नई दिल्ली : एनआरसी की फाइनल लिस्ट के बाद इस पर राजनीति तेज़ हो गई है. दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने राज्य में भी एनआरसी लागू करने की मांग पर जोर दे दिया है. तिवारी ने कहा कि आतंकवाद से निपटने के लिए एनआरसी का लागू होना बेहद जरूरी है. इसे लागू कराने के लिए वह गृह मंत्री अमित शाह से मिलने वाले हैं और इसी सिलसिले में वो दिल्ली से जुड़ी एक रिपोर्ट भी शाह को सौपेंगे.
तिवारी ने कहा, ‘एनआरसी लागू करके किसी को परेशान करने की नीयत कभी नहीं रही है, असम में भी एनआरसी लागू होने के बाद 41 लाख लोगों के पास दस्तावेज नहीं थे. लेकिन उन्हें दस्तावेज पेश करने के लिए पूरा समय दिया गया. समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद भी 19 लाख लोग जब भारतीय नागरिकता का कोई भी सबूत नहीं दे पाए, फिर भी उन्हें किसी तरह से तंग नहीं किया जा रहा है.’
उन्होंने दावा करते हुए कहा कि भारत की नीति रही है कि जो जिस देश का मूल निवासी है उसको उसी देश वापस भेज दिया जाए. इसलिए जो लोग अपनी नागरिकता का दस्तावेज नहीं दे सके हैं, उन्हें उनके देश भेजा जा रहा है.
आपको बता दें कि उनका ये बयान तथ्यों पर खरा नहीं उतरता क्योंकि असम के लोगों की एक बड़ी आबादी को बांग्लादेशी बताया जाता रहा है और 19 लाख़ लोगों के बाहर होने के बाद भी भारत और बांग्लादेश के बीच कोई ऐसी बातचीत और समझौता नहीं हुआ है जिसके तहत बांग्लादेश एक भी व्यक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार हो.
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तिवारी ने ये भी दावा किया कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर दूसरे देशों के लोग अवैध रूप से रह रहे हैं और यहां पर सरकारी जमीनों पर कब्जा तक कर लिया है. उनके मुताबिक ऐसे लोग देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. तिवारी ने कहा, ‘आतंकवाद से लड़ने के लिए भी एनआरसी बेहद कारगर साबित होगा. क्योंकि देश की सुरक्षा में गड़बड़ी पैदा करने वाले अधिकांश घुसपैठिये ही होते हैं.’ उनका दावा है कि दिल्ली में रोहंगियों की अवैध घुसपैठ बढ़ रही है जिसके लिए एनआरसी कारगर हथियार साबित होगा.
उन्होंने कहा कि अवैध घुसपैठियों से न सिर्फ देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि दिल्ली में रहने वाले लोगों को मिलने वाले संसाधनों का भी दोहन होता है. दिल्ली में एनआरसी लागू होने से दिल्ली की सूरत बदल जाएगी और यहां रहने वाले लोगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं मिलने लगेंगी. उनकी अपील है कि सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एनआरसी के मुद्दे पर एकजुट होना चाहिये, क्योंकि यह दिल्ली की आर्थिक और आंतरिक सुरक्षा का मामला है.
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क्या है एनआरसी
1951 की जनगणना के बाद पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को जारी किया गया था. अब इसे सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग में 24 मार्च 1971 को कटऑफ डेट मानकर अपडेट किया जा रहा है, इस सूची में बांग्लादेश से अवैध रूप से असम में आने वालों लोगों की पहचान करना है.
योजना यह है कि इस सूची में उन लोगों की एक व्यापक और निर्णायक सूची तैयार की जाये, जिसमें राज्य में रह रहे ‘अवैध विदेशी’ की पहचान की जा सके, यह मूलरूप से असम के लोगों और वैध रूप से राज्य से बाहर चले गए लोगों के खिलाफ है.
यह प्रक्रिया 2013 में शुरू हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी सूची को अपडेट करने के लिए सरकार को निर्देश दिया था. यह मांग 1985 असम समझौते का हिस्सा थी, यह समझौता 1979 में छह साल असम आंदोलन चलाने वालों और केंद्र में राजीव गांधी सरकार के नेतृत्व में हुआ था.
मई, 2015 में असम राज्य के लिए आवेदन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में असम के प्रत्येक निवासी को यह साबित करना था कि राज्य में उसकी विरासत 1971 से पहले की है. इसके लिए आवेदकों को यह साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने पड़ते थे कि उनका नाम 1951 के एनआरसी में या 1971 तक असम के मतदाता सूची में रहा हो या 12 अन्य दस्तावेजों में नाम रहा हो, जो 1971 से पहले जारी किए गए थे.
पिछले वर्ष जुलाई में अंतिम मसौदा जारी होने के बाद व्यापक सुनवाई आधारित प्रक्रिया के माध्यम से दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था और एनआरसी के मसौदे से बाहर रखे गए लगभग 40 लाख लोगों में से, 36 लाख से अधिक लोगों ने दावों को दायर किया था.