानों की शहादत भी शामिल है.
1.4 करोड़ का ईनामी नक्सली था रमन्ना
मौत के समय रमन्ना देश के चार नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारों द्वार घोषित करीब 1.4 करोड़ का वांछित अपराधी था. छत्तीसगढ़ सरकार ने उसके सिर पर 40 लाख का इनाम घोषित किया था. वहीं महाराष्ट्र सरकार द्वारा 60 लाख, तेलंगाना सरकार 25 लाख तथा झारखंड सरकार ने रमन्ना को 12 लाख का ईनामी माओवादी घोषित किया था.
रमन्ना के नेतृत्व में नक्सलियों द्वारा किये गए बड़े हमले
4 जून 1992, ग्राम लीगमपल्ली,थाना गोलापल्ली जिला सुकमा में बारूदी सुरंग से सुरक्षाबलों के वाहन पर हमला, 6 जवानों की मौत.
9 जुलाई 2007, ग्राम रेंगड़गट्टा, थाना एर्राबोर जिला सुकमा में सी आर पी एफ के गश्ती एवं सर्चिंग पार्टी पर हमला जिसमे 23 जवान मारे गए.
6 जून 2010 सुकमा जिले के चिंतागुफा थाना में ताड़मेटला गांव के पहाड़ी जंगल में सी आर पी एफ के 62वीं बटालियन के गश्ती-सर्च टुकड़ी पर हमले में 76 जवानों की मौत.
1 दिसंबर 2014, चिंतागुफा थाना क्षेत्र में सुरक्षाबलों पर हमले में 14 जवानों शहीद.
1 अप्रैल 2015, चिंतागुफा थाना के अंतर्गत आनेवाले पीड़मेल व जग्गावरम के जंगल में सुरक्षाबलों के गश्ती एवं सर्चिंग दल पर हमले में 7 जवानों की शहादत.
30 साल से सक्रिय था रमन्ना छत्तीसगढ़ में
छत्तीसगढ़ के कोंटा क्षेत्र में माओवाद को अपने नेतृत्व के मातहत सक्रियता या फिर कहें गतिशीलता प्रदान करने से पहले रमन्ना ने वर्तमान तेलंगाना राज्य के भद्राचलम दलम में सीपीआई (माओवाद) कैडर सदस्य के रूप में नक्सली आंदोलन को 1982 में अंगीकृत किया. भद्राचलम दलम में करीब 5 साल बिताने के बाद, जिसमे तीन साल संगठन के डिप्टी कमांडर के रूप में काम करना शामिल था, रमन्ना ने 1989 में बस्तर के कोंटा क्षेत्र में सुकमा-कोंटा दलम कमांडर के रूप में प्रवेश किया.
सन 1998 में रमन्ना दक्षिण बस्तर डिविज़नल कमेटी का सचिव बना. 2003 में उसने अपने कार्यक्षेत्र को फैलाते हुए एसजेडसीएम का गठन किया और 2006 में उसे दक्षिण ब्यूरो का सचिव. रमन्ना ने 2011 में डीएसजेडसी के सचिव के रूप में बस्तर के जंगलों में अंडरग्राउंड रहते हुए सुरक्षाबलों के खिलाफ हमले बदस्तूर जारी रखा और परिणाम स्वरूप 2013 में उसे सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी में शामिल कर लिया गया.
रमन्ना के मौत का कारण
दिप्रिंट से बात करते हुए बस्तर रेंज के पुलिस महार्निरीक्षाक विवेकानन्द सिन्हा ने बताया कि उनके द्वारा प्राप्त सूचनाओं के अनुसार रमन्ना की मौत हृदयघात से हुई है परंतु इसे अभी पूर्णतः सही नही माना जा सकता है. ‘हम अभी भी पूरी जानकारी जुटा रहे हैं. वह यदि किसी बीमारी से ग्रसित था तो उसके विषय में जानकारी प्राप्त की जा रही है. रमन्ना एक बहुत ही खतरनाक नक्सली नेता था. उसके मृत्यु के बाद पहले से कमजोर हो रहे माओवादी संख्या बल में और कमी की उम्मीद करनी चाहिए.’
पिता के राह पर चल रहा है पुत्र
छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार रमन्ना और सावित्री का 23 वर्षीय पुत्र रंजीत भी अपने माता पिता के राह पर ही चल पड़ा है. हालांकि उसके खिलाफ अभी तक कोई आपराधिक मामला किसी थाने में दर्ज नही हुआ है लेकिन पुलिस का मानना है उसकी गतिविधियां अपने मां- बाप के दिखाए रास्ते पर ही चल रही हैं. बस्तर रेंज पुलिस महानिदेशक ने दिप्रिंट को बताया कि ‘यू तो रंजीत के खिलाफ अभी तक कोई आपराधिक प्रकरण पंजीकृत नही हुआ है लेकिन वह सीपीआई (माओवादी) द्वारा संचालित चैतन्य नाट्य अकादमी का मुखिया है जिसकी कार्यशैली माओवादी विचारधारा के प्रभावित होती है.’
रमन्ना का जीवन
रमन्ना जिसने अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी छत्तीसगढ़ के कोंटा की आदिवासी महिला एवं अपने कैडर माओवादी साथी सावित्री से किया था, तेलंगाना के बेकल गांव, तहसील भांडुर, जिला वारंगल का रहने वाला था. मात्र 7 वीं कक्षा तक पढ़ा रमन्ना की मौत के बाद उसका और सावित्री का बेटा रंजीत भी अपने माता पिता के रास्ते पर चल रहा है.