नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कानपुर के व्यवसायी मनीष गुप्ता की मौत के मामले में उत्तर प्रदेश के 5 पुलिसकर्मियों को हत्या के आरोपों से मुक्त करने के आदेश पर रोक लगा दी है.
उच्च न्यायालय ने राउज एवेन्यू अदालत में विशेष केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) न्यायाधीश के समक्ष कार्यवाही पर भी रोक लगा दी. यह मामला गोरखपुर के एक होटल में यूपी पुलिस द्वारा मनीष गुप्ता की कथित पिटाई से संबंधित है. आरोप है कि इससे आई चोटों से उनकी मृत्यु हो गई थी. मामले में पुलिस को आरोपी बनाए जाने के मद्देनजर जांच को सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था और मुकदमे को नई दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था.
ट्रायल कोर्ट ने छह पुलिसकर्मियों में से केवल स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) जगत नारायण सिंह के खिलाफ हत्या के आरोप तय किए हैं. अन्य पांच पुलिसकर्मियों पर चोट पहुंचाने के इरादे (धारा 323) और आईपीसी की धारा 34 के अपराध का आरोप लगाया गया है.
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने 9 जनवरी, 2023 के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें एक आरोपी के खिलाफ हत्या और छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ इरादे से चोट पहुंचाने का आरोप तय किया गया था.
हाईकोर्ट ने 22 दिसंबर, 2022 के उस आदेश पर भी रोक लगा दी है, जिसमें मृतक के परिवार को आरोप तय करने के समय कोर्ट की सहयोग करने की अनुमति नहीं दी गई थी.
कोर्ट ने सीबीआई और आरोपी पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया है. मामले को 3 मार्च, 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ मृतक के परिवार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया है.
याचिकाकर्ता के वकील को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘मेरा विचार है कि आरोप तय करने के समय याचिकाकर्ता को सुना जाना चाहिए और अदालत की सहायता करने की अनुमति दी जानी चाहिए.’
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘मेरा भी प्रथमदृष्टया मानना है कि आरोपी पर आईपीसी की धारा 302 और 34 के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए.’
पीठ ने यह भी कहा, ‘अगर मामले को आगे बढ़ने की अनुमति दी जाती है, तो सबूत धारा 302 के तहत नहीं बल्कि धारा 323 के तहत दिया जाएगा, जो उचित नहीं हो सकता है.’
खंडपीठ ने विचार व्यक्त करने के बाद सुनवाई की अगली तारीख तक दोनों आदेशों पर रोक लगा दी है.
मनीष गुप्ता के परिवार ने अधिवक्ता कार्तिकेय माथुर के माध्यम से याचिका दायर की है.
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