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Friday, 19 April, 2024
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एनआरसी लिस्ट पर भाजपा-कांग्रेस की बयानबाजियां, पाकिस्तान ने भी नहीं चूंका मौका

एनआरसी पर इमरान ने भारत सरकार को भला-बुरा कहा, वहीं असम के सीएम सोनोवाल ने लोगों से संयम बनाए रखने अपील की और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने यहां भी एनआरसी लाने की बात की.

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नई दिल्ली : पूर्वोत्तर के राज्य असम से एनआरसी की अंतिम सूची आने के बाद पाकिस्तान ने ‘नकारात्मक कूटनीति’ करने का मौका नहीं गंवाया. लिस्ट का हवाला देते हुए पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान भारत की वर्तमान सरकार को भला-बुरा कहा. वहीं, एक तरफ जहां असम के सीएम सर्बानंद सोनोवाल ने लोगों से संयम बनाए रखने अपील की तो दूसरी तरफ दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि वो दिल्ली में भी एनआरसी लागू कराएंगे.

पीएम इमरान ने एनआरसी से जुड़ी एक मीडिया रिपोर्ट को कोट करते हुए लिखा, ‘मोदी सरकार द्वारा मुसलमानों के नस्लीय सफाए से जुड़ी ख़बरें भारतीय और वैश्विक मीडिया में मौजूद हैं. ऐसी ख़बरों से विश्व समुदाय को सचेत हो जाना चाहिए.’ इमरान ने एनआरसी मामले में कश्मीर को भी घसीट लिया और लिखा कि कश्मीर को भारत में शामिल किया जाना मुसलमानों को निशाना बनाए जाने की व्यापक नीति का हिस्सा है.

इस महीने की 5 तारीख़ को भारत ने कश्मीर से जुड़े आर्टिकल 370 के कानून में बदलाव किया था जिसके बाद से पाकिस्तान ने भारत पर ज़ुबानी हमला करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा. पाक ने वैश्विक स्तर पर भी पूरी कोशिश की है कि कश्मीर को द्विपक्षीय की जगह एक वैश्विक मुद्दा बनाया जा सके लेकिन ऐसे प्रयास में अभी तक उसे असफलता ही हाथ लगी है.

दिल्ली में एनआरसी की तैयारी में भाजपा


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एनआरसी के संदर्भ में बोलते हुए दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा, ‘दिल्ली में ख़तरनाक होती स्थिति की वजह से यहां भी एनआरसी की दरकार है. यहां आकर बस गए गैरकानूनी अप्रवासी सबसे ख़तरनाक हैं.’ बिहार से ताल्लुक रखने वाले तिवारी ने कहा कि वो दिल्ली में भी एनआरसी लागू कराएंगे.

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सीएम ने छूट गए लोगों को दिलाया ‘पर्याप्त मौके का भरोसा’

असम में शनिवार की सुबह 19 लाख़ से अधिक लोगों के एनआरसी लिस्ट से बाहर होने से पहले राज्य के सीएम सोनवाल ने दूरदर्शन के जरिए कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक एनआरसी की पूरी लिस्ट जारी की जाएगी. देश में पहली बार कुछ ऐसा हो रहा है और जिस तरह से असम के लोगों ने हमारा साथ दिया है, हम हमेशा उनके शुक्रगुज़ार रहेंगे.’

सीएम ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि अगर उनका नाम एनआरसी लिस्ट से बाहर है तो उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा कि जिसका भी नाम छूट जाएगा उन्हें नागरिकता साबित करने के पर्याप्त मौके मिलेंगे.


यह भी पढ़ें: असम से जुड़ी एनआरसी की अंतिम लिस्ट से 19 लाख़ लोग बाहर


उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल में अपील करने का विकल्प होगा. समय सीमा बढ़ाए जाने की जानकारी देते हुए उन्होंने ये भी कहा कि पहले लोगों को अपील करने के लिए 60 दिनों का समय दिया जाना था जिसे बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है.

राष्ट्रवाद पर टैगोर की परिभाषा को पेश करने के अलावा कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था पर भी कसा तंज

कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने मामले पर ट्वीट करते हुए लिखा, ‘राष्ट्रवाद और दूसरे मूल के लोगों से नफरत के बीच एक महीन रेखा होती है. विदेशी मूल के लोगों के ख़िलाफ़ ये शुरुआती नफरत बाद में ख़ुद से अलग भारतीय के ख़िलाफ़ नफरत में भी बदल सकती है.’ ये बातें उन्होंने भारत के महान कवि रविन्द्रनाथ टैगोर के हवाले से कही.

कांग्रेस के मीडिया पैनलिस्ट अर्जुन मोढवाडिया ने लिस्ट आने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, ‘आपकी नागरिकता और इस देश से होने की बात भाजपा की सरकार द्वारा जारी की गई एक लिस्ट से साबित होगी.’ वर्तमान आर्थिक स्थिति पर तंज कसते हुए उन्होंने लिखा कि एनआरसी प्रक्रिया की प्रमाणिकता उतनी ही विश्वसनीय है जितनी इस सरकार की आर्थव्यवस्था की समझ.

आपको बता दें कि शुक्रवार को जारी किए गए आकंड़ों में ये जानकारी सामने आई है कि भारत की विकास दर घटकर 5% पर आ गई है.

एनआरसी क्या है?

1951 की जनगणना के बाद पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को जारी किया गया था. अब इसे सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग में 24 मार्च 1971 को कटऑफ डेट मानकर अपडेट किया जा रहा है, इस सूची में बांग्लादेश से अवैध रूप से असम में आने वालों लोगों की पहचान करना है.

योजना यह है कि इस सूची में उन लोगों की एक व्यापक और निर्णायक सूची तैयार की जाये, जिसमें राज्य में रह रहे ‘अवैध विदेशी’ की पहचान की जा सके, यह मूलरूप से असम के लोगों और वैध रूप से राज्य से बाहर चले गए लोगों के खिलाफ है.

यह प्रक्रिया 2013 में शुरू हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी सूची को अपडेट करने के लिए सरकार को निर्देश दिया था. यह मांग 1985 असम समझौते का हिस्सा थी, यह समझौता 1979 में छह साल असम आंदोलन चलाने वालों और केंद्र में राजीव गांधी सरकार के नेतृत्व में हुआ था.

मई, 2015 में असम राज्य के लिए आवेदन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में असम के प्रत्येक निवासी को यह साबित करना था कि राज्य में उसकी विरासत 1971 से पहले की है. इसके लिए आवेदकों को यह साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने पड़ते थे कि उनका नाम 1951 के एनआरसी में या 1971 तक असम के मतदाता सूची में रहा हो या 12 अन्य दस्तावेजों में नाम रहा हो, जो 1971 से पहले जारी किए गए थे.

पिछले वर्ष जुलाई में अंतिम मसौदा जारी होने के बाद व्यापक सुनवाई आधारित प्रक्रिया के माध्यम से दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था और एनआरसी के मसौदे से बाहर रखे गए लगभग 40 लाख लोगों में से, 36 लाख से अधिक लोगों ने दावों को दायर किया था.

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